निधन के दो साल बाद भी अरुण जेटली के कार्यों का असर स्पष्ट दिखाई देता है

श्रेष्ठ राजनेता। उत्तम बुद्धिजीवी। आदर्श कार्यकर्ता और उत्कृष्ट अधिवक्ता।

अरुण जेटली

24 अगस्त 2019, आज ही के दिन अरुण जेटली का देहावसान हुआ था । श्रेष्ठ राजनेता। उत्तम बुद्धिजीवी। आदर्श कार्यकर्ता। अरुण जेटली सब कुछ थे। इतने दुर्लभ और बहुआयामी प्रतिभा के धनी लोग विरले ही होते है। व्यक्तित्व, व्यवहार और विचार से जुड़ी हर एक चीज़ अद्भुत, अद्वितीय, अतुलनीय। सही मायने मे अपने नाम के अर्थ को चरितार्थ करते हुए भाजपारूपी सूर्य के सबसे विश्वस्त सारथी। भारत की विधायिका और न्यायपालिका को एकसाथ सर्वस्व समर्पित करने वाला शायद ही ऐसा कोई राजनेता हुआ हो। अरुण जेटली विनम्रता और विद्वता की पराकाष्ठा थे। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी की अगर कोई नेता राजनीति में योग्यता विद्वता और लोकप्रियता के सबसे श्रेष्ठतम स्थिति को प्राप्त होगा तो वह ‘अरुण’ हो जाएगा। आज दो साल हो गए अरुण जेटली को स्वर्ग सिधारे।

लेकिन इस नश्वर शरीर को साधन बना अरुण ने जिन लोकतान्त्रिक सिद्धांतो, न्यायपालिका के मूल्यों और शासन के शुचिता का शाश्वत सिद्धान्त स्थापित किया है, वो अब एक मानक बन चुके है। जब-जब इन मूल्यों के अस्तित्व पर संकट आएगा तब-तब भारत अपने पीढ़ियों को सीख देने के लिए अरुण के व्यक्तित्व का सहारा लेगा। आज जब वो हमारे बीच नहीं है तब शायद उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को छूकर हम बहुत कुछ सीख सकतें है। हम सीख सकते है की संगठन के कार्यकता को कैसा होना चाहिए?

एक सरकार के मंत्री और जनता के प्रतिनिधि का आचरण कैसा हो? एक अधिवक्ता की नैतिकता कैसी हों? और सबसे ऊपर एक आदर्श इन्सान की स्थिति क्या है? इसके साथ साथ इतने विभिन्न पदों पर आसीन रहते हुए राष्ट्र सेवा के लिए कैसे सदा कर्मरत रहें?

अरुण जेटली (28 दिसंबर 1952 – 24 अगस्त 2019) एक भारतीय राजनीतिज्ञ और वकील थे। भारतीय जनता पार्टी के सदस्य, जेटली ने 2014 से 2019 तक भारत सरकार के वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री के रूप में कार्य किया। जेटली ने पहले वाजपेयी सरकार और फिर नरेंद्र मोदी सरकार में वित्त, रक्षा, कॉर्पोरेट मामलों, वाणिज्य और उद्योग, और कानून और न्याय के कैबिनेट विभागों को संभाला। 2009 से 2014 तक, उन्होंने राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में कार्य किया। वे भारत के सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता थे।

जेटली ने स्वास्थ्य मुद्दों के कारण 2019 में दूसरे मोदी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने का फैसला किया। उन्हें सार्वजनिक मामलों के क्षेत्र में मरणोपरांत 2020 में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

एक तेज कानूनी दिमाग और राजनीतिक कुशाग्रता के साथ, जेटली ने अपने विरोधियों को बौद्धिक चतुराई से परास्त किया। लेकिन इस विजय और उत्थान के बावजूद भी उन्होने गरिमा और विनम्रता को बनाए रखा जिससे उनके विरोधी आज भी उनकी प्रशंसा करते है।देश के शीर्ष वकीलों में से एक होने के बावजूद, राजनीति और जन सेवा उनके नैसर्गिक गुण थे। उन्होने अपने विधिक ज्ञान को भाजपा का अभेद्य रक्षा कवच बनाया।

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उन्हें 1989 में वी. पी. सिंह सरकार द्वारा अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया था और बोफोर्स घोटाले की जांच के लिए कागजी कार्रवाई की थी। उनके क्लाईंट जनता दल के शरद यादव से लेकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के माधवराव सिंधिया और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लालकृष्ण आडवाणी तक थे।राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में अपने राजनीतिक कर्तव्यों को देखते हुए, जेटली ने जून 2009 में कानूनी पेशे को बंद कर दिया।

जेटली की राजनीतिक यात्रा की अगर बात करेंगे तो शब्दकोश कम पड़ेंगे। अत्यंत वृहद, विराट और विस्तृत। लेकिन, विभिन्न पदों पर रहते हुए उनके साहसिक राजनीतिक प्रयासों का उल्लेख कर्ण आवश्यक हो जात है मुख्य रूप से वित्त मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल।

अरुण जेटली का नाम हमेशा दो प्रमुख सुधारों से जुड़ा रहेगा – वस्तु एवं सेवा कर (GST) और दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) की शुरूआत। निश्चित रूप से 500 और 1,000 के सभी नोटों के विमुद्रीकरण को याद किए बिना भी वित्त मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल अधूरा है।

आखिर उन्होंने GST पर गतिरोध को खत्म करने का प्रबंधन कैसे किया? सबसे पहले, उन्होंने राज्यों को पहले पांच वर्षों में राजस्व नुकसान स्थिति में कानून के माध्यम से मुआवजा सुनिश्चित किया। दूसरा, वह राज्यों को पेट्रोल और डीजल को भी GST कानून के अंतर्गत लाने के लिए राजी करने में कामयाब रहे और समझदारी से इसे लागू करने की तारीख GST परिषद के विवेक पर छोड़ दी। उन्होंने GST काउंसिल में वोटिंग पैटर्न को भी बदल दिया, ताकि न तो अकेले केंद्र और न ही राज्य मिलकर कि प्रस्ताव को वीटो कर सकें। इन सभी के परिणामस्वरूप नरेंद्र मोदी सरकार के गठन के ढाई साल के भीतर GST की शुरुआत हुई।

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जेटली ने GST परिषद की 36 में से 32 बैठकों की अध्यक्षता की। इन बैठकों में 900 से अधिक निर्णय लिए गए और एक भी मतदान की आवश्यकता नहीं पड़ी, तब जबकि GST परिषद में पश्चिम बंगाल, पंजाब और केरल जैसे विपक्षी शासित राज्यों के सदस्य थे। उनकी उत्तराधिकारी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी आम सहमति बनाने के उसी रास्ते पर चल रही हैं।

जेटली की एक और सफलता आईबीसी थी, जिसने बैंकों के लिए वसूली में एक आदर्श बदलाव लाया। उन्होंने समाधान के लिए एक समय सीमा का प्रस्ताव रखा, जिससे बैंकों को बैलेंस शीट में सुधार करने में मदद मिल रही है। नगदी आधारित व्यवस्था में विमुद्रीकरण सोचना भी आसान नहीं था। लेकिन प्रधान मंत्री मोदी ने जोखिम उठाया और उनके भरोसेमंद लेफ्टिनेंट जेटली ने उसे पूरा किया। जेटली और तत्कालीन आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने यह सुनिश्चित करने के लिए चौबीसों घंटे काम किया कि विमुद्रीकरण की प्रक्रिया बहुत दर्दनाक न हो।

 

जेटली कहते थे कि सरकार को विमुद्रीकरण जैसी स्थितियों से निपटने के लिए सक्रिय होने के साथ-साथ प्रतिक्रियाशील होने की भी जरूरत है। यही कारण हो सकता है कि 8 नवंबर और 30 दिसंबर, 2016 के बीच उनके निर्देश पर 80 से अधिक परिपत्र और स्पष्टीकरण जारी किए गए थे। लोगों ने लगातार बदलाव की आलोचना की, लेकिन जेटली ने कहा कि यदि कोई समस्या है, तो इसे तुरंत हल करने की आवश्यकता है। परंतु, परिवर्तन को नकारना किंकर्त्व्यविमूढ़ता की परिचायक है। ये सोच उनके सुधारवादी और प्रगतिशील सोच को दर्शाती है।

काले धन पर सबसे करारा प्रहार अरुण ने ही किया। काला धन (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) और कर अधिनियम, 2015, व्यापक बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम, और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) में संशोधन के पीछे जेटली का ही दिमाग था,जो जब्ती अनुमति देगा। आय घोषणा योजना, 2016 ने कर चोरो को अपनी गलती सुधारने का स्वर्णिम अवसर दिया। उन्होंने काले धन के खिलाफ कई अन्य उपायों की भी शुरुआत की, जैसे अचल संपत्ति की खरीद के लिए नकद में 20,000 या उससे अधिक का अग्रिम भुगतान स्वीकार करने पर रोक और 1 लाखके किसी भी खरीद या बिक्री के लिए अपना पैन उद्धृत करना अनिवार्य बनाना।

जेटली को पांच पूर्ण बजट पेश करने, 90 फीसदी कंपनियों को 25 फीसदी कॉर्पोरेट टैक्स ब्रैकेट के तहत लाने और आयकर दरों को 5, 20 और 30 फीसदी करने का श्रेय दिया जाता है। नई सरकार को अरुण जेटली में सुधारवादी वित्त मंत्री की कमी खलेगी। निश्चित रूप से यह अपूर्णिय क्षति है। लेकिन उनके बाद आने वाले उनके सहयोगी जैसे पीयूष गोएल, निर्मला सीतारामन के लिए वो हमेशा प्रेरणश्रोत रहेंगे। वित्तमंत्री के पद पर चाहे जो आसीन हो अरुण के कार्य ही रास्ता है, यात्रा है और मंज़िल भी। कम से कम भारत की अपेक्षा तो यही है।

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