तमिलनाडु सरकार ने पलानी स्वामी मंदिर पर अपना कब्जा जमाना चाहा, मद्रास हाई कोर्ट ने मंसूबों पर पानी फेर दिया

ये हिंदुओं की बड़ी जीत है!

पलानी मंदिर तमिलनाडु

तमिलनाडु में भगवान कार्तिकेय को समर्पित पलानी स्थित, धन्दयुथापनी मंदिर वहां के सबसे समृद्ध मंदिरों में एक है। हर वर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर के संदर्भ में चल रहे एक मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला देते हुए मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण की कानूनी वैधता को कटघरे में खड़ा कर दिया। कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार द्वारा पलानी मंदिर प्रबंधन के लिए सरकारी अधिकारी की नियुक्ति की वैधानिकता पर प्रश्न खड़ा किया है तथा ट्रस्ट की स्थापना का निर्देश दिया है।

पलानी मंदिर एक Denominational (डेनोमिनेशनल) मंदिर है, अर्थात एक विशेष भगवान के लिए समर्पित मंदिर, जहाँ उनकी विशेष विधि-विधान से ही पूजा होती है। ऐसे मंदिरों की अपनी परंपरा होती है, जो हजारों वर्षों से अनवरत एक ही रूप में चलती आ रही है और इसमें किसी भी शासन व्यवस्था द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी Denominational मंदिरों के विशेषाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित कर रखी है।

ऐसे मंदिरों में सरकारी हस्तक्षेप नहीं करने दिया जाता लेकिन पलानी मंदिर का 2011 से कोई ट्रस्टी नहीं है। इसी का लाभ लेकर तमिलनाडु सरकार ने इस पर कब्जा करने की कोशिश शुरू कर दी। रिपोर्ट्स के अनुसार तमिलनाडु सरकार द्वारा हिन्दू मंदिरों के संचालन के लिए बनाए गए हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग ( HR&CE Department) के एक वरिष्ठ कर्मचारी द्वारा मन्दिर को संचालित किया जाने लगा। इस अधिकारी को सरकार ने बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की जगह मंदिर संचालन का कार्यभार थमा दिया था।

बता दें कि ऐसे वरिष्ठ कर्मचारी द्वारा पलानी मंदिर संचालन करने के लिए कोई कानूनी स्वीकृति नहीं है। इस तरह के मामले पर वर्ष 1951 में मद्रास हाईकोर्ट ने अपना फैसला दिया था जिससे सरकार द्वारा ऐसे अधिकारी की नियुक्ति को कोई कानूनी आधार नहीं मिल सकता था। मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को 1954 में सुप्रीम कोर्ट से भी मंजूरी मिल गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने पहले चिदंबरम मंदिर के और बाद में शिरूर मंदिर के मामले में हाईकोर्ट के फैसले पर अपनी मुहर लगाई थी। इसके बाद भी न सिर्फ पलानी मंदिर बल्कि उसके अतिरिक्त 45 अन्य मंदिरों पर तमिलनाडु सरकार ने अपना कब्जा जमाए रखा है। मंदिर के नियंत्रण के लिए अधिकारी की नियुक्ति को वर्ष 1965 में सुप्रीम कोर्ट की चार जजों की पैनल ने भी गैरकानूनी करार दिया था।

इन सब के बाद भी तमिलनाडु सरकार मंदिरों पर कब्जा करने का कोई मौका नहीं छोड़ती। पलानी मंदिर के मामले में टी आर रमेश ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। सरकार द्वारा नियुक्त एक्स्युक्यूटिव ऑफिसर द्वारा मंदिर कार्यों के लिए जब टेंडर निकालकर ठेके पर काम देने की बात शुरू की गई तब रमेश ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। बता दें कि टी आर रमेश मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण के विरुद्ध लगातार अभियान चलाते रहे हैं। वह टेम्पल वरशिप सोसाइटी के अध्यक्ष हैं।

रमेश जी की याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि सरकार द्वारा मन्दिर प्रबंधन के लिए अधिकारी की नियुक्ति अवैध है, तथा कोर्ट ने 1938 से हो रही नियुक्तियों को भी गैरकानूनी माना है। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि जल्द से जल्द ट्रस्ट का गठन किया जाए, न कि राज्य सरकार किसी अधिकारी को नियुक्त करके अपनी मनमानी करे।

मद्रास हाईकोर्ट का फैसला सभी बड़े 45 मन्दिरों पर लागू होगा, जिसमें पलानी मंदिर के अलावा तिरुवन्नामलाई, तिरुवरूर, श्रीरंगम आदि प्रसिद्ध मंदिर हैं।

तमिलनाडु सरकार ने अंत तक प्रयास किया कि पलानी मंदिर प्रबंधन उसके हाथ से निकलकर ट्रस्ट के हाथों में न जाए। इसके लिए तमिलनाडु सरकार ने वरिष्ठ वकील और 50 वर्षों का अनुभव रखने वाले ए एल सोमयाजी को अपने बचाव में उतारा था। सरकार ने जब यह महसूस किया कि मामले में उसकी हार निश्चित है तो बिना देर किए ही एक नया ट्रस्ट बना दिया। परंतु इसके गठन में भी पूरी कानूनी प्रक्रिया नहीं अपनाई गई और सेक्शन 25 का उल्लंघन किया गया। सरकार ने ट्रस्टी नियुक्त करके कोर्ट को यह दलील दी कि अब क्योंकि ट्रस्ट बना दिया गया है इसलिए याचिका आधारहीन बन गई है, अतः इसे निरस्त कर दिया जाए।

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सरकार का यह कानूनी दांव भी उल्टा पड़ गया, क्योंकि टी आर रमेश ने ट्रस्ट के गठन में हुई अनियमितता को उजागर करते हुए सरकार को कानूनी नोटिस भेज दिया। सरकार द्वारा सेक्शन 25 का पालन नहीं किए जाने के कारण सरकार को मजबूरन ट्रस्ट के सभी सदस्यों से इस्तीफा लेना पड़ा।

टी आर रमेश के संघर्ष का फल यह हुआ है कि अब तमिलनाडु सरकार को सभी प्रमुख मंदिरों में नियमानुसार ट्रस्ट का गठन करना पड़ेगा। यह अपनी संस्कृति को सहेजने का प्रयास लर रहे हिन्दू जनमानस के लिए बहुत बड़ी जीत है। तमिलनाडु से लेकर उत्तराखंड तक, भारत के हर राज्य में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने के लिए छोटे-बड़े स्तर पर अभियान चलाए जा रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो भारतवर्ष हिन्दू संस्कृति का पर्याय है, उसी भारत में हिन्दू समाज को अपने छोटे-छोटे अधिकारों के लिए कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है।

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