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Indian Hockey Federation ने भारतीय हॉकी को खत्म कर दिया, फिर आये नवीन पटनायक और सब कुछ बदल गया

ये उस समय की बात है जब Hockey के खिलाड़ी भी celebrity हुआ करते थे!

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
2 August 2021
in खेल
भारतीय हॉकी
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टोक्यो ओलंपिक में हाल में वो हुआ जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की होगी। भारतीय महिला हॉकी टीम ने अप्रत्याशित प्रदर्शन करते हुए विश्व नंबर 2 और तीन बार की ओलंपिक चैंपियन रह चुकी ऑस्ट्रेलिया को 1-0 से हराते हुए पहली बार ओलंपिक हॉकी के सेमीफाइनल में जगह बनाई। सिडनी ओलंपिक 2000 के बाद से यह पहला ऐसा अवसर है, जब हॉकी के दोनों वर्गों में एशिया से कोई देश सेमीफाइनल में पहुंचा हो। भारतीय हॉकी के इस पुनरुत्थान में ओड़ीशा के वर्तमान प्रशासन की भी एक बहुत अहम भूमिका है।

लेकिन ये ऐतिहासिक कारनामा यहीं तक सीमित नहीं रहा। कल शाम भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने वर्षों के अपमान का प्रतिशोध लेते हुए क्वार्टर फाइनल में ग्रेट ब्रिटेन को 3-1 से हरा, टोक्यो ओलंपिक के सेमीफाइनल में जगह बनाई। यह अपने आप में एक ऐतिहासिक क्षण है, क्योंकि मॉस्को ओलंपिक 1980 में महिला हॉकी के पदार्पण के बाद से ये पहला ऐसा अवसर है, जब भारत की पुरुष और महिला हॉकी टीम, दोनों ही सेमीफाइनल में हो।

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लेकिन वर्ष 1923 से 1972 तक 8 बार ओलंपिक में स्वर्ण पदक, 1 रजत और 2 कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी अचानक से पस्त कैसे हो गई? ऐसा क्या हुआ कि ओलंपिक में लगातार 6 स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम बीजिंग ओलंपिक 2008 में एक भी वर्ग [पुरुष या महिला] में क्वालिफ़ाई तक नहीं कर पाई? और नवीन पटनायक के नेतृत्व में ओड़ीशा के वर्तमान शासन ने ऐसा भी क्या किया जिसके कारण आज उनकी प्रशंसा की जा रही है ? और कैसे भारतीय हॉकी एक बार फिर से सर उठाने लगी है?

इसके लिए हमें भारतीय हॉकी के विस्तृत इतिहास पर दृष्टि डालनी होगी। इसकी कहानी शुरू होती है वर्ष 1928 से जब फील्ड हॉकी को ओलंपिक आधिकारिक तौर पर पहली बार एम्स्टर्डम ओलंपिक 1928 में खिलाया गया, प्रारंभ में केवल 9 टीमों ने ही हिस्सा लिया था। तब भारत ने ब्रिटिश इंडिया के तौर पर खेल में भाग लिया था, जिसके कप्तान थे जयपाल सिंह मुंडा। इसी टीम में एक 23 वर्षीय ब्रिटिश इंडियन आर्मी के सैनिक भी थे, जो बाद में हॉकी के सबसे प्रसिद्ध खिलाड़ी, ‘हॉकी विज़र्ड’ , मेजर ध्यानचंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। भारत ने इस ओलंपिक में 29 गोल अर्जित किए, जिसमें से अकेले ध्यानचंद ने 14 गोल किए।

इसी ओलंपिक से भारतीय हॉकी का प्रादुर्भाव हुआ। जैसे बास्केटबॉल में अमेरिका को अजेय माना जाता है, एक समय हॉकी में भारत अजेय था। इस अजेय रथ को सांप्रदायिकता की नजर अवश्य लगी, लेकिन उसके बाद भी स्वतंत्र भारत के तौर पर भारत का विजयरथ अनवरत चलता रहा। भारत ने 1928 से 1956 तक लगातार 6 ओलंपिक स्वर्ण पदक हॉकी में जीते, जिसे आज भी कोई तोड़ नहीं पाया है।

1960 के दशक तक हॉकी ही एकमात्र ऐसा खेल था, जहां भारत ओलंपिक में पदक कमाता था। भारत के विजय रथ पर लगाम लगी 1960 में, जब पाकिस्तान ने उसे 1-0 से हराया। लेकिन ये हार भारत के लिए किसी अपमान से कम नहीं थी। इसका प्रतिशोध भारत ने बड़ी शान से 1964 में लिया, और उसी टोक्यो में, जहां आज दोनों हॉकी टीमें इतिहास रचने के लिए प्रयासरत हैं।

लेकिन प्रश्न तो अब भी उठता है – आखिर भारतीय हॉकी को किसकी नजर लग गई? वजह सिर्फ एक थी – आंतरिक राजनीति। 1960 के शुरुआत से नौकरशाही खेल प्रशासन में दखल देने लग गई थी। इसके साथ साथ गुटबाजी को अधिक महत्व दिया जाने लगा, और योग्यता को कम। प्रारंभ में बीएसएफ़ प्रमुख और हॉकी फेडरेशन के तत्कालीन अध्यक्ष अश्विनी कुमार ने स्थिति को नियंत्रण में रखा।

लेकिन 1967 से उनके हाथ से प्रशासन फिसलने लगा। इसका असर तब दिखा, जब पृथिपाल सिंह को गुरबक्श सिंह के स्थान पर कप्तान बनाया गया, और फिर गुरबक्श के विरोध करने पर दोनों को संयुक्त कप्तान बनाया गया। इतना ही नहीं, जिस व्यक्ति के कारण भारत ने अपना सातवाँ ओलंपिक गोल्ड मेडल जीता था, उस प्रख्यात गोलकीपर, और 1966 एशियाई खेल के विजेता टीम के कप्तान, शंकर लक्ष्मण शेखावत को टीम में शामिल ही नहीं किया गया। इसका परिणाम 1968 के मेक्सिको ओलंपिक में स्पष्ट तौर पर दिखा। भारत सेमीफाइनल में उसी ऑस्ट्रेलिया से 2-1 से एक्स्ट्रा टाइम में हार गया, जिसे टोक्यो ओलंपिक के सेमीफाइनल में ही उसने 3-1 से धोया था। भारत को अंत में कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा, परंतु हॉकी में भारत का पतन शुरू हो चुका था।

लेकिन आंतरिक राजनीति, गुटबाजी और राजनीतिज्ञों की दखलंदाज़ी मानो खत्म होने का नाम ही ले रही थी। क्या आपको पता है 1975 में हॉकी फेडरेशन के अध्यक्ष अश्विनी कुमार ने त्यागपत्र क्यों दिया था? ऐसा इसलिए, क्योंकि वे इंदिरा गांधी के पक्षपाती रवैये, और खेलों में बढ़ रही राजनीतिक दखलंदाज़ी से काफी रुष्ट थे। भारत ने 1975 में पहली और आखिरी बार हॉकी विश्व कप जीता, लेकिन उसके बाद मॉस्को ओलंपिक 1980 में स्वर्ण पदक जीतने के पश्चात से आज तक एक बार भी भारतीय हॉकी ओलंपिक में एक पदक नहीं जीत पाई है।

कई लोगों का मानना है कि 1976 के मॉन्टरेयल ओलंपिक में एस्ट्रो टर्फ़ के आने से भारतीय हॉकी का पतन शुरू हुआ। भारतीय खेल में प्रशासन की लापरवाही इस हद तक व्याप्त थी कि जो कार्बन फाइबर आधारित हॉकी स्टिक भारतीय खिलाड़ियों को 1990 के प्रारंभ में ही मिलने चाहिए थे, वे उन्हे 2000 के प्रारंभ तक नहीं मिले। इस कारण से भारतीय टीम के प्रदर्शन का स्तर गिरा, और एक समय पर पुरुष टीम की रैंक 13 वें स्थान पर पहुँच चुकी थी।

लेकिन यदि एस्ट्रो टर्फ़ ही एक कारण था, तो पाकिस्तान हमसे आगे कैसे रहा?

वजह स्पष्ट थी – आंतरिक राजनीति, जिसके दुष्परिणाम समय-समय पर सामने आये। बैंकॉक एशियाई खेल 1998 में भारत ने धनराज पिल्लई के नेतृत्व में 32 वर्ष बाद स्वर्ण पदक जीता, लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हे सिर्फ इसलिए टीम से हटा दिया गया, क्योंकि उन्होंने खिलाड़ियों के लिए बेहतर सुविधाओं की मांग की।

असल में उस समय खिलाड़ियों को फेडरेशन से जो पैसा मिलता था, उससे वे अपना घर भी नहीं चला सकते थे। जब तक अश्विनी कुमार IHF के अध्यक्ष थे, वे स्वयं खिलाड़ियों की सुविधाओं में कोई कमी नहीं होने देते थे, परंतु 1975 में उनके हटते ही हॉकी फेडरेशन पर मानो गिद्धों ने कब्जा कर लिया। 1998 तक तो भारतीय टीम को मुश्किल से 20,000 रुपये प्रति सदस्य भी नहीं मिलते थे। इसी का विरोध करने के लिए धनराज पिल्लई समेत कई खिलाड़ियों को हटा दिया गया।

लेकिन इस भ्रष्टाचार के दुष्परिणाम 2008 में स्पष्ट तौर पर सामने आए। तब पहली बार पुरुष टीम बीजिंग ओलंपिक के लिए क्वालिफ़ाई करने में असफल रही थी, जो 8 बार के ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता भारतीय टीम के लिए सबसे शर्मनाक पल था। लेकिन कुछ ही हफ्तों में इंडियन हॉकी फेडरेशन से जुड़ा एक स्टिंग ऑपरेशन वीडियो सामने आया, जिसमें फेडरेशन के उपाध्यक्ष, के ज्योतिकुमारन रंगे हाथों घूस लेते हुए पकड़े गए थे। फलस्वरूप  2010 में एक नए संगठन का गठन हुआ, हॉकी इंडिया का।

लेकिन हॉकी इंडिया भी प्रारंभ में कोई विशेष कमाल नहीं दिखा पाया। 2012 में भारत ने अवश्य लंदन ओलंपिक के लिए क्वालिफ़ाई किया, परंतु पुरुष टीम एक भी मैच नहीं जीत पाई, और अंतिम, यानि बारहवें स्थान पर रही। लेकिन फिर आया वर्ष 2014। इस वर्ष में हॉकी में कई अहम बदलाव हुए, और इन बदलावों का सबसे अधिक लाभ मिला भारत को। ये इसलिए क्योंकि इनकी ओर ध्यान आकर्षित हुआ ओड़ीशा सरकार का, जिसका प्रशासन नवीन पटनायक के हाथ में था। नवीन पटनायक एक लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहे हैं, जो खेलों के प्रति भी काफी दिलचस्पी रखते हैं। इन्ही की पार्टी में 2014 के दौरान प्रसिद्ध हॉकी प्लेयर एवं पूर्व भारतीय कप्तान दिलीप टिर्की भी शामिल हुए थे, जो ओड़ीशा के ही सुंदरगढ़ जिले से संबंध रखते हैं।

2014 तक आते आते हॉकी में हरे के बजाए नीले एस्ट्रो टर्फ़ पर खेल खेला जाने लगा। इसके अलावा खेल सत्तर मिनट का न होके एक घंटे का हो गया, जिसे चार क्वार्टर में बाँट दिया गया। साथ ही साथ मैच का परिणाम निकालने के लिए पेनाल्टी स्ट्रोक के बजाए पेनाल्टी शूटआउट को प्राथमिकता दी जाने लगी।

इन सबकी ओर दिलीप ने न केवल नवीन पटनायक का ध्यान आकर्षित कराया, बल्कि उनसे अपील भी की कि इससे संबंधित इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण को भी बढ़ावा दिया जाए। इसी का परिणाम था कि ओड़ीशा ने आगे बढ़कर न केवल चैंपियंस ट्रॉफी 2014 और FIH विश्व हॉकी लीग फाइनल्स 2017 के मेजबानी की जिम्मेदारी संभाली, बल्कि 2018 के विश्व कप की मेज़बानी के लिए भी उन्होंने प्रस्ताव रखा। ओड़ीशा में प्राकृतिक आपदाओं के इतिहास को देखते हुए लोगों को इन टूर्नामेंट्स के सफलता पर संदेह था।

परंतु ओड़ीशा ने न केवल इन टूर्नामेंट को सफलतापूर्वक आयोजित किया, अपितु 2023 के विश्व कप की मेजबानी का भी अधिकार अर्जित किया। 2018 में ही ओड़ीशा ने एक अप्रत्याशित निर्णय लेते हुए भारतीय हॉकी को स्पॉन्सर करने का प्रस्ताव रखा। ऐसा करने वाला पहला राज्य बना। 2023 तक यह करार बना रहेगा।

ओड़ीशा प्रशासन के इसी मेहनत का परिणाम है कि आज भारतीय हॉकी का पुनरुत्थान हुआ। प्रारंभ तो 2016 से ही हो गया था, जब भारत ने पहली बार चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में कदम रखा। लेकिन आज जो हुआ, उसने सिद्ध कर दिया है कि किस प्रकार से यदि देश के लिए सब एक हो जाएँ, तो असंभव भी संभव हो सकता है।  आज भारतीय हॉकी के नींव रखने वाले मेजर ध्यान चंद, केडी सिंह ‘बाबू’, बलबीर सिंह जैसे खिलाड़ी जहां भी होंगे, भारतीय हॉकी के इस पुनरुत्थान पर खुशी के आँसू बहा रहे होंगे।

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Players prefer real-time interaction because visible gameplay and human presence create higher trust, stronger engagement and clearer outcomes. Live dealer games in Asia gain traction...

क्यों PariPesa भारत रोमांचक एविएटर क्रैश गेम्स का अनुभव लेने के लिए सबसे बेहतरीन जगह है
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26 October 2025

Paripesa aviator एक रोमांचक क्रैश गेम है जहाँ खिलाड़ी दांव लगाते हैं और एक विमान को उड़ान भरते हुए देखते हैं, और जैसे-जैसे वह ऊपर...

PariPesa के सर्वश्रेष्ठ भारतीय ऑनलाइन गेम्स
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2 October 2025

क्या एक ही प्लेटफॉर्म स्पोर्ट्स बेटिंग और कैसिनो गेमिंग का आनंद दे सकता है ? हाँ, PariPesa भारतीय खिलाड़ियों के लिए ऐसा अनुभव लेकर आया...

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