बड़ी कम्पनियों के पास बड़ी जिम्मेदारियां होती है। खासतौर पर तब, जब कम्पनी सोशल नेटवर्किंग साइट हो। यह बात शायद ट्विटर के CEO जैक डार्सी को समझ में नहीं आ रही है। ट्विटर आये दिन किसी न किसी मुद्दे को लेकर विवादों में रहता है और अब इसकी पॉलिसी भी स्पष्ट नहीं हो पा रही कि किस आधार पर ये किसी भी अकांउट को बैन करता है। यही कारण है कि ट्विटर की हमेशा आलोचना होती रहती है। अब आलोचना का कारण है जबीहुल्लाह मुजाहिद (Zabiullah Mujahid)। इसके ट्विटर एकाउंट पर लिखा है कि वो “अफ़ग़ानिस्तान इस्लामिक अमीरात” का प्रवक्ता है। ट्विटर पर अब तालिबान के प्रवक्ता की आईडी है जिसके लगभग 3 लाख फॉलोवर है। वह आये दिन तालिबानी विचारों को, उसकी नीतियों को सबके सामने परोसता है।
ऐसे तमाम आईडी ट्विटर पर आपको देखने को मिलेंगे जो तालिबान के संदेशों को लोगों तक पहुंचा रहे हैं। ट्विटर ने हाल ही में तालिबान के लिए आतंकी की बजाय तालिबानी लड़ाकों जैसे शब्द का इस्तेमाल किया था जिसपर खूब आलोचना हुई थी। अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी के समर्थकों ने ट्विटर के खिलाफ नाराजगी व्यक्त की है। यह नाराजगी सिर्फ अमेरिका तक ही सीमित नहीं है। फ्रांसीसी राजनेता जेरोम रिवेरे ने भी ट्वीट किया: “ट्विटर स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं कर रहा है वह ट्रम्प के खाते पर प्रतिबंध लगाना जारी रखता है, लेकिन तालिबान के प्रवक्ता को स्थान देता है।”
जहां एक तरफ ट्विटर का तालिबानी अकांउट पर यह रवैया है वही फेसबुक ने तालिबान को अपने मंच से वर्षों के लिए प्रतिबंधित कर दिया है। कोई भी सोशल मीडिया कंपनी “आतंकी संगठनों” की एक गुप्त सूची रखती है, जिससे जुड़े अकाउंट्स को वह बंद करता है। फेसबुक के एक प्रवक्ता ने कहा: “तालिबान को अमेरिकी कानून के तहत एक आतंकवादी संगठन के रूप में प्रतिबंधित किया गया है और इसी के तहत फेसबुक और इंस्टाग्राम से भी प्रतिबंधित कर दिया गया है।”
फोर्ब्स के मुताबिक, ट्विटर यह मानता है कि तालिबान आधिकारिक आतंकवादी संगठन नहीं हैं क्योंकि वह विदेश मंत्रालय की विदेशी आतंकवादी संगठनों की सूची में नहीं आता है। हालांकि, वह अमेरिका के ही दूसरे विभागों द्वारा आतंकी संगठन माना जाता है। ट्विटर इसी को आधार बनाकर पाबंदियां लगाता है। उदाहरण के लिए, ट्विटर ने नवंबर 2019 में हमास और हिज़्बुल्लाह से जुड़े खातों को हटा दिया क्योंकि वह सरकार द्वारा विदेशी आतंकवादी संगठन मानी जाती है।
ट्विटर को अपने समझ से काम लेना चाहिए। जैक डार्सी को अपने ‘वामपंथी विचारों’ से बाहर निकलना चाहिए। जैक डार्सी बता चुके हैं कि उनकी कम्पनी में अधिकतर लोग वामपंथी विचारधारा को समर्थन देते हैं। खुद उनकी कम्पनी में यह स्थिति है कि दक्षिणपंथी लोगों को अपना मत रखने का स्थान नहीं मिल पाता है। जरूरी यह भी है कि भारत सरकार अपने देश में बने सोशल नेटवर्किंग साइट्स को आगे बढ़ाएं। तालिबान को रूस और यूरोपियन यूनियन आतंकी संगठन मानते हैं लेकिन फिर भी ट्विटर अमेरिका की ही बातों को मानता है और वह अपने ही पूर्वाग्रहों मे फंसा हुआ एक मंच है।