अमेरिका ने जिस तेजी से स्वयं को पश्चिम एशिया और मध्य एशिया की राजनीति से अलग करने का फैसला किया है, उस क्षेत्र के भू-राजनीतिक समीकरण बदलने वाले हैं। अमेरिका इस क्षेत्र को छोड़कर हिंद प्रशांत क्षेत्र पर अपना ध्यान केंद्रित करने वाला है। अमेरिका के हटते ही इस क्षेत्र में एक शक्ति शून्यता जन्म लेगी जिसे भरने के लिए चीन सबसे अधिक आतुर है। चीन अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए इसी क्षेत्र पर निर्भर है उसने पश्चिम एशिया में ईरान को अपनी भावी योजनाओं के लिए सबसे विश्वसनीय सहयोगी बना लिया है। ऐसे में इज़राइली रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि चीन की ईरान के साथ सैन्य नज़दीकियां बढ़ेंगी तो इसका सीधा प्रभाव इज़राइल और चीन के आर्थिक संबंध पर देखने को मिलेगा। यही नहीं इज़राइल चीन के साथ अपने आर्थिक संबंध तोड़ भी सकता है।
इज़राइल विरोधी शक्तियों के साथ हाथ मिलना पड़ सकता है चीन को भारी
Breaking Defense की रिपोर्ट के अनुसार इजराइल के सरकारी सूत्रों ने जानकारी दी है कि यदि चीन ईरान अथवा क्षेत्र में मौजूद अन्य इज़राइल विरोधी शक्तियों के साथ रक्षा तकनीक से संबंधित कार्य जारी का विस्तार करता है तो फिर इजराइल चीन के साथ अपने आर्थिक संबंध में कमी ला सकता है। इज़राइल के रक्षा विशेषज्ञों को विश्वास है कि अमेरिका की क्षेत्र से वापसी के बाद उत्पन्न होने वाली शक्ति शून्यता को चीन अपनी आर्थिक, कूटनीतिक, सामरिक शक्ति से भरने का प्रयास करेगा। रिपोर्ट में इज़राइली रक्षा सूत्र के हवाले से यह लिखा है कि “क्षेत्र में अमेरिका का प्रभाव, विशेष रुप से अफगानिस्तान में हुआ है उसके बाद, से चीन के लिए गल्फ एवं पश्चिम एशिया में एक महत्वपूर्ण शक्ति बनने के द्वार खुल गए हैं।”
पश्चिम एशिया का बदलता स्वरूप है कारण
पश्चिम एशिया, विश्व के सबसे रोमांचकारी भू-राजनैतिक उठापटक का रंगमंच रहा था। सऊदी अरब और ईरान की शिया-सुन्नी प्रतिद्वंदिता, अरब स्प्रिंग, कोल्डवॉर और वॉर अगेंस्ट टेररिज्म ऐसे अनेक महत्वपूर्ण घटनाक्रम इसी क्षेत्र में हुए। इन सब में अमेरिका की केंद्रीय भूमिका रही थी। किंतु अफ़गानिस्तान से अमेरिका की विदाई के बाद अब रूस, भारत, इज़राइल जैसे वे सभी शक्तिशाली देश जिनके हित इस क्षेत्र से जुड़े हैं अपनी भावी योजनाओं को लेकर चिंतित है। अमेरिका ने जिस तेजी से सीरिया और अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाया है उसने यह स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले समय में अमेरिका इस क्षेत्र की राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में वैसी सक्रियता नहीं दिखाएगा जैसी कोल्डवॉर या उसके बाद अगले 20 वर्षों में देखने को मिली थी।
इज़राइल ने महसूस किया है कि चीन मित्र नहीं है
अफगानिस्तान से अमेरिका के पलायन ने अमेरिकी सहयोगियों को यह सोचने पर विवश कर दिया है कि अमेरिका टकराव की स्थिति में उनके साथ खड़ा होगा या नहीं। अमेरिका ने अफगानिस्तान में 20 वर्षों तक जिस सरकार का समर्थन किया, उसे तालिबान के हाथों ध्वस्त होने के लिए छोड़ दिया। ऐसे में इज़राइल और सऊदी जैसे देशों ने सीख लेते हुए अपनी सुरक्षा स्वयं सुनिश्चित करने के बारे में विचार करना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि इज़राइल में चीन और ईरान के बढ़ते सहयोग पर इन दिनों गंभीर चिंतित हो रहा है। इज़राइल समझता है कि चीन की पश्चिम एशिया में पहुंच उसकी कीमत पर आएगी। वर्तमान में, चीन इज़राइल की तकनीक में भारी निवेश करता है लेकिन हाल के दिनों में, इज़राइल ने महसूस किया है कि चीन मित्र नहीं है।
चीन और ईरान ने 25 वर्षीय स्ट्रेटेजिक पैक्ट किया है। चीन की BRI योजना का मुख्य लक्ष्य चीन की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना है। इस योजना का लक्ष्य पानी के रास्ते होने वाले व्यापार को भूमि के रास्ते होने वाले व्यापार में बदलना है। ऐसे में ईरान चीन के लिए पश्चिमी एशिया में प्रवेश करने का मुख्य मार्ग है। उधर मुसलमानों के मुद्दे पर चीन को कट्टरपंथी इस्लामिक ताकतों के विरोध का सामना न करना पड़े इसके लिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि चीन मुस्लिम देशों के साथ अच्छे संबंध बनाकर चले। यही कारण था कि इज़राइल फिलिस्तीन संघर्ष के दौरान चीन ने फिलिस्तीनी मुसलमानों के मुद्दे को सुरक्षा परिषद में भी उठाने का प्रयास किया था।
इतना ही नहीं चीन गाजा युद्ध के दौरान यहूदी विरोधी प्रोपेगेंडा करने लगा था। इस पर चीन में इज़राइली दूतावास ने सीसीटीवी द्वारा चलाए जा रहे एक कार्यक्रम की ओर भी इशारा करते हुए ट्वीट किया था, “हमें उम्मीद है कि ‘यहूदी दुनिया को नियंत्रित करने वाले’ षड्यंत्र के सिद्धांतों का समय खत्म हो गया था, दुर्भाग्य से यहूदी-विरोधी ने अपना बदसूरत चेहरा फिर से दिखाया है।” साथ ही यह भी कहा कि, “हम एक आधिकारिक चीनी मीडिया आउटलेट में व्यक्त किए गए यहूदी-विरोधी को देखकर स्तब्ध हैं।”
ऐसे कई कारक हैं जो चीन-इज़राइल संबंधों को कमजोर करते हैं। चीन द्वारा इजराइल के ऊपर ईरान को अब्राहम समझौते में महत्व देना इसी यही दिखाता है। पिछले साल संयुक्त अरब अमीरात और इज़राइल के अपने द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य करने के साथ, इज़राइली प्रौद्योगिकी में अमीराती निवेश बढ़ गया है।
इसलिए, इज़राइल की तकनीक अब पूरी तरह से चीनी पूंजी पर निर्भर नहीं है। इज़राइल प्रौद्योगिकी में निवेश करने वाले मुख्य देश के रूप में चीन ने जो भी लाभ उठाया है, वह अब समाप्त हो रहा है। यही कारण है कि चीन खुद इज़राइल से बौखला रहा है। हाल ही में, इज़राइल और चीन के संबंध निकट भविष्य में कितने खराब होंगे इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में चीनी हैकरों ने इज़राइल पर बड़ा साइबर हमला किया था। उनका उद्देश्य इज़राइल की महत्वपूर्ण तकनीकी जानकारी और व्यापारी की योजनाओं की जानकारी जुटाना था।
इज़राइल के पास है भारत का विकल्प
वहीं इज़राइल की बात करें तो आने वाले समय में भारत और इज़राइल का रक्षा सहयोग तेजी से बढ़ने वाला है। यह सहयोग केवल रक्षा अनुसंधान तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि कई अन्य मामलों पर भी दोनों ने एक दूसरे के साथ दिखेंगे। इस समय भारत, इज़राइल के साथ साइबर वॉफेयर से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक कई क्षेत्रों में सहयोग कर रहा है। हाल ही में भारत और इज़राइल के बीच, भारत को बेचे गए ड्रोन को लेकर एक समझौता हुआ है, जिसके तहत इज़राइल सर्विलांस ड्रोन को आर्म्ड ड्रोन में बदलने वाला है।
अफगानिस्तान में तालिबान की विजय के बाद यह स्पष्ट है कि इस पूरे क्षेत्र में इस्लामिक कट्टरपंथ मजबूती के साथ आगे बढ़ेगा। ऐसे में भारत और इज़राइल के बीच इंटेलिजेंस शेरिंग और बढ़ेगी। मोसाद और R&AW इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध आपसी सहयोग बढ़ाएंगे। साथ ही फिलिस्तीन के मुद्दे पर भारत को अपना स्टैंड बदलना पड़ेगा क्योंकि अब भारत और इज़राइल को अपने हितों की सुरक्षा के लिए विदेश नीति के मुद्दे पर एक राय बनानी पड़ेगी।
इज़राइल का एक स्पष्ट संदेश
चीन के लिए इज़राइल का एक स्पष्ट संदेश है- यदि आप पश्चिमी एशिया में ईरान जैसे देशों के साथ संबंध बढ़ाने की कोशिश करते हैं तो हम व्यापारिक संबंध तोड़ देंगे। इज़राइल चीन के साथ अपने व्यापारिक समझौतों का उपयोग सौदेबाजी के लिए कर रहा है और यहूदी राष्ट्र पर ईरान को चुनने के लिए कम्युनिस्ट राष्ट्र को सबक सिखाना चाहता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इज़राइल पश्चिमी एशिया का एक महत्वपूर्ण शक्ति है और इसके पास दुनिया की सबसे उन्नत खुफिया नेटवर्क में से एक है। इसलिए, चीन के ईरान के साथ बढ़ते संबंध का इज़राइल द्वारा विरोध बीजिंग के लिए एक बड़ा झटका है। ऐसे में परिवर्तित हो रहे समीकरण यह संकेत कर रहे हैं कि चीन का इज़राइल में जो भी निवेश है और चीन इज़राइल के बीच जो भी आर्थिक सहयोग है, वह सब नकारात्मक रूप से प्रभावित होने वाला है।