भारत में खेलों का इतिहास बहुत ही समृद्ध रहा है। दुनिया को हम भारतीयों ने अलग-अलग प्रकार के खेल और उसकी विधाओं से भी सुसज्जित किया है जैसे शतरंज, तीरंदाजी। इतना ही नहीं हम भारतीयों ने उन खेलों में भी अपने झंडे गाड़े हैं जो मूल रूप से पाश्चात्य संस्कृति की देन है जैसे क्रिकेट, हॉकी। ओलंपिक में धीरे-धीरे ही सही लेकिन हम एक गौरवशाली उत्कर्ष की तरफ बहुत ही तीव्र गति से आगे बढ़ रहे हैं। इसके साथ ही कुछ नवयुग के क्रीडा विधाओं में भी भारतीयों ने बहुत ही पुरजोर तरीके से अपनी दस्तक दी है। इन सारे नामों में सबसे महत्वपूर्ण और रेखा अंकित करने योग्य नाम जेहान दारुवाला का है।
केवल इक्कीस वर्ष की आयु में ही दारुवाला को भारत की अगली ‘F1’ आशा के रूप में देखा जा रहा है। जेहान दारुवाला का जन्म मुंबई में खुर्शीद और कानाज़ दारुवाल के एक पारसी परिवार में हुआ था। उन्होंने बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल, माहिम में अध्ययन किया। उनके पिता खुर्शीद, शापूरजी पल्लोनजी की एक सहयोगी कंपनी स्टर्लिंग एंड विल्सन के वर्तमान एमडी हैं।
उन्हें रेड बुल रेसिंग द्वारा एक जूनियर टीम ड्राइवर के रूप में चुना गया है जो फॉर्मूला 1 में सीट पाने का अवसर प्रदान करता है। वर्तमान में जेहान कार्लिन रेसिंग के लिए एफआईए फॉर्मूला 2 की श्रृंखला में प्रतिस्पर्धा कर रहें है जिसमें रेड बुल के 2 रेसिंग जूनियर ड्राइवर शामिल हैं। श्रृंखला को भविष्य के फॉर्मूला 1 सितारों के लिए अंतिम प्रशिक्षण मैदान के रूप में जाना जाता है जो कि सहायक श्रृंखला के रूप में F1 ग्रांड प्रिक्स के साथ आयोजित की जाती है।
FIA F2 चैंपियनशिप में अपनी शुरुआत से पहले, जेहान दारुवाला 2019 FIA F3 सीज़न में तीसरे स्थान पर रहे, जो एक आधिकारिक FIA फीडर सीरीज़ में किसी भारतीय के लिए सर्वोच्च स्थान है। 7 साल की उम्र में बच्चा पहली बार कार्ट में बैठा था। तेरह साल की उम्र में, उन्हें सहारा फोर्स इंडिया अकादमी के लिए चुना गया था, जो कि ‘वन फ्रॉम ए बिलियन’ टैलेंट हंट से उभरने वाली सबसे प्रतिभाशाली प्रतिभा थी। वह अकादमी में एकमात्र भारतीय थे।
जेहान दारुवाला ने अपनी किशोरावस्था में ही यूरोपीय ट्रैक पर प्रतिस्पर्धा करना शुरू कर दिया और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी फॉर्मूला रेनॉल्ट श्रृंखला में पोडियम हासिल करना शुरू कर दिया। वह पहले ही पंद्रह पोडियम हासिल कर चुके हैं – जिनमें से 10 यूरोपीय हैं – रेसिंग के अपने पहले दो वर्षों में किसी भारतीय द्वारा जीते गए सर्वोच्च। उन्होंने CIK FIA एशिया पैसिफिक KF3 चैंपियनशिप और MSA सुपरवन KF3 ब्रिटिश चैंपियनशिप जीतने के बाद 2015 में सिंगल-सीटर रेसिंग की दुनिया में प्रवेश किया।
उन्होंने यूरोपीय कार्टिंग सर्किट पर भी अपनी योग्यता साबित की, विश्व कार्टिंग चैम्पियनशिप में तीसरे और जर्मन चैम्पियनशिप में दूसरे स्थान पर रहे। अपने पहले फॉर्मूला रेसिंग वर्ष में फॉर्मूला रेनॉल्ट 2.0 एनईसी में चार पोडियम और पांच ‘बेस्ट रूकी’ ट्राफियां हासिल कीं और शीर्ष पांच में जगह बनाई । उन्होंने 2016 की शुरुआत एक उच्च स्तर के प्रयासों से की, जब उन्होंने न्यूजीलैंड में टोयोटा रेसिंग सीरीज़ में दूसरा स्थान हासिल किया और ग्रैंड प्रिक्स रेस जीतने वाले एकमात्र भारतीय हैं। न्यूजीलैंड ग्रां प्री में जेहान दारुवाला करुण चंडोक के बाद दूसरे भारतीय हैं जिन्हें मोटर रेसिंग में सबसे विशिष्ट क्लब ब्रिटिश रेसिंग ड्राइवर्स क्लब (बीआरडीसी) राइजिंग स्टार्स प्रोग्राम में शामिल किया गया है।
जेहान दारुवाला भारत का एक मोटर रेसिंग कौतुक है, जो रैंक बढ़ा रहा है और वर्तमान में फॉर्मूला टू चैंपियनशिप में प्रतिस्पर्धा कर रहा है। जेहान दारुवाला का जन्म कोई मोटरस्पोर्ट रेसिंग परिवार में नहीं हुआ था। वह अपने खेल के प्रति कम उम्र से ही जुनूनी और अधिक गंभीर होने लगा l जेहान दारुवाला ने नौ साल की उम्र में ही मोटर रेसिंग के क्षेत्र में कैरियर बनने के विचारों को आश्रय देने से पहले फर्नांडो अलोंसो के साथ मनोरंजक कार्टिंग के रूप में में शुरुआत की जो की उनके रेसिंग हीरो हैं। 10 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता से कहा कि वह एक पेशेवर रेसिंग ड्राइवर बनना चाहतें है और, अपने परिवार द्वारा प्राप्त समर्थन से उन्होंने 13 साल की उम्र में रेसिंग ट्रैक पर दौड़ना शुरू कर दिया और पूरे एशिया और यूरोप में खिताब हासिल किया।
जेहान दारुवाला का सफर इस बात का परिचायक है की अगर इंसान ठान ले तो एकदम विषम और पूर्णतः अपरिचित क्षेत्र में भी अपने भविष्य को नया आयाम दे सकता हैl उन्होंने राष्ट्र को गौरवान्वित किया है इसके लिए उनके प्रतिभा की जितनी प्रशंसा की जाये कम हैl अतः दिनकर जी की पंक्तियों से उसे समेटने का लघु प्रयास करते है:
है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके मनाव के मन में
ख़म ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते है पाँव उखड
मानव जब जोर लगता है
पत्थर पानी बन जाता है l