अफगानिस्तान में पूर्णतः तालिबान का अधिपत्य हो चुका है। ऐसे मे भारतीयों के मन में एक डर की स्थिति थी। जो लोग वहां फंसे थे, उन्हें निकालना भारतीय सरकार के लिए किसी कठिन अभियान से कम नहीं था। चारों तरफ डर के वातावरण के बीच अफगानिस्तान की स्थिति ये है कि वहां किसी भी अप्रत्याशित दिशा से ऐके-47 की बुलेट आकर लोगों को मौत के घाट उतार सकती है। इन सबके बावजूद भारत सरकार ने अफगानिस्तान में फंसे अपने भारतीय नागरिकों को सुरक्षित निकालकर भारत लाने का मिशल सफल कर दिया है। इसके पीछे मुख्य भूमिका भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की थी, जिन्होंने इस असंभव दिखने वाले मिशन को संभव कर दिखाया।
15 अगस्त का दिन एक झटका बन गया, क्योंकि अमेरिकी सेना के जाने के बाद अफगानिस्तान में ताबड़तोड़ हमले करने के बाद तालिबान ने राजधानी काबुल पर भी अपना कब्जा जमा लिया। राष्ट्रपति अशरफ गनी पहले ही धन-धान्य लेकर अपने परिवार के साथ देश से भाग गए। ऐसे में सबसे बड़ी समस्या उन लोगों के लिए थी, जो कि अफगानिस्तान में या तो व्यापारिक उद्देश्य से रह रहे थे, या फिर पर्यटन के उद्देश्य से गए थे। इस मामले में भारतीयों की भी अधिकता थी, भारत सरकार और विदेश मंत्रालय के लिए अफगानिस्तान से अपने नागरिकों को निकालना किसी मुश्किल चुनौती से कम नहीं था, लेकिन इसे सफल बनाने के लिए एक सीक्रेट प्लानिंग की गई।
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भारत सरकार के लिए सबसे बड़ी मुश्किल ये थी, कि अफगानिस्तान में वो किसी से भी मदद लेकर अपने नागरिकों को सुरक्षित नहीं रख सकते थे। ऐसे में विदेश मंत्रालय ने इन लोगों को निकालने के लिए स्वयं ही प्लानिंग की, जिससे तालिबानी प्रशासन भी अनभिज्ञ था। भारत सरकार ने अफगानिस्तान में अपने विश्वसनीय सूत्रों और जासूसों पर ही भरोसा किया। सबसे बड़ी चुनौती ये भी थी कि किसी भी तरीके से उन लोगों को काबुल एयरपोर्ट पहुंचाया जाए, जो कि डर के कारण भारतीय दूतावास में आ गए थे।
इस ऑपरेशन के लिए 14 बुलेट प्रूफ कारों का काफिला बनाया गया, जिसमें दो पायलट कारें आगे और दो पीछे थीं। इस मामले में प्लांट लैब्स नामक एक कंपनी ने सेटेलाइट तस्वीरें जारी की हैं, जिसमें पूरे ऑपरेशन को स्पष्ट देखा जा सकता है, ये सभी तस्वीरें 16 अगस्त की हैं और ये ऑपरेशन 17 अगस्त की सुबह के पहले समाप्त हुआ था। जो भी भारतीय वहां रुके थे, उन्हें निर्देश दिए गए थे कि वो 16 अगस्त को मिशन के अतंर्गत ही रात में सक्रिय रहें। भारतीय दूतावास से लेकर काबुल एयरपोर्ट तक के इस ऑपरेशन को सफल बनाने के लिए विदेश मंत्री एस जयशंकर भारत से ही पल-पल की मॉनिटरिंग कर रहे थे।
इतना ही नहीं इस दौरान भारत की कूटनीति का एक बार फिर परचम लहरता दिखा, जब वहां अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों ने भी भारतीय अधिकारियों और नागरिकों की भारत वापसी के इस मिशन में सहयोग दिया। विदेश मंत्री एस जयशंकर से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, अमेरिकी रक्षामंत्री एंटनी ब्लिंकन के साथ संपर्क में थे। अनेकों मीडिया रिपोर्ट भी अमेरिका की मदद की पुष्टि करती है।
भारत ने इस सीक्रेट मिशन को पूरा कर अपने नागिरकों की सुरक्षा पूर्वक देश वापसी सुनिश्चित की, तालिबान के अतिसक्रिय होने के बावजूद उनके आतंकियों को इस बात की लेश मात्र भी खबर न लग सकी, जो कि भारत सरकार के लिए सकारात्मक बात है। इस पूरे मिशन में मुख्य भूमिका विदेश मंत्री एस जयशंकर की थी, और हमेशा की तरह उन्होंने अपने कूटनीतिक कौशल का बेहतरीन परिचय दिया है।