मिजोरम-असम का मामला तब तक नहीं सुलझेगा, जब तक पता नहीं चलेगा कि पहले Trigger दबाने का आदेश किसने दिया

कहीं यह असामाजिक तत्वों का षड्यंत्र तो नहीं ?

असम मिजोरम सीमा

असम और मिजोरम में शुरू हुए खूनी संघर्ष पर केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हस्तक्षेप के बाद दोनों राज्यों में सीमा तनाव और विद्वेष की स्थितियों में नरमी आई है। हाल ही में हुए दोनों राज्यों के बीच मतभेद ने वहाँ के रहवासियों के मध्य कटुता बढ़ा दी थी। उसी को कम करने के लिए अमित शाह ने व्यक्तिगत तौर पर दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों असम से हिमंता बिस्वा सरमा और मिजोरम से जोरामथांगा से फोन पर बातचीत कर सीमा मामले पर राज्य को संयमित बनाए रखने की कोशिशों पर ज़ोर देने के लिए कहा है। परंतु एक बात स्पष्ट है कि जब तक ये पता नहीं चलेगा कि पहले Trigger दबाने का आदेश किसने दिया तब तक यह मामला नहीं सुलझेगा।

दरअसल, 26 जुलाई को असम के कछार जिले से सटे मिजोरम की सीमा पर झड़प हो गई थी। पत्थरबाजी से शुरू हुई झड़प हिंसा में बदल गई और गोलीबारी तक बात पहुंच गई। इस संघर्ष में असम पुलिस के 6 जवान शहीद हो गए थे, हालांकि इस झड़प को लेकर दोनों ही राज्यों के अपने-अपने दावे हैं।

रविवार को दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अंतर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस के अवसर पर शत्रुता को दफन कर एक नयी शुरुआत की है।

अंतर-राज्यीय सीमा सीमांकन एक केंद्रीय विषय है तथा असम और मिजोरम दोनों अब एक स्थायी समाधान खोजने के लिए नई दिल्ली की ओर देख रहे हैं। परंतु कई प्रश्न ऐसे भी हैं जिनका उत्तर अभी तक नहीं मिला है। इन प्रश्नों में सबसे पहला प्रश्न यह है कि विवाद के बीच सबसे पहले गोली चलाने वाला हाथ किसका था?

हालांकि दावे तो दोनों राज्यों के तरफ से किए जा रहे हैं कि परंतु इस गतिरोध में कितनी सत्यता है, यह जांच का विषय है। फिलहाल मेनस्ट्रीम मीडिया में इस तथ्य की जांच को लेकर कोई चीख-पुकार इसलिए ही नहीं हो रही है क्योंकि उन्हें पता है कि इस पूरे मामले में केवल राज्यों की पुलिस या अन्य सुरक्षा बलें शामिल नहीं थी। सोशल मीडिया में सामने आए विडियो में उपद्रवी तत्व जिन हथियारों का प्रयोग करते दिखाई पड़ रहे हैं, वैसे हथियारों का दोनों राज्यों की पुलिस के पास कोई प्रावधान है ही नहीं।

असम के तीन जिले मिजोरम के इलाकों के साथ अपनी सीमा साझा करते हैं और इसके चलते यहां आए दिन पुलिस और आम लोगों के बीच विवाद देखने को मिलता रहता है।

वर्तमान नक्शे के अनुसार मणिपुर के लुशाई हिल्स, असम के कछार और मिजोरम के ट्राईजंक्शन सीमा साझा करता है, लेकिन मिजोरम सरकार इन सीमाओं को स्वीकार नहीं करती। ये मुद्दा दशकों से चल रहा है लेकिन इसे हल करने के प्रयास किसी अन्य सरकार ने नहीं किए। वहीं अब केंद्र की मोदी सरकार इन सभी विवादों को हल करने के लिए कदम उठा रही है। हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह जब पूर्वोत्तर के दौरे पर थे, तो उन्होंने इस मामले को हल करने की नीयत से ही NDA शासित पूर्वोत्तर राज्यों के सभी मुख्यमंत्रियों और मुख्य सचिवों के साथ बैठक की थी।

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इस मामले में प्रमुख तौर पर प्रथम दृष्टया में जो बात सामने आ रही है वो यह है कि क्या वास्तव में उपद्रवियों का संबंध दोनों राज्यों की पुलिस से था, या पुलिस की आड़ में दोनों राज्यों के भीतर पनप रहे आसामाजिक तत्वों ने माहौल बिगाड़ने के लिए यह षड्यंत्र रचा था ताकि राज्य में वो अपना प्रभाव बढ़ा सकें। ज्ञात हो कि पिछले कुछ महीनों में इन्हीं तत्वों ने दोनों राज्यों में धर्म परिवर्तन के जाल को संचालित करना भी शुरू किया था।

जिन अवैध तरीकों का इस्तेमाल करते हुए ये तत्व अपनी योजनाओं को सफल बनाते आए हैं, उसका एक भाग यह अवैध हथियार भी हैं जिनका प्रयोग 26 जुलाई की हिंसा में हुआ था।

पुलिस जब बीच-बचाव की कार्यवाही में जुटी हुई थी, उसी बीच में इन्हीं लोगों ने हिंसा को उग्र करते हुए, दोनों ही राज्यों की जनता के बीच में भय स्थापित करने और माहौल को अस्थिर करने का प्रयत्न किया।

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इस संघर्ष को सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों ने इतिहास से जोड़ने का प्रयास किया और बताया कि किस तरह असम के हिंदुओं के खिलाफ साजिश रची गयी और उन्हें राज्य से भागने पर मजबूर किया गया था। इस घटनाक्रम को ईसाई धर्म से जोड़ते हुए, कई लोगों ने ट्वीट किया कि कैसे इस प्रपंच के तार पूरी तरह से ILLEGAL MIGRANTS और CHRISTIAN MISSIONARIES से जुड़े हुए हैं। अगर इसे सुनियोजित साजिश के तहत उकसायी गयी घटना कहा जाए तो यह गलत नहीं होगा।

 

यह तो तय है कि यह मामला सिर्फ दो राज्यों कि पुलिस से जुड़ा नहीं है, बल्कि इसके पीछे बहुत गहरा षड्यंत्र है, जिसकी पड़ताल उच्चस्तरीय जांच एजेंसियों के हस्तक्षेप से ही संभव है क्योंकि दोनों राज्यों की पुलिस इस मामले में संलिप्त बताई गयी है। अब यह देखना है कि वास्तविक जांच में क्या सच सामने आता है।

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