गुलाम नबी आजाद कश्मीर मुद्दे PM मोदी के भरोसे पर खरे उतर रहे हैं

जम्मू-कश्मीर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सदा ही एक मुख्य मामला रहा है, क्योंकि पीएम यहां की दशा और दिशा का कायाकल्प करने में जुटें हुए हैं, लेकिन उनकी एक विशेष आदत ये है कि वो राष्ट्रीय हितों के विषयों में पार्टी पॉलिटिक्स से ऊपर उठकर सोचते हैं। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ उनका रिश्ता कुछ ऐसा ही था। भले ही वो कांग्रेसी थे, लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद पीएम ने उन्हें अप्रत्याशित सम्मान दिया। TFI आपको बता चुका है कि कुछ उसी तर्ज पर पीएम ने गुलाम नबी आजाद का सम्मान किया है, जिसके चलते ये संभावनाएं थीं कि भले ही वो कांग्रेसी हो, और विरोध की राजनीति करें, लेकिन जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर वो मोदी सरकार के एजेंडे पर चलेंगे। अब वही संभावनाएं सच होती दिख रही हैं, क्योंकि आजाद ने जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है।

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 और 35-ए के खात्मे के बाद ये माना जा रहा था, कि कांग्रेस समेत सभी क्षेत्रीय दल चुनावों का बहिष्कार करेंगे। क्षेत्रीय दलों की राजनीति तो इसी अराजकता के एजेंडे पर चल ही रही थी, लेकिन यदि कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी भी यही करती है, तो कश्मीर के मुद्दे पर देश की अंतरराष्ट्रीय छवि पर नकारात्मक असर पड़ता। नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी जैसे दल पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग को लेकर आक्रामक रहे हैं, और चुनाव न लड़ने की बात करते रहे हैं। हालांकि, कांग्रेस का रवैया भी ढुलमुल ही है, लेकिन जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर कांग्रेस की नीतियों से गुलाम नबी आजाद की नीति अलग है। राज्य में आजाद के कांग्रेस के सबसे बड़े नेता होने के नाते कांग्रेस का केन्द्रीय आलाकमान कुछ नहीं बोल पाता है।

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गुलाम नबी आजाद का यही रुख देश और पीएम मोदी के लिए सकारात्मक है। एक तरफ नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी चुनाव न लड़ने की बात कर रही हैं, तो दूसरी ओर गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस के चुनाव लड़ने की बात कह दी है। जम्मू-कश्मीर के दौरे पर गए आजाद से जब पत्रकारों द्वारा बीजेपी की चुनावी तैयारियों को लेकर सवाल किया गया, तो आजाद बोले,कांग्रेस समेत सभी दलों को तैयारी करनी चाहिए। सभी लोगों को चुनाव में हिस्सा लेना चाहिए। केंद्र शासित प्रदेश में परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव होने की संभावना है।साफ है कि अब वो चुनाव में सभी क्षेत्रीय पार्टियों को भाग लेने के लिए बढ़ावा देने लगे हैं।

इससे पहले पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती राज्य में चुनाव कराने का विरोध कर चुकी है। उन्होंने कहा था, व्यक्तिगत रूप से, यह (संविधान का अनुच्छेद 370 और 35-ए को निरस्त करना) मेरे लिए बहुत भावनात्मक है। मैंने पहला चुनाव भारत और राज्य के संविधानों के तहत शपथ लेते हुए लड़ा था। मैंने दोनों झंडे अपने हाथों में लिये थे, जब तक दोनों संविधान एकसाथ (जम्मू-कश्मीर में लागू) नहीं होंगे, मैंने कहा है कि मैं व्यक्तिगत रूप से चुनाव नहीं लड़ूंगी। महबूबा के इस बयान के बाद अब आजाद का चुनाव लड़ने की बात कहना एक सकारात्मक पहलू है, क्योंकि ये संकेत है कि बीजेपी और कांग्रेस, देश की दो प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के बीच जम्मू-कश्मीर में चुनाव को कराने को लेकर कोई मतभेद नहीं है।

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कांग्रेस जहां अनुच्छेद-370 के खात्मे के बाद उसकी बहाली और पूर्ण राज्य का दर्ज़ा देने के मुद्दे पर छटपटाई हुई है। वहीं, गुलाम नबी आजाद ने राज्य के सबसे बड़े नेता होने के नाते चुनाव का ऐलान कांग्रेस की केन्द्रीय नीति को ही झटका दे दिया है। यही कारण है कि जम्मू-कश्मीर में आए दिन आजाद का भी पार्टी के नेता विरोध करते रहते हैं। इसके विपरीत आज़ाद जम्मू-कश्मीर चुनाव के मुद्दे पर पूर्णतः पीएम मोदी के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। इसमें किसी को भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि राज्यसभा में पीएम मोदी ने आजाद की विदाई के दौरान संबोधन में ही कहा था कि वो आजाद को रिटायर नहीं होने देंगे।

ऐसे में ये माना जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय पार्टी के नेता होने के नाते आजाद जो फैसले ले रहें हैं, उसमें देश का ही हित है,और संभवत वो पीएम मोदी के साथ इस राष्ट्र हित के मुद्दे पर पहले ही विस्तृत बातचीत कर चुके हों।

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