‘सदन की गरिमा आज तारतार हो चुकी है’, ये शब्द हमारे नहीं है। आज उच्च सदन के सभापति, उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू ने ये बातें कही है।
किस भी देश के सुचारू रूप से चलने के लिए जरूरी है कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सुचारू रूप से कम करते रहे। विधायिका के कार्य करने की जगह केन्द्रीय सदन और राज्य सदन है जिसमें केन्द्रीय सदन की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। हमारे यहाँ लोकसभा नामक निचला सदन है और राज्यसभा नामक उच्च सदन मौजूद है। लोकसभा में जनता से प्रतिनिधि चुनकर आते है। राज्यसभा में सदस्य मनोनीत होते है। हमारे यहाँ सदन में तीन सत्र चलते है जिनके नाम क्रमशः बजट सत्र, शीतकालीन सत्र और मानसून सत्र है। इस वर्ष जुलाई 19 से लेकर 13 अगस्त तक मानसून सत्र होना था लेकिन सदन के पहले दिन से ही विपक्ष के नेताओं ने हंगामा शुरू कर दिया गया।
विरोध के दौरान सारे नियमों की धज्जियां उदा दी गई। किसी ने नियमों की किताब को फाड़ दिया, कोई टेबल पर चढ़कर विरोध करने लगा। विपक्षी सांसदों ने मंगलवार को राज्यसभा के केंद्र में अधिकारियों की मेज पर चढ़कर काले कपड़े लहराए और फाइलें फेंक दीं। कुछ सदस्य मेजों पर बैठ गए और कई नारे लगाते हुए उनपर खड़े हो गए। इस हंगामे के बाद लोकसभा अध्यक्ष ओमबिरला ने मानसून सत्र के दौरान उच्च सदन में हंगामे पर दर्द व्यक्त किया। स्पीकर ओमबिरला ने निराशा व्यक्त की और कहा कि निचले सदन ने केवल 74 घंटे 46 मिनट तक काम किया है और लोकसभा की कुल उत्पादकता पुरे सत्र की अपेक्षा 22 प्रतिशत रही है।
आज संविधान (एक सौ सत्ताईसवां संशोधन) विधेयक बिल, 2021 पर राज्य सभा में चर्चा होनी तय की गई थी।इसे मंगलवार को लोकसभा में पारित किया गया था। इस विधेयक से राज्यों की अपनी खुद की ओबीसी सूची बनाने की शक्तियों को बहाल किया जायेगा। लोकसभा में 385 सदस्य इसके पक्ष में मतदान कर चुके हैं और किसी भी सदस्य ने इसका इसका विरोध नहीं किया है। इसके अलावा, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण आज राज्यसभा में सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1972 में संशोधन के लिए एक विधेयक पेश करेंगी।
आज के बेकाबू वाकये के बाद राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू विपक्ष द्वारा “अपवित्र” कदम और “लोकतंत्र के मंदिर” के उल्लंघन की निंदा करते हुए एक बयान पढ़ते हुए आज उच्च सदन में रो पड़े। राज्यसभा में वेंकैया नायडू के भावनात्मक भाषण के बाद, भाजपा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्वीट किया: “सदन में हंगामे पर बोलते हुए राज्यसभा के सभापति जी को टूटते देख व्यथित हूं। मध्यप्रदेश और हिमाचल प्रदेश विधानसभा में भी ऐसी ही स्थिति देखी गई थी।“
उन्होंने कहा, “जाहिर है कि विपक्ष के पास कोई एजेंडा नहीं है या महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस और विचार-विमर्श में दिलचस्पी नहीं है।लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की पवित्रता का इस प्रकार से लापरवाही भरा उल्लंघन शर्मनाक और अनुचित है!”
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खबर यह भी आ रही है कि सरकार सांसदों के खिलाफ सख्त कार्रवाई चाहती है और इस घटना की रिपोर्ट संसदीय आचार समिति को दे सकती है। 4 अगस्त को भी ऐसे ही हंगामे के बीच 6 टीएमसी सांसदों को निष्कासित किया गया था। छहसांसदों – डोलासेन, मोहम्मद नदीमुल हक, अबीर रंजन विश्वास, शांता छेत्री, अर्पिता घोष, मौसमनूरनेकार्यवाहीकेदौरान उच्च सदन के well में प्रवेश किया, तख्तियां प्रदर्शित की और अध्यक्ष की अवज्ञा” की थी।
ऐसे मामलों के बीच ही सरकर अपने बुद्धिमता से कुछ विषयों पर बहस करने में सफल रही है। हालाँकि विपक्षी दलों को यह नही भूलना चाहिए की उनके आज के कदम कल के लिए नजीर बनेंगे, आज उन्होंने देश की जनता का महत्वपूर्ण पैसा और वक़्त बर्बाद कर दिए। उसके पीछे यह कारण हो सकता है की उनकी जवादेही जनता के प्रति नहीं होती है, शायद इसलिए वो ऐसा कर रहे है। गौरतलब है की राज्यसभा सदस्य विभिन्न दलों द्वारा मनोंनित कियें जाते है।