कांग्रेस मणिपुर में कभी सत्ता में न लौटे, पार्टी के नेता ही यह सुनिश्चित कर रहे हैं

मणिपुर के एक और बड़े कांग्रेसी नेता बीजेपी में शामिल हो गए।

हाल ही में मणिपुर काँग्रेस को एक करारा झटका लगा, जब उनके पूर्व अध्यक्ष गोविंददास कोंटौजम सहित कई नेता भाजपा में शामिल हो गए। उन्होंने दिल्ली में बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की, जो मणिपुर के वर्तमान मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह की देखरेख में हुआ

ये इसलिए काँग्रेस के लिए बड़ा झटका है, क्योंकि जैसे एक समय पर असम काँग्रेस के लिए हिमन्ता बिस्वा सरमा विश्वासपात्र माने जाते थे, वैसे ही गोविंददास कोंटौजम मणिपुर काँग्रेस के विश्वासपात्र माने जाते थे। वे विष्णुपुर सीट से छह बार विधायक के तौर पर चुने भी जा चुक हैं।

तो ये काँग्रेस के लिए हानिकारक कैसे है? काँग्रेस पूर्वोत्तर में किसी भी तरह वापसी करने के लिए लालायित है। असम में मुंह की खाने अब उसने अपनी दृष्टि मणिपुर की ओर मोड़ ली है, परंतु गोविंददास कोंटौजम के इस्तीफा देने से अब मणिपुर में काँग्रेस के वापसी की जो रही सही आशा भी थी, वो भी धूमिल हो गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि काँग्रेस ने अभी भी अपनी पुरानी गलतियों से कोई सबक नहीं लिया है।

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काँग्रेस की एक बहुत पुरानी बीमारी है– पैराशूट उम्मीदवारों की। स्थानीय उम्मीदवारों को पूरी तरह नजरअंदाज कर वंशवाद को बढ़ावा देना और अपनी इच्छा थोपना काँग्रेस की बहुत पुरानी आदत रही है। यही आदत पूर्वोत्तर में उसके विनाश का कारण बनी। 2015 में जब तरुण गोगोई ने स्पष्ट कर दिया की 2016 के चुनाव के पश्चात वे फिर मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे, तो काँग्रेस हाईकमान ने स्थानीय नेतृत्व को नकारते हुए अपनी इच्छा थोपी और गौरव गोगोई को चुना।

काँग्रेस हाईकमान की इसी तानाशाही से तंग आकर एक व्यक्ति ने पार्टी को त्यागने का निर्णय किया। आज वो न सिर्फ असम का वर्तमान मुख्यमंत्री है, बल्कि उसी के कारण पूर्वोत्तर से काँग्रेस का नामोनिशान ही मिट चुका है। वे कोई और नहीं, हिमन्ता बिस्वा सरमा है, जिनके कारण आज पूर्वोत्तर में भाजपा सबसे शक्तिशाली राजनीतिक पार्टी है।

काँग्रेस ने उस भूल से कोई सीख नहीं ली और आज उन्होंने मणिपुर को भी अपने हाथों से हमेशा के लिए खो दिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि गोविंददास कोंटौजम कोई ऐसे वैसे नेता नहीं थे, बल्कि मणिपुर काँग्रेस का एक कद्दावर चेहरा थे।

2017 में जब काँग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, उसमें भी गोविंददास की एक अहम भूमिका रही है, लेकिन ऐसे नेताओं को नकारकर काँग्रेस ने यही सिद्ध किया है कि उनके लिए नेहरू गांधी परिवार के हितों से अधिक कुछ नहीं है, और यही सोच कांग्रेस पार्टी के विनाश का प्रमुख कारण बनेगी।

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