भारत की आज़ादी को 75 वर्ष पूरे होने को हैं पर आज भी भारत का अभिन्न अंग पूर्वोत्तर भारत अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहा है। जो उन्नति और विकास आज़ादी के बाद से यहाँ आते-आते अधमरा हो जाता था, उसको गति देने की लाठी वर्ष 2014 के बाद पूर्वोत्तर राज्यों के हाथ में आई थी।
जिस तीव्रता से 2014 के बाद से पूर्वोत्तर राज्यों को विभिन्न परियोजनाओं की सौगात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने दी है, अब तक के किसी शासन में ऐसा कदम शायद ही किसी सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों के उत्थान के लिए उठाया हो। यही विकास अब विपक्ष की सबसे बड़ी पीड़ा बनकर सामने आ रहा है।
एनडीए के घटक दलों और बीजेपी का पूर्वोत्तर राज्यों में जनाधार बढ़ता जा रहा है। इसे स्वीकार करने में तमाम विपक्षी दल असहज महसूस करने लगे हैं, वहीं दूसरी ओर पूर्वोत्तर के राज्यों में आपसी विवाद पनपने से वहां अस्थिरता का माहौल बन चुका है।
दरअसल, 26 जुलाई को असम के कछार जिले से सटे मिजोरम की सीमा पर झड़प हो गई थी। पत्थरबाजी से शुरू हुई ये झड़प हिंसा में बदल गई और गोलीबारी तक बात पहुंच गई। इस संघर्ष में असम पुलिस के 6 जवान शहीद हो गए थे। अभी स्थितियों पर गृह मंत्रालय की पैनी नज़र है, जिससे कि आगे कोई उन्माद न फैले।
वहीं, इस घटना के बाद पूर्वोत्तर राज्यों में एक दूसरे के प्रति असंतोष बढ़ने की वजह से उत्तर पूर्वी राज्यों के भाजपा सांसदों ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। इस दौरान इस सांसदों ने असम-मिजोरम सीमा विवाद का राजनीतिकरण करने में “कांग्रेस के राजनेताओं के एक वर्ग द्वारा किए जा रहे प्रयासों” के संदर्भ में उनके खिलाफ शिकायत करते हुए एक ज्ञापन सौंपा।
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पीएम मोदी को दिए ज्ञापन में भाजपा के 16 सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने कहा, “हम अपने साथी भारतीयों की तरह ही असम-मिजोरम सीमा पर हुई हिंसा से बेहद आहत हैं। साथ ही, हम कांग्रेस पार्टी के नेतृत्वकर्ताओं द्वारा इन घटनाओं पर राजनीतिक लाभ लेने के प्रयास और इससे हुए दोनों राज्यों के अपमान में उनकी भागीदारी होने के लिए अपनी स्पष्ट अस्वीकृति व्यक्त करना चाहते हैं।”
सीमा-रेखा समेत क्षेत्र से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर ज्ञापन में आगे लिखा गया कि “असम और मिजोरम सरकारों द्वारा पिछले कुछ दिनों में विश्वास-निर्माण उपायों की एक श्रृंखला तय की गई है फिर भी कांग्रेस का व्यवहार कुटिल और शरारती रहा है। कांग्रेस की 7 दशक में आई सभी सरकारें क्षेत्र के सपनों के साथ न्याय करने में विफल रही हैं। उदाहरण के तौर पर “पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी मिजो और नगा समुदायों की आकांक्षाओं के प्रति संवेदनशील नहीं थे।”
इस बात को दरकिनार नहीं किया जा सकता कि पीएम मोदी के शासन में आने के बाद से पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद और हिंसा को कम किया गया है। यह साबित होते देर नहीं लगती कि इसके विपरीत, कांग्रेस का पूर्वोत्तर की संस्कृति के लिए कोई सम्मान नहीं है। “आज नॉर्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एनईडीए) उत्तर पूर्वी राज्यों के समावेशी विकास और सांस्कृतिक मूल्यों की देखभाल कर रहा है। इसे पचा पाने में असमर्थ, कांग्रेस और उसका तंत्र निंदनीय व्यवहार और चाल चल रहा है।
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2018 में इसी कांग्रेस ने सीएए और एनआरसी को एक राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिश की थी, लेकिन पूर्वोत्तर के लोगों ने उन्हें करारा जवाब दिया था। आज वे असम और मिजोरम के बीच गुस्सा भड़काने की कोशिश कर रहे हैं, जो देश के सामने है। सारा देश एक मजबूत विपक्ष चाहता था न कि ऐसा मजबूर विपक्ष जिसका हर एक कदम बाहरी देशों और शक्तियां नियोजित करती हैं।
26 जुलाई को असम और मिज़ोरम दोनों राज्यों के बीच हुए एक लंबे समय से चल रहे सीमा विवाद पर आक्रोश बढ़ गया और दोनों राज्यों के बीच एक झगड़े में में असम पुलिस के छह कर्मियों और एक नागरिक की मौत हो गई थी।
घटना में कम से कम 50 लोग घायल हो गए थे। केंद्र की ओर से गृह मंत्री अमित शाह के मोर्चा संभालने से बढ़ने की ओर अग्रसर विवाद को एक द्विपक्षीय वैचारिक मतभेद का अंत हुआ पर इस घटना पर विपक्ष के शर्मसार कृत्य ने कांग्रेस की फजीहत पूरे देश में करा दी।