भारतीय मुस्लिम होने के कारण दानिश के शव को क्षत-विक्षत कर दिया गया, क्या ये भारतीय मुसलमानों के ‘Muslim Brotherhood’ पर पुनर्विचार करने का समय है

अभी नहीं तो कभी नहीं!

दानिश सिद्दीकी

अफगानिस्तान के कंधार के स्पिन बोल्डक जिले में हुए एक हमले में रॉयटर्स के चीफ फोटोग्राफर दानिश सिद्दीकी की मौत हो गई थी | AFP ने बताया था कि पाकिस्तान के साथ लगी एक महत्वपूर्ण सीमा पर कब्जा करने के लिए ऑपरेशन शुरू किए जाने के बाद, अफगान सेना तालिबानी लड़ाकों से भिड़ गई थी। दानिश सिद्दीकी की मृत्यु तालिबानी आतंकियों की गोली लगने से हुई थी

दानिश सिद्दीकी के मौत के कई मायने है | भारतीय मुसलमानो के परिपेक्ष्य मे अगर दानिश की असमय मृत्यु को देखे तो आत्ममंथन करने की अत्यंत आवश्यकता महसूस होती है | सभी को पता है दानिश न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के लिए चीफ फोटोग्राफर के रूप में काम करने वाले भारतीय पत्रकार थे | उनके पत्रकारिता जीवन और असमय मरण का अगर मूल्यांकन करे तो शायद हम भारतीय समाज और इस्लाम के अंदर मौजूद मूलभूत समस्याओं का सूक्ष्म निरीक्षण और निवारण कर सकेंगे |

बताते चले कि अफगान खुफिया सूत्रों ने CNN-News18 को बताया है कि, “दानिश के शरीर में 12 गोलियां लगीं थी। गोलियों के शरीर में अंदर घुसने और बाहर निकलने के कई घाव देखे गए। शरीर के अंदर भी कई गोलियां देखी गईं। सभी गोलियां धड़ और शरीर के पिछले हिस्से में लगी थी।” सूत्रों ने आगे बताया, “शरीर पर घसीटने के निशान भी मिले हैं। ये माना जा रहा है कि तालिबानी आतंकवादियों द्वारा हत्या के बाद शव को घसीटा गया था। हत्या के बाद कई बार दानिश के सिर और छाती को किसी भारी वाहन से कुचला गया था। चेहरे और छाती पर टायर के निशान काफी ज्यादा दिखाई दे रहे हैं। ये माना जा रहा है कि Humvee या किसी दूसरी  भारी SUV का इस्तेमाल शरीर को क्षत-विक्षत करने के लिए किया गया था।”

दानिश की मौत तत्काल रूप से दो प्रश्नो को जन्म देती है –

  1. दानिश को क्यूँ मारा गया ?

इस प्रश्न का उत्तर आप “सोवियत-अफगान युद्ध और अमेरिका की भूमिका’’  पढ़ कर तो जान जाएंगे लेकिन दानिश को ऐसे क्यूँ मारा गया ? इसका उत्तर भारतीय मुसलमान गहन चिंतन से ही पा सकते है | युद्ध मे दुश्मन की जान लेना गलत नहीं मन जाता | इंसान कभी-कभी अपने हितों और अधिकारो के लिए दूसरे का खून बहा देता है, पर जो दानिश के साथ किया गया वो बर्बरता है और बर्बरता पशुता की निशानी है, न की मनुष्यता की |विश्व में इस्लामिक कट्टरता इस हद तक बढ़ गयी है की इस्लाम के लिए युद्ध और उस युद्ध मे सब कुछ जायज़ हो चुका है | एक पत्रकार की जघन्य हत्या भी

लेकिन ज़रा ठहरिए, क्या आप जानते है इससे भी जघन्यतम क्या है ? आपको आत्मचिंतन करने से रोक देना | ऐसे प्र्श्नो की लीपापोती कर आपको शब्दजाल मे फंसा  देना | उदारण के तौर पर रविश कुमार का Fb पोस्ट भी देखा जा सकता है, जिसमें उन्होंने दानिश की मौत का कसूरवार बंदूक से चली गोली को बताया है, बंदूक चलने वाले हाथों को नहीं| विश्वास करिए, ये मानसिक दिवलियेपन की निशानी है | गोली चलाने वाले से ज्यादा बर्बरता और पशुता ऐसा प्रश्न पूछने वालों मे है | ऐसे लोग समाज और राष्ट्र के लिए गिद्ध है | ऐसे लोगो की कायरता, राष्ट्र वैमनस्य और लोभ आपको इस प्रश्न का उत्तर ढूँढने से रोकेगा ताकि इस्लाम मे मौजूद इस घाव को धीरे-धीरे बढ़ाया जा सके और राष्ट्र रूपी इस शरीर की हत्या की जा सके |

दानिश सिद्दीकी को ऐसे क्यों मारा गया ? इस प्रश्न का सीधा उत्तर है इस्लामिक धर्मांधता, कट्टरता और उससे उपजी नफरत और घृणा की भावना | लेकिन, दिल्ली के लुटियन्स मे बैठे किसी मुख्यधारा की मीडिया मे ये कहने का साहस नहीं है | हो भी क्यूँ “रसोगुल्ला“ खाने को नहीं मिलेगा या शायद ‘मग्सेसे’ का मान न रहे | अगर आप किसी को मस्जिद से निकाल कर 12 गोली मारते है, मरने के बाद शरीर को घसीटते है, मुंह पर वाहन चढ़ाते है, अंग्रेजी मे जिसे डैथ आफ्टर डैथ कहते है , तो निश्चित रूप से आप घृणा से भरे हुए है | वो घृणा जो देश, समाज, पेशा कुछ नहीं देखती केवल ये देखती है की आप सिर्फ मुसलमान क्यूँ नहीं है ? और अगर हैं , जैसा कि दानिश थे तो आप कौनसे देश के वासी हैं | क्या आप किसी इस्लामिक देश से आते हैं या नहीं?

कहते है रुका हुआ जल और ज्ञान कुछ ही समय में सड़ जाता है, गति और परिवर्तन शुचिता को बनाए रखती है | परिवर्तन और सहिष्णुता को न स्वीकार कर पाने के कारण हर एक बदलाव अनुयायियों को इस्लाम पर चोट लगती है | इस चोट से बचने का उनके पास एक ही उपाय है कट्टरता और धर्मांधता और इसी ने दानिश सिद्दीकी की जान ली है |

  1. धर्म बनाम राष्ट्र ?

भारतीय मुसलमानो को उपर्युक्त प्रश्न को लेकर भी गहन चिंतन करने की आवश्यकता है | मुस्लिम उम्मत एक मिथ्या है | धर्म के नाम पर वैश्विक रूप से इस्लामिक एकीकरण एक अच्छा भ्रम है | सभी देशों और वहाँ के मुसलमानों की अपनी-अपनी समस्याएं हैं | हितों को लेकर टकराव भी है| अतः वैश्विक मुस्लिम भाईचारे की सोच नादानी है , बेमानी भी| मुस्लिम भाईचारे के वैश्विक कपोल कल्पना की वजह से आप उनसे दूर हो रहे हैं जिन्होंने आपको अपना लिया है, घर दिया है, हक़ दिया है, प्यार दिया है | जितना शायद आपको अपने कल्पना के मुस्लिम उम्मत मे भी मिलना मुश्किल है | और ऐसे प्रेम और सम्मान के बदले मे आप केवल जहर और अलगाव दे रहे है | दानिश सिद्दीकी को भारत ने कितना प्यार और सम्मान दिया तब जबकि उन्होने अनुछेद 370 हटाने की मुखालफत की, तालिबान से लेकर खलिस्तान तक की वकालत की और जीवन भर छद्म-धर्मनिरपेक्षता वाली पत्रकारिता | मुस्लिम समाज को ये समझना चाहिए की राष्ट्र किसी के भी इमान से बड़ा है और इसे सिर्फ समझना ही नहीं अपने आचरण मे भी उतारना चाहिए |

राष्ट्रवाद की रस्सी को कस कर पकड़ेंगे तो कट्टरता की जकड़ कमजोर पड़ेगी | भारतीय मुसलमान को यह समझना होगा की मुल्क के सिद्धांत और नियम-कायदे ईमान से ज्यादा महत्ता रखते है | यहाँ की मिट्टी अरब से या उस ‘’पकिस्ताबी ज़मीन’’ से ज़्यादा पवित्र है | जो भारत के हैं और उनका सब कुछ भारत के लिए होना चाहिए | जिस दिन भारत का मुसलमान अपने जेहन मे प्रखर राष्ट्रवाद का बीज बो देगा उस दिन नयी तारीख लिखी जाएगी | धर्मांधता और कट्टरता की जकड़ ढीली पड़ जाएगी और उस दिन भारतीय मुसलमानो और तथाकथित उदारवादियो को ये समझ आएगा की दानिश सिद्दीकी को इस्लाम ने इसलिए मारा क्योंकि  वह एक भारतीय था | यही चिंतन दानिश को एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी ………..

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