कुछ बहादुर हिंदू महिलाएं खोलेंगी ज्ञानवापी में पूजा-अर्चना के द्वार, वाराणसी जिला कोर्ट सुनवाई के लिए हुआ सहमत

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ज्ञानवापी

9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद केस में ऐतिहासिक फैसला देकर रामलला के पक्षधरों को विवादित जमीन का पूरा हिस्सा सौंपा था। उसी दिन ये तय हो गया था, कि अगला नंबर मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि-शाही मस्जिद और काशी विश्वनाथ के पास बनी ज्ञानवापी मस्जिद का होगा। हिन्दू पक्ष पहले ही ज्ञानवापी मस्जिद को कब्जा बताकर वर्ष 1991 से कोर्ट में केस दायर कर चुका है। इसी बीच अब इलाहाबाद हाइकोर्ट ने इस केस में मोदी सरकार के पुरातत्व विभाग को भी एक पक्षकार घोषित कर दिया है। ऐसे में अब कुछ हिन्दू महिलाओं ने मुस्लिम पक्ष के लिए एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। इन महिलाओं ने वाराणसी की अदालत से एक याचिका दायर कर मांग की है, कि ज्ञानवापी मस्जिद में मूर्तियां स्थापित कर पूजन का अधिकार मिले, क्योंकि मुगलों के आक्रमण से पहले ये एक मंदिर ही था।

क्या है मामला

रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद केस की समाप्ति के बाद अब कोई मुद्दा सर्वाधिक ज्वलंत है, तो बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के बीच का। इस मुद्दे में अब हिन्दू महिलाओं ने राखी सिंह के नेतृत्व में तथा रामजन्म केस में शामिल अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन के जरिए एक याचिका दायर की है। इन महिलाओं ने मांग की है कि ज्ञानवापी मस्जिद ही काशी विश्वनाथ का पुराना मंदिर परिसर है, जिसे मुगल शासक औरंगजेब द्वारा क्षतिग्रस्त किया गया था, इसलिए अब हिंदुओं को पुनः पुराने मंदिर परिसर में पूजन का अधिकार मिलना चाहिए।

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इस गंभीर केस याचिका की सुनवाई कर रहे अदालत के सिविल जज रवि कुमार दिवाकर ने उत्तर प्रदेश सरकार, ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंध कमिटी और काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट से जवाब मांगा है। याचिका के संबंध में सिटी मजिस्ट्रेट और पुलिस कमिश्नर से भी जवाब मांगा गया है। याचिका में मांग की गई है कि हिन्दू भक्तों क़ो मंदिर में दृश्य और अदृश्य देवी-देवताओं की पूजा के अधिकार प्राप्त हैं, और इसे सुनिश्चित किया जाए।

ऑन द स्पॉट निरीक्षण की रिपोर्ट की मांग

इस मामले में हिंदुओं का पक्ष अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन रख रहे हैं, जो कि एक कुशल अधिवक्ता माने जाते हैं। वकील जैन ने दायर याचिका के संबंध में बताया कि, “देवी गौरी के साथ ही भगवान गणेश और हनुमान की मूर्तियों को सजाने तथा मंदिर में नंदी जी की पूजा के वादी के मूलभूत अधिकार में दखल नहीं देना चाहिए। वादी की तरफ से एक और ऐप्लिकेशन फाइल की गई है, जिसमें एडवोकेट कमिश्वर से ऑन द स्पॉट निरीक्षण की रिपोर्ट की मांग की गई है।” महत्वपूर्ण बात ये है कि इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश सरकार को भी एक पक्षकार माना है, जिसके चलते सरकार का पक्ष रखना आवश्यक है, और ये मुस्लिम समाज के कट्टरपंथियों के लिए समस्या बन सकता है।

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एक तरफ जहां साहसी हिन्दू महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद में याचिका दायर कर पूजन के अधिकार के संबंध में संघर्ष शुरू कर दिया है, तो दूसरी ओर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोदी सरकार के पुरातत्व विभाग को भी एक प्रमुख पक्षकार बना दिया है। यानी अब मस्जिद का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के जिला अदालत के फैसले के विरुद्ध मुस्लिम पक्ष की तरफ से दायर याचिका के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के पुरातत्व विभाग, आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और प्रदेश सरकार के गृह सचिव को पक्षकार बनाते हुए तीनों को नोटिस जारी किया है, और इस मामले में तीन सप्ताह में जवाब मांगा है।

रामजन्म भूमि की राह पर काशी विश्वनाथ- ज्ञानवापी मामला

अब अगर इस केस को भी देखें तो ये ठीक रामजन्भूमि केस की तरह ही उस दिशा में जा रहा है, जहां पहले मस्जिद में पूजन का अधिकार मांगा गया, और कोर्ट ने स्वीकृति दी। साथ ही मोदी सरकार आने के बाद आस-पास की जमीन, सरकार ने अपने कब्जे में ले ली।

ठीक उसी तरह ज्ञानवापी मस्जिद के आस-पास की जमीन मुस्लिम पक्ष ने देने की बात कही है। वहीं पूरातात्विक सर्वेक्षण भी हिन्दू पक्ष के दावों अधिक मजबूत कर सकता है। ऐसे में ये माना जा रहा है कि हिन्दू पक्ष इस केस को भी राम जन्मभूमि की तरह की एक विशेष पैटर्न के तहत हैंडल करेगा, जिसमें मोदी एवं योगी सरकार की भी भूमिका होगी।

भले ही बीजेपी इस ज्ञानवापी मस्जिद के मुद्दे पर मुखर न हो, किन्तु यदि कोर्ट में जवाब प्रविष्ट करने का विषय आएगा, तो मोदी सरकार से लेकर योगी सरकार तक हिन्दू पक्ष के समर्थन में डॉक्युमेंट्स के आधार पर खड़ी दिख सकती हैं। ये ठीक वैसी ही स्थिति हो सकती है, जैसी राम जन्मभूमि केस के दौरान हुई थी। ऐसे में पहले से कमजोर दिख रहा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का ज्ञानवापी मस्जिद केस अधिक कमजोर हो सकता है, जो कि बहुसंख्यक हिन्दू हितों के लिए एक सकारात्मक पहलू होगा।

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