कांग्रेस राज में वीर सावरकर पर धुन बनाना पं हृदयनाथ मंगेशकर को पड़ा था भारी, इतिहासकार विक्रम संपत का बड़ा खुलासा

कांग्रेस की सावरकर विरोधी मानसिकता की कोई सीमा नहीं है!

हृदयनाथ मंगेश्कर

कांग्रेस पार्टी देश की स्वतन्त्रता का श्रेय तो ऐसे लेती है, मानों इस परिवार ने अनेकों त्याग किए हों, किन्तु उसके घमंड के विपरीत यथार्थ सत्य ये है कि कांग्रेस अपने कार्यों के आगे सभी को छोटा समझती है, और सबसे अधिक घृणा स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर से करती है, क्योंकि वो देश को हिन्दुत्व की राह पर चलाने के लिए प्रयासरत थे।सावरकर के प्रति कांग्रेस की घृणा के के अनेकों प्रसंग हैं, किन्तु प्रसिद्ध इतिहासकार और लेखक विक्रम संपथ हाल में में लॉन्च हुई किताब Savarkar: A Contested Legacy, 1924-1966 में कुछ नए खुलासे किए हैं। ये खुलासे बताते हैं कि कांग्रेस सरकार ने सावरकर समर्थक और उनकी कविता की धुन बनाने के कारण संगीत निर्देशक हृदयनाथ मंगेश्कर को ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी से निकलवा दिया था।

कांग्रेस जो आज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ढोंग करती हैं, उसका कच्चा चिठ्ठा खोलते हुए लेखक विक्रम संपथ ने लोगों को तानाशाही वाली कांग्रेस और वामपंथियों की नीति से परिचित कराया है।

Times Now पर बात-चीत करते हुए उन्होने कहा, “वामपंथी स्वयं को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का रक्षक बताते हैं, किन्तु ये उन विचारों कोई जगह नहीं देते, जो कि इनकी सहमति के न हों।”

उन्होंने कांग्रेस सरकारों के शासन का ही उदाहरण देते हुए बताया कि लता मंगेशकर के भाई संगीत निर्देशक हृदयनाथ मंगेश्कर को ऑल इंडिया रेडियो से इस लिए निकाला गया, क्योंकि उन्होंने सावरकर की कविता से संबंधित एक धुन बनाई थी।

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उन्होंने बताया कि हृदयनाथ मंगेश्कर ने अपनी बहनों लता मंगेशकर और उषा मंगेशकर के साथ मिलकर सावरकर की कविता पर आधारित एक धुन तैयार की थी। कांग्रेस को ये धुन पसंद नहीं आई, क्योंकि इस कांग्रेस ने उन्हें एक खलनायक के रूप में प्रस्तुत करने के विशेष प्रयास किए थे।

इसका नतीजा ये हुआ कि हृदयनाथ मंगेश्कर को ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी से ही निकाल दिया गया, जो कि निश्चित रूप से कांग्रेस की तानाशाही को प्रतिबिंबित करता है। हालांकि, इस बात का खुलासा हृदयनाथ मंगेश्कर भी अपने एक साक्षात्कार में कर चुके हैं कि उन्हें सावरकर की कविता ‘ने मझसी ने परत मातृभूमिला, सगरा प्राण तलमलाला’ पर संगीत की धुन बनाने के कारण ही ऑल इंडिया रेडियो से निकाल गया था।

विक्रम संपत की पुस्तक का अंश।

इतिहासकार संपथ ने बताया कि कांग्रेस ने सदैव वीर सावरकर की आलोचना करने वालों को सराहा है, एवं सावरकर को बहिष्कृत करने के प्रयास किए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस एवं वामपंथी उन लोगों को प्रताड़ित करने के मौके खोजते थे, जो कि सावरकर की सोच के प्रति सकारात्मक थे। उन्होंने कहा, “उदारवादी एक अलग दृष्टिकोण को पनपने ही नहीं देते हैं। विशेष रूप से भारत में एक संकीर्णता है जिसे कूड़ेदान में धकेलने की जरूरत है।”

विक्रम संपथ ने बड़ा खुलासा करते हुए कहा, “यह साबित होने के बाद भी कि उनका महात्मा गांधी की हत्या से कोई संबंध नहीं था, उन्हें गांधी की हत्या के सह-साजिशकर्ताओं के रूप में प्रस्तुत करने के लिए अनेकों कथाएं बुनी गई थीं।”

विक्रम संपथ ने बताया कि महात्मा गांधी की हत्या के संबंध में बुनी गईं कथाओं का जिसने महिमामंडन किया, उसे सराहा गया; एवं उन लोगों की मुसीबतें बढ़ाई; जो सावरकर समर्थक माने जाते थे।

स्पष्ट है कि कांग्रेस ने सावरकर की छवि को बर्बाद करने के लिए उन्हें गांधी की हत्या से जानबूझकर जोड़े रखा, और अपने समर्थकों के दम पर एक ऐसा झूठ गढ़ा जो कि यथार्थ से परे है। इसके बावजूद अब जब कांग्रेस सत्ता में नहीं है, तो उसके पुराने कुकृत्य़ों का खुलासा हो रहा है, क्योंकि इससे कांग्रेस का तानाशाही चरित्र जनता के बीच प्रस्तुत हो रहा। इतिहासकार विक्रम संपथ की किताब और उनके बयान कांग्रेस की सावरकर संबंधी क्रुरता की में सारी पोल खोल रहे हैं।

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