अब रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा भारत, सरकार ने महिंद्रा डिफेंस को दिया 1350 करोड़ का कॉन्ट्रैक्ट

‘आत्मनिर्भर भारत’ से ही दुनिया की सुपरपावर बनेगा हिंदुस्तान!

महिंद्रा डिफेंस

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आत्मनिर्भर भारत के विचार को राष्ट्रीय नीति का आधार बनाने के बाद ही ऑक्सफ़ोर्ड हिंदी द्वारा आत्मनिर्भरता को साल का शब्द चुना गया था। जिस समय राष्ट्र के समक्ष यह विचार रखा गया था, उस वक्त बहुत से लोग संदेह कर रहे थे। सन्देह इसलिए कर रहे थे क्योंकि भारत बहुत सी चीजें विदेश से आयात करता है। उन सारी चीजों में बड़ा हिस्सा रक्षा सम्बंधी चीजों का होता था। अब आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए रक्षा मंत्री ने महिंद्रा डिफेंस को 1350 करोड़ रुपए की रक्षा सामग्रियों के लिए कॉन्ट्रैक्ट दे दिया है

किसी भारतीय फर्म को इतनी बड़ी परियोजना का कॉन्ट्रैक्ट देना शायद कुछ खास की शुरुआत हो और अगर मोदी प्रशासन घरेलू बाजार और कंपनियों को पुनर्जीवित करने पर अपना ध्यान केंद्रित करता है, तो भारत जल्द ही एक प्रमुख रक्षा खिलाड़ी बन सकता है।

रक्षा मंत्रालय ने भारतीय नौसेना के आधुनिक युद्धपोतों के लिए Integrated Anti-Submarine Warfare Defence Suite (IADS) के निर्माण के लिए महिंद्रा डिफेंस सिस्टम्स (महिंद्रा समूह की इकाई) को 1,349.95 करोड़ रुपये का ठेका दिया है। IADS  पानी के नीचे का एक उच्च स्तरीय उपकरण है जो पानी के नीचे के खतरों से युद्धपोत को बचाता है। दुश्मन के युद्धपोतों का पता लगाने और उससे रक्षा करने के लिए IADS नवीनतम तकनीक का उपयोग करता है। यह एक बहुमुखी प्रणाली है जो सभी प्रकार के युद्धपोतों – छोटे, मध्यम और बड़े खतरों से निपटने में सक्षम है। ऐसे उपकरण पहले फ्रांस, ब्रिटेन और इजरायल जैसे देश ही बनाते थे और बेचते थे।

मंत्रालय ने बताया कि, “रक्षा खरीद की ‘खरीदें और बनाएं (भारतीय)’ श्रेणी के तहत एक भारतीय फर्म के साथ अनुबंध भारत के ‘आत्मनिर्भर भारत’ मिशन को एक अहम बढ़ावा है और प्रौद्योगिकी विकास तथा उत्पादन में स्वदेशी रक्षा उद्योग को एक बड़ा प्रोत्साहन प्रदान करता है। यह प्रणाली भारतीय नौसेना की पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमता को बढ़ाएगी।”

IADS नेविगेशन सेंसर पानी के भीतर निगरानी करती है और सिग्नल प्रोसेसिंग तथा विश्लेषण के लिए इनपुट प्रदान करती है। महिंद्रा कंपनी ने बताया कि युद्धपोत पानी के नीचे के खतरों को बेअसर करने के तरीकों में सक्षम होगी।

कंपनी ने अपने बयान में कहा, “महिंद्रा डिफेंस ने बोली लगने से पहले समुद्र में वास्तविक संचालन करके भारतीय रक्षा मंत्रालय द्वारा व्यापक परीक्षण के माध्यम से प्रणाली की क्षमता को साबित किया और कांट्रैक्ट प्राप्त किया है।”

यह उन्नत प्रौद्योगिकी प्रणाली, भारतीय नौसेना के लिए किसी निजी भारतीय कंपनी द्वारा विकसित की जा रही अपनी तरह की पहली सिस्टम है। महिंद्रा डिफेंस भारतीय नौसेना के युद्धपोतों के लिए 14 IADS सिस्टम की आपूर्ति करेगा।

महिंद्रा डिफेंस सिस्टम्स लिमिटेड के अध्यक्ष एसपी शुक्ला ने आत्मनिर्भर भारत अभियान की सराहना करते हुए कहा, “यह निजी क्षेत्र के साथ पहला बड़ा अनुबंध है जो पानी के भीतर का पता लगाने और खतरों से सुरक्षा के लिए है। यह अनुबंध एक बार फिर आत्मनिर्भर भारत पहल की सफलता का प्रतीक है।”

EEL भी दे चुका है स्वदेशी ग्रेनेड

TFI ने भी इसी सप्ताह अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव्स लिमिटेड (EEL) नाम की एक अन्य निजी स्वदेशी फर्म ने सरकार द्वारा दिखाए गए विश्वास को दोहराया और भारत-निर्मित मल्टी-मोड हैंड ग्रेनेड (MMHG) का पहला बैच दिया था। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की टर्मिनल बैलिस्टिक अनुसंधान प्रयोगशाला से प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के बाद ग्रेनेड का विकास संभव हुआ था।

ग्रेनेड के निर्माण और वितरण में ईईएल और महिंद्रा डिफेंस सिस्टम्स लिमिटेड की सफलता बताती है कि रक्षा के क्षेत्र में भी निजी फर्म सैन्य उपकरणों के विकास को पूरा करते हैं।

‘मेक इन इंडिया’ के आत्मनिर्भर भारत

नरेंद्र मोदी के भारत के प्रधान मंत्री बनने के तुरंत बाद, भारत को वैश्विक डिजाइन और विनिर्माण केंद्र बनाकर राष्ट्र-निर्माण के व्यापक उद्देश्य के साथ सितंबर 2014 में ‘मेक इन इंडिया’ पहल शुरू की गई थी।

निर्माताओं को भारत में अपनी इकाइयां स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए अप्रचलित नियमों और विनियमों में परिवर्तन किए गए थे। रक्षा से लेकर रेलवे तक के विभिन्न क्षेत्रों को निवेश के लिए सुव्यवस्थित किया गया और सुधार के लिए इन क्षेत्रों में प्राथमिक नियमों को समाप्त कर दिया गया था।

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आत्मनिर्भर भारत अभियान ने रक्षा को एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में मान्यता दी, जहाँ भारत को आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता थी। वर्तमान में,  भारत, दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा सैन्य खर्च करने वाला, तथा 2016-20 के बीच हस्तांतरित हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा आयातक भी है, जोकि वैश्विक हथियारों के आयात का 9.5 प्रतिशत हिस्सा है।

FDI भी बढ़ाई गयी

भारत सरकार ने नए रक्षा औद्योगिक लाइसेंस की मांग करने वाली कंपनियों के लिए स्वचालित मार्ग के माध्यम से रक्षा क्षेत्र में 74 प्रतिशत तक और सरकारी मार्ग से 100 प्रतिशत तक एफडीआई को बढ़ाया है, जहां कहीं भी आधुनिक तकनीक या अन्य के लिए इसका उपयोग होने की संभावना है।

लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस, ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट सी -295 और एके -203 राइफल्स कई घरेलू परियोजनाओं में से कुछ हैं। सरकार ने इस क्षेत्र में बहुत अधिक लालफीताशाही को दूर किया है और इसलिए महिंद्रा डिफेंस सिस्टम्स लिमिटेड और ईईएल जैसी फर्मों को प्रोत्साहित किया जा रहा है और उन्हें अपनी योग्यता साबित करने का अवसर दिया जा रहा है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा 52000 करोड़ रुपये देशी ठेके के तौर पर देने की योजना बनाई गई थी। इस ठेके में 100 से ज्यादा सामान देश के द्वारा ही बनाया जाना तय किया गया है। इसमें राडार, कॉरवेट, टैंक शामिल है। रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देने के लिए, घरेलू विक्रेताओं से खरीद के लिए 52,000 करोड़ रुपये का अलग बजट निर्धारित किया गया है।

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वर्ष 2021-22 के लिए कुल Capital Acquisition Budget  में से 64.09% domestic capital procurement के लिए निर्धारित किया गया है। साथ ही 2021-22 के बजट में Defence capital outlay में 18.75 प्रतिशत की वृद्धि की गई है।

रक्षा क्षेत्र को पहले ही ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने के लिए एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में पहचाना जा चुका है जहां तत्काल परिवर्तन की आवश्यकता है। रक्षा मंत्रालय द्वारा हाल ही में 101 रक्षा वस्तुओं की घरेलू उत्पादन पर सूची जारी करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा, “एक निश्चित अवधि के बाद इन वस्तुओं की खरीद बाहर से नहीं की जाएगी। यह सूची उस प्रक्रिया की शुरुआत है जिसमें रक्षा उद्योग को बदलने की क्षमता है। 101 वस्तुओं की इस सूची में न केवल छोटे उपकरण है बल्कि युद्ध प्रणाली, एकीकृत असेम्बली लाइन, लड़ाकू वाहन भी शामिल हैं। यह सूची अभी शुरुआत है, जिससे आने वाले समय में 1.40 लाख करोड़ रुपये के रक्षा उपकरण घरेलू स्तर पर खरीदे जाएंगे।”

इससे भारत विश्व में अपनी क्षमताओं को बता सकेगा। देश की कम्पनियों को देने से ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी जैसी चीजों के चक्कर में ज्यादा पैसा नहीं देना होगा और देश का पैसा देश में ही रहेगा। भारत के निजी कंपनियों के पास कौशल की कमी नहीं थी, बस हमारी पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा उन्हें कम आंका जा रहा था। उनके कौशल को विश्व के सामने लाने से हमारे यहां की कम्पनियां भी लॉकहीड मार्टिन जैसे नाम कमा सकती है और दुनिया भर से ठेके प्राप्त कर सकती है। आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम तमाम कौशलों को आगे लाएगा।

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