जन्माष्टमी के पावन अवसर पर टोक्यो पैरालम्पिक में भारत के खिलाड़ियों ने एक अनुपम उपहार दिया। एक नहीं, दो नहीं, पाँच ऐतिहासिक पदक भारत की झोली में आए, जिसमें दो स्वर्ण, दो रजत और एक कांस्य पदक शामिल है। पैरा शूटिंग में अवनी लेखरा और पैरा जैव्लिन थ्रो में सुमित अंतिल ने इतिहास रचते हुए स्वर्ण पदक जीता। अवनी लेखरा पैरालम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं। इस ऐतिहासिक प्रदर्शन के साथ ही हमें एक ऐसी महिला के प्रति भी अपना आभार प्रकट करना चाहिए, जिन्होंने न केवल अपने उदाहरण से अपनी जीवटता सिद्ध की बल्कि पैरालम्पिक कमेटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के तौर पर भारत के ऐतिहासिक प्रदर्शन में अपना भरपूर योगदान भी दे रही है। इन महिला का नाम है दीपा मलिक है।
दीपा मलिक को प्रारंभ से बाइकों में काफी रुचि थी। वे क्रिकेट में भी निपुण थीं, लेकिन 1999 में एक मेडिकल रिपोर्ट ने उनके जीवन को पलटकर रख दिया।
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निरंतर पीठ में दर्द के कारण अस्पताल में चेकअप कराने के लिए जब वह पहुंची, तो उनकी रीढ़ की हड्डी में एक ट्यूमर निकला। डॉक्टर ने कहा कि सर्जरी के पश्चात उनका जीवन तो बच सकता है, परंतु कमर के नीचे से वह सदैव के लिए दिव्यांग हो जाएंगी। ये वो समय था जब उनके पति लेफ्टिनेंट कर्नल के तौर पर कारगिल के मोर्चे पर तैनात थे।
दीपा मलिक ने हार नहीं मानी। उन्होंने न केवल सर्जरी का विकल्प चुना, अपितु अपनी कठिनाइयों को ही अपनी सफलता की सीढ़ी भी बनाया। जल्द ही वह पैरा स्पोर्ट्स में एक जाना माना नाम बन गईं।
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2011 में वह पैरा एथलेटिक्स विश्व चैम्पियनशिप में रजत पदक जीतने वाली प्रथम भारतीय महिला बनी। 2016 के रियो पैरालम्पिक में उन्होंने इतिहास रच दिया। महिला गोला फेंक के एफ 53 श्रेणी में उन्होंने रजत पदक जीतते हुए इतिहास रचा और पैरालम्पिक में भारत के लिए पदक जीतने वाली प्रथम महिला बनी।
ये तो मात्र प्रारंभ था। दीपा मलिक को उनकी सेवाओं के लिए 2019 में खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके बाद जल्द ही मोदी सरकार ने एक अप्रत्याशित उपहार भी दीपा को दिया। 2020 में दीपा मलिक पैरालम्पिक कमेटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के तौर पर निर्विरोध निर्वाचित की गईं। ये प्रथम ऐसा अवसर था जब किसी खिलाड़ी को किसी खेल संगठन का अध्यक्ष बनाया गया हो। ये उसी मोदी सरकार ने किया था जिसने राज्यवर्धन सिंह राठौर जैसे प्रखर निशानेबाज को खेल मंत्रालय का पदभार भी सौंपा था।
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इससे पहले पैरालम्पिक कमेटी ऑफ इंडिया पर नौकरशाहों का वर्चस्व रहता था, और यह इस हद तक रहता था कि पैरालम्पिक में खिलाड़ियों और उनके कोचों को ही खेल गांवों में ठहरने की सुविधा नहीं मिलती थी। लंदन पैरालम्पिक 2012 में गए 10 भारतीय खिलाड़ियों में कई को इसलिए प्रवेश नहीं मिला, क्योंकि खेल गाँव में उनके कोटे पर पैरालम्पिक कमेटी के अफसर अपने परिवारजनों के साथ ठहरे थे।
इसी भ्रष्टाचार के कारण इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन और पैरालम्पिक कमेटी ऑफ इंडिया को अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी ने प्रतिबंधित भी किया था। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से सिर्फ इस भ्रष्टाचार पर ही लगाम नहीं लगी है, बल्कि योग्य व्यक्तियों को प्रशासन की कमान सौंपी जाने लगी है। जब टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम की अध्यक्षता प्रख्यात लॉन्ग जम्पर अंजू बॉबी जॉर्ज के हाथ में दी गई, तभी लोगों को समझना चाहिए था कि मोदी सरकार के इरादे क्या हैं।
जब रियो पैरालम्पिक में पदक जीतकर आए भारतीय खिलाड़ियों को प्रसिद्ध हास्य शो ‘The Kapil Sharma Show’ पर आमंत्रित किया गया था, तो दीपा मलिक ने हास्य से परिपूर्ण होकर कहा था कि वे रजत पर नहीं रुकने वाली हैं, क्योंकि ‘बेबी को गोल्ड पसंद है’।
जिस प्रकार से उन्होंने कदम-कदम पर खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया है, जो उनके सोशल मीडिया अकाउंट से स्पष्ट दिखता है, और जिस प्रकार से वह हर पदक विजेता का उत्साह बढ़ाती है, उससे इतना तो सिद्ध हुआ है कि इस बार टोक्यो में वह खुद स्वर्ण पदक न लाई हो, लेकिन भारत के पैरालम्पिक में सबसे बेहतरीन प्रदर्शन में उनका योगदान अतुलनीय है, और अभी तो पैरालम्पिक खत्म भी नहीं हुआ है।