राजनीति के नेहरूवादी विदेशी मॉडल को पीएम मोदी ने खांटी देसी मॉडल में बदल दिया

मोदी ने बहुत बारीकी से भारतीय राजनीति में बुनियादी बदलाव कर दिया है।

2014 के बाद देश में बहुत कुछ बदला है। आप विदेश नीति, रक्षा नीति, आर्थिक नीति आदि हर क्षेत्र में व्यापक बदलाव देख सकते हैं। यहाँ तक कि फिल्मों में भी अब बदलाव शुरू हो गया है और भारत के हर क्षेत्र पर नेहरूवाद की जो छाप थी वह अब बदल रही है। इन्हीं सब बदलावों में एक बदलाव भारत में राजनीति का तरीका भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परंपरागत नेहरूवादी तरीके की राजनीति को तोड़कर, एक नए प्रकार की राजनीति की शुरुआत की है, जिसने जनता और नेता के बीच न सिर्फ संवाद स्थापित किया है, बल्कि इनके बीच की दूरी भी कम की है।

नेहरूवादी राजनीतिक मॉडल और मोदी के खाँटी देसी मॉडल में क्या अंतर है ? इसे समझने के लिए दोनों की अलग-अलग विशेषताएं समझनी पड़ेंगी। नेहरू ने अपने शासन के दौरान प्रेस की आजादी को कुचलकर, अपने विरोधियों को लोकतांत्रिक राजनीतिक मृत्यु देकर अपनी छवि को ऐसा बनाया था कि उन्हें प्रश्न किया जाए तो भी उनका सामना नहीं किया जा सकता।

नेहरू के मित्र और इंडियन एक्सप्रेस के संस्थापक रामनाथ गोयनका ने एक बार नेहरू के दामाद फिरोज गांधी को इसलिए अपने अखबार से बाहर कर दिया था क्योंकि वे लगातार नेहरू सरकार के विरोध में लेख लिख रहे थे।

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JRD टाटा अपने एक साक्षात्कार में बताते हैं कि नेहरू तब तक ही आपसे हँसकर बात करते, जब तक आप उनके मन की बात रखते। नेहरू हमेशा अपनी लोकतांत्रिक छवि के प्रति सजग रहे लेकिन उनका रवैया हमेशा तानाशाही से भरा रहा। उनके भाषण पढ़ने पर पता चलता है कि वह जनता से भी संवाद ऐसे स्थापित करते थे जैसे यह बताना चाहते हों कि मैं तुमसे श्रेष्ठ हूँ, लेकिन मैं तुम्हारे बीच आकर खड़ा हूँ और तुम मुझसे मेरी शिकायत भी कर सकते हो।

आप कभी नेहरू के 15 अगस्त के भाषणों को पढ़ें, 1957 में नेहरू ने अपने भाषण में कहा कि “हमने पंचशील का झंडा उठाया और लोगों की तवज्जो इधर हुई और मुल्कों पर इसका असर हुआ। लेकिन फिर कभी कभी हम अपने मुल्क की तरफ देखें कि यहाँ क्या हो रहा है, देखकर शर्म से सिर झुक जाता है।”

इस भाषण में नेहरू जातिवाद और सांप्रदायिकता के लिए जनता को कोस रहे हैं। यह अच्छी बात है लेकिन आप ध्यान दें कि उन्होंने पहले अपनी तारीफ की और बताया कि देश के बाहर लोग उनका कितना सम्मान करते हैं, फिर बताया कि इतने सम्मान का क्या मतलब अगर देश के लोगों के कारण उन्हें बाहर अपमान उठाना पड़े।

उनका संवाद हमेशा ऐसा रहा जैसे कि वह परिवार के मुखिया हैं, अगुआ हैं, यह उनका बड़प्पन है कि वह हमारे बीच आकर बैठ जाते हैं। यही बड़प्पन का भाव नेताओं द्वारा तब दिखाया जाता है जब वह किसी गरीब के घर जाकर रात में सो जाते हैं या रूखा खाना खा लेते हैं।

इसके विपरीत मोदी का मॉडल बहुत व्यापक और बहुत बारीक है। व्यापक इसलिए क्योंकि मोदी ने इतने मजबूत लेफ्ट इकोसिस्टम के बीच में अपनी ऐसी छवि बना रखी है, जिसकी कोई बराबरी नहीं कर पाता। बारीक इसलिए क्योंकि मोदी बहुत छोटी छोटी बातों का ध्यान रखते हैं। देश हॉकी में पाए हुए मेडल का उत्सव मना रहा था तभी उन्होंने राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदल दिया।

बारीक राजनीति का अंदाजा लगाना हो तो पीएम मोदी के इस ट्वीट को देखिए। पीएम ने लिखा कि खेल रत्न का नाम अब ध्यानचंद खेल रत्न होगा. उन्होंने अपने ट्वीट में राजीव गांधी का नाम ही नहीं लिया। यानी कि पूरी तरह से इग्नोर कर दिया, और नाम बदल भी दिया।

पीएम मोदी के इस मास्टरस्ट्रोक से कांग्रेस बौखला गई है, लेकिन क्या फर्क पड़ता है। कांग्रेस का यह आरोप कि मोदी राजनीति कर रहे हैं, कुछ बदल नहीं पा रहा, क्योंकि यह सत्य भी मान लें कि मोदी राजनीति कर रहे हैं तो भी वह कांग्रेस से कितनी बेहतर है कि उसमें इस हद का माइक्रो मैनेजमेंट है।

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मोदी खुद को पढ़ने वाली गालियों से गुस्सा नहीं होते, उसका इस्तेमाल कर लेते हैं। जबकि नेहरूवादी मॉडल गाली का जवाब गोली से देता है। आज सोनिया गांधी को कोई नेता नीच कह दे, कांग्रेस और उसका इकोसिस्टम उसका क्या हाल बनाएगा। लेकिन मणिशंकर अय्यर ने मोदी को नीच कहा, मोदी ने इसका जवाब चुनावी रैली में दिया। अपने जन्म और गरीबी को याद दिलाया और अपने अपमान को जनता की भावनाओं से जोड़ दिया।

मोदी को आम आदमी अपने जैसा ही मानता है। एक चाय बेचने वाला, एक साधारण कार्यकर्ता आज प्रधानमंत्री है। प्रधानमंत्री बनने के लिए आनंद भवन में पैदा होना, विदेश में पढ़ना जरूरी नहीं, यह मोदी ने सिद्ध किया है। मोदी का राजनीतिक मॉडल कुछ हद तक लालू और मुलायम जैसे नेताओं के मॉडल से मिलता-जुलता है, हालांकि परिवारवाद के प्रभाव से मुक्त रहने के कारण मोदी की छवि बहुत व्यापक विस्तार लिए है। नेहरू मॉडल जहाँ नेता को आम आदमी से अलग दिखाता है, मोदी मॉडल नेता को सामान्य आदमी जैसा दिखाता है।

मोदी मॉडल ने जाति की राजनीति को बदलकर रख दिया है। किसी समय में ब्राह्मण-बनिया की पार्टी कही जाने वाली भाजपा में आज सभी जातियों के लोग जुड़ रहे हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल में 28 OBC, 12 दलित और 8 आदिवासी समुदाय के लोग शामिल हैं। नेहरू के बाद जब कांग्रेस का विभाजन हुआ, इंदिरा ने बाबू जगजीवन राम के साथ मिलकर सोशल इंजीनियरिंग की नीति लागू की।

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ब्राह्मण इंदिरा और दलित जगजीवन राम के गठजोड़ में मुस्लिम वोट बैंक जोड़ा गया। इसके लिए इंदिरा जी ने गौहत्या प्रतिबंध की मांग कर रही सन्तो की भीड़ पर संसद के बाहर गोलियां चलवाईं थीं। ऐसे ही प० बंगाल और बिहार कम्युनिस्ट पार्टी ने अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए स्वयं को दलितों, आदिवासियों, मजदूरों का मसीहा बताया और उनके नामपर सवर्णों की हत्याएं हुईं।

मोदी की सोशल इंजीनियरिंग न तो दो चार तबकों तक सीमित है, न इसको साधने के लिए गोली मारने की जरूरत है। मोदी का या कहें आरएसएस का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद सबको एक ही संस्कृति से जुड़ने का मौका देता है। कभी सुहेलदेव के नाम पर, कभी राम और निषाद की मित्रता के आधार पर, किसी न किसी तरीके से समाज के विभिन्न वर्ग एक मुख्यधारा में जोड़े जा रहे हैं।

2014 के बाद यही परिवर्तन हुआ है कि मोदी, भाजपा और संघ राजनीति के केंद्र में हैं। चुनाव ‘मोदी हटाओ’ या ‘मोदी को वापस लाओ’ के नाम पर हो रहा है। राजनीति का ध्रुव बदल गया है और ‘नेहरूवाद’ कि जगह, ‘मोदीवाद’ भारतीय राजनीति के सबसे प्रभावी विचारों में  से एक बन चुका है।

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