भारत के इतिहास में पहली बार ग्रामीण क्षेत्र का Consumption शहरी क्षेत्र से अधिक है

देश बदल रहा है।

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भारत के गांव देश के शहरों को खपत के मामलों में पीछे छोड़ चुके हैं। हाल में आये आंकड़ों के अनुसार भारत के ग्रामीण इलाकों में शहरों से अधिक सामानों की खपत है। इकॉनोमिक टाइम्स की रिपोर्ट अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में खपत 24% बढ़ी है वहीं शहरी इलाकों में यह बढ़ोतरी 14% दर्ज की गई है। रिपोर्ट के अनुसार मई महीने के दौरान समग्र उपभोक्ता वस्तुओं के बाजार में डिमांड में कमी देखी गई थी, लेकिन जून और जुलाई में तेजी से सुधार हुआ।

कोरोना के बाद ग्रामीण बाजार में सरकार की नीतियों से खाद्यान्न की मुफ्त आपूर्ति, DBT और ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम से यह सुनिश्चित हुआ कि डिमांड बनी रहे और खपत होता रहे। पिछले दो वर्षों में ग्रामीण बाजार तेजी से बढ़ रहे हैं। परंतु उच्च कृषि आय, 2020 के लॉकडाउन के दौरान न्यूनतम खुदरा व्यवधान और घर लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों के कारण इन बाज़ारों को एक नई ऊर्जा मिली। इन कारणों से ग्रामीण क्षेत्र में खपत ने शहरी क्षत्रों को भी पीछे छोड़ दिया है। इससे अब न सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र का स्वरूप बदलेगा बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी एक सकारात्मक असर पड़ेगा।

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क्या महत्व है खपत बढ़ने का?

दरअसल, ब्रेटन वुड्स कॉन्फ्रेंस के बाद GDP या सकल घरेलू उत्पाद को एक पैमाने के रूप में स्थापित किया गया था। इसका सीधा-सा मतलब यह है कि एक विशिष्ट समय अवधि में देश की सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी तैयार वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य क्या है। जीडीपी किसी देश के अर्थव्यवस्था को मापने का सबसे अच्छा तरीका है। इसमें चार चीजें देखी जाती है। पहला होता है आयात-निर्यात, दूसरी चीज होती है बाहरी निवेश, तीसरा होता है सरकारी खर्च, तथा आखिरी चीज होती है खपत।

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खपत यानी कि आपके देश में एक वर्षों में कितने मूल्य की सामानों का खपत होता है। हमारी देश की अर्थव्यवस्था में 2012 तक निवेश का बड़ा स्थान था लेकिन अब नॉमिनल जीडीपी में खपत सीधे 59.2% योगदान करती है।

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अमेंरिका भी खपत आधारित अर्थव्यवस्था है। वहां पर खपत का सबसे बड़ा योगदान होता है। मशहूर अर्थशास्त्री जॉन मेंनार्ड किन्स का मानना है कि अगर किसी देश में खपत नही बढ़ेगी तो उत्पाद की मांग कम होगी। उत्पाद की मांग कम होने से फैक्ट्री और कारखाने में लोगों को निकाला जाएगा जिससे बेरोजगारी बढ़ेगी जो कि अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी चीज नही है। खपत बढ़ने से गरीबी भी कम होती है।

अब आपको समझ आ रहा होगा कि क्यों वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 2019 के तीसरे और चौथे क्वाटर में खपत बढ़ाने पर जोर दे रही थी।

बढ़ती GDP हर बार विकास का पैमाना नहीं होती लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति और बढ़िया नीतियों से दोनों को किया जा सकता है। इन आंकड़ों के पीछे मौजूद सत्य को समझते है। हमारे यहां देश में ग्रामीण आबादी आज भी शहरी आबादी से ज्यादा है। बढ़िया रोड और यातायात के साधन न होने से मजदूर वर्ग को भी शहर जाकर बसना पड़ता था। आज मजदूर शहर में काम करके गांव आ जाता है। गांव तकनीकी रूप से भी विकसित हो रहे हैं। आकंड़ों के अनुसार ग्रामीण इलाकों में 13000 टेराबाइट इंटरनेट डेटा इस्तेमाल हुआ है जो कि पहले से डेटा के हिसाब से 400% अधिक है। गांव में खपत बढ़ने का कारण यह है कि तकनीक के सहारे लोग व्यापार करना सीख रहे है। उन्हें अपने सामान का सही मूल्य मिल रहा है। शहरों से गांव के रास्ते मजबूत हुए है।

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ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने लोकसभा में बताया कि जून 2021 में ग्रामीण इलाकों में औसत बिजली 22.17 घंटे रही है और शहरी इलाकों में बिजली 23.36 घंटे तक रह रही है। एक स्वतंत्र सर्वे के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 2015-16 के दौरान औसत बिजली 12 घण्टे रहती थी। अब वह बढ़कर 20.50 घण्टे तक हो गई है। ऊर्जा मंत्री ने यह भी बताया था कि सौभाग्य स्किम के तहत 100 प्रतिशत बिजलीकरण हो चुका है। इन कारणों से ग्रामीण इलाकों में कारखाने और उद्योग चलाना आसान हो गया है।

सरकारी योजनाओं का योगदान

स्वतंत्रता के 75वे वर्षगांठ पर लालकिला के प्राचीर से उद्बोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह भी कहा कि अब ग्रामीण इलाकों में भी आसानी से लोन मिलेंगे। ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अपने मालिकाने अधिकार के दस्तावेज से लोन प्राप्त कर सकते है। प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री स्वामित्व योजना के तहत पुराने जमीनी विवादों को सुलझाकर मालिकाना हक दिया जाएगा।

प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना, मिशन अंत्योदय, नेशनल सोशल असिस्टेंस प्रोग्राम, दीन दयाल अंत्योदय योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, संसद आदर्श ग्राम योजना समेत तमाम योजनाएं ग्रामीण विकास के लिए समर्पित है।

ऐसे योजनाओं से 2012 से 2018 में ग्रामीण इलाकों में शौचालयों की संख्या ने 32% से 63% की बढ़ोतरी हुई है और उसी दौरान 33% लोग गैस सिलेंडर पर खाना बनाने लगे हैं। यह समझना तब अधिक आवश्यक है जब भारत में सारे रोगों के 40% रोग पानी और गंदगी संबंधित होती है।

ग्रामीण जीवन के विकास का ही असर है कि आज खपत इस क्षेत्र का रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच चुका है और शहरी क्षेत्र से आगे निकाल गया है। भारत में ग्रामीण क्षेत्र शहरी क्षेत्र के अनुपात में अधिक है लेकिन कई वर्षों से उनके जीवन स्तर को बढ़ाने का प्रयास ही नहीं किया गया था। परंतु पिछले सात वर्षों में इस क्षेत्र को अत्यधिक महत्व दिया गया जिसका परिणाम हमें देखने को मिल रहा है।

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