दहिया, चानू और सिंधु -मिलिए सनातन धर्म को मस्तक पर धारण करने वाले आज के युवाओं से

मिलिए भारत के नए पदकधारियों से जिन्हें अपनी सनातन संस्कृति पर गर्व है

ओलंपिक पदक

टोक्यो ओलंपिक अब सम्पन्न होने को नहीं है। भारत के वर्तमान प्रदर्शन को हम लंदन ओलंपिक 2012 जितना उत्कृष्ट तो नहीं कह सकते, परंतु रियो ओलंपिक जितना निराशाजनक भी नहीं था। 2 रजत पदक और 3 कांस्य पदक के साथ भारत ने टोक्यो ओलंपिक में अच्छा प्रदर्शन किया है। यही नहीं, 41 वर्ष बाद पुरुष हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीतकर ओलंपिक हॉकी में भारत की शानदार वापसी भी कराई है।

परंतु बात केवल यहीं तक सीमित नहीं है। आप बस इस चित्र पर एक दृष्टि डालिए –

ये चित्र एक बड़े बदलाव का प्रतीक है। इसमें वो सभी लोग शामिल हैं, जिन्होंने भारत के लिए टोक्यो ओलंपिक में पदक जीते हैं।  चाहे पहलवान रवि कुमार दहिया हों, हॉकी गोलकीपर परट्टू रवीन्द्रन श्रीजेश हों, बैडमिंटन स्टार पुसारला वेंकाटा सिंधू हो या फिर भारोत्तोलक साईखोम मीराबाई चानू, ये वो लोग हैं, जो न केवल अपने खेलों में उत्कृष्ट हैं, बल्कि अपने संस्कृति, अपने धर्म में भी बराबर आस्था रखते हैं और इसे स्वीकारने से तनिक भी नहीं हिचकिचाते।

पीवी सिंधू ने तो माँ दुर्गा के प्रति टोक्यो ओलंपिक में पदक मिलने पर अपना आभार भी जताया और प्रार्थना भी की कि आगामी पेरिस ओलंपिक 2024 में देश को स्वर्ण पदक जिताने में माँ उन्हे आशीर्वाद प्रदान करे। सिंधू ने विजयवाड़ा के कनक दुर्गा मंदिर में जाकर प्रार्थना की, और पेरिस ओलंपिक 2024 में सफलता के लिए आशीर्वाद मांगा था।

 

ठीक इसी प्रकार से पहलवान रवि कुमार दहिया और दीपक पूनिया की भी तस्वीरें वायरल हो रहे हैं, जो भगवान केदारनाथ के भक्त हैं और उनके दर्शन करने भी गए थे। रवि कुमार दहिया ने 57 किलो फ्रीस्टाइल कुश्ती के फाइनल में पहुंचकर इतिहास रच दिया था, जबकि दीपक अपने पहले ही ओलंपिक में 86 किलो वर्ग के फ्रीस्टाइल कुश्ती में सेमीफाइनल में पहुँच गए। हालांकि, वह मामूली अंतर से कांस्य पदक जीतने से चूक गए थे।

लेकिन दोनों की आस्था सोशल मीडिया पर काफी चर्चा में है। स्वयं पूर्व क्रिकेटर वेंकटेश प्रसाद ने रवि कुमार दहिया की आस्था पर विशेष ध्यान देते हुए ट्वीट किया, “महादेव सदैव आप पर कृपा बनाए रखे। रवि कुमार दहिया का नाम हमेशा के लिए स्मृति में अंकित हो चुका है। देश को गौरवान्वित करने और रजत पदक जिताने के लिए बहुत बहुत आभार। हर हर महादेव!” –

 

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इस बीच अपनी मीराबाई चानू को कैसे भूल सकते हैं? 49 किलो वर्ग में रजत पदक जीतकर इतिहास रचने वाली इस भारोत्तोलक ने स्वयं बताया कि वह भगवान शिव और पवनपुत्र हनुमान की कितनी बड़ी भक्त हैं, और उनमें आस्था से उन्हें कितनी शक्ति मिलती है। ये बातें उन्होंने बिना किसी हिचक और संकोच के साझा की है, और ये एक सकारात्मक बदलाव का प्रतीक है। अब अपनी संस्कृति को गले लगाना, अपने इष्ट देवों को गले लगाना अपराध नहीं माना जाता, बल्कि सार्वजनिक तौर पर इसका अनुसरण किया जाता है, और लोग अपने कार्यों में सफल भी होते हैं।

ये नए भारत का प्रतीक है, जहां अपनी संस्कृति को गले लगाना कोई अपराध नहीं। यहाँ अपनी संस्कृति को मस्तक से लगाकर संसार को दिखाया जाता है कि हम किन किन कार्यों में सक्षम है। किसी ने सही ही कहा है, जो अपने संस्कृति से विमुख नहीं होता, वो अपने कार्यों में भी असफल नहीं होता, और टोक्यो ओलंपिक में कई भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन इसी ओर संकेत देता है।

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