प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं उनकी कैबिनेट के सबंध में एक बात विख्यात है, कि इनके निर्णयों में एक तीर से कई निशाने साधे जाते हैं। वो निर्णय तो राष्ट्रीय स्तर पर होता है, किन्तु उसके परिणाम चुनावी राज्यों के लिए भी महत्वपूर्ण होते हैं। एक ऐसा ही निर्णय गन्ना किसानों को मिलने वाले ‘उचित एवं पारिश्रमिक मूल्य’ यानी FRP में बढ़ोतरी के संबंध में भी लिया गया है। पिछले वर्ष ही FRP के दाम 10 रूपए बढ़ाए गए थे। वहीं अब मोदी कैबिनेट ने इसमें 5 रुपए की अतिरिक्त बढ़ोतरी कर दी है। इसका असर तो पूरे देश पर ही पड़ेगा, किन्तु चुनावी राज्यों वाले उत्तर प्रदेश में इस निर्णय से बीजेपी के लिए सकारात्मक स्थितियां बनेंगी। गन्ना किसानों से सबंधित ये फैसला अकेला नहीं हैं, क्योंकि ओबीसी आरक्षण से लेकर आर्थिक क्षेत्र में लिए गए निर्णय यूपी चुनाव के लिए सकारात्मक हो सकते हैं।
किसान आंदोलन के जरिए मोदी सरकार के विरुद्ध पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कथित किसानों ने एक अभियान छेड़ रखा है। ऐसे में ये सत्य है कि राकेश टिकैत जैसे कथित किसान नेताओं को असली किसानों द्वारा अधिक भाव नहीं मिल रहा है लेकिन फिर भी इनकी नौटंकियां जारी हैं। वहीं अब मोदी सरकार ने एक नया दांव चल दिया है। मोदी कैबिनेट की बैठक के बाद यह निर्णय किया गया है कि गन्ना किसानों के FRP में 5 रुपए की बढ़ोतरी की जाए है, जिसकी जानकारी सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने ही दी है। उन्होंने बताया, “FRP 5 रुपये प्रति क्विंटल बढ़कर 290 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। पिछले साल FRP में 10 रु प्रति क्विटंल की बढ़ोतरी की गई थी।”
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8 फीसदी एथोनॉल की ब्लेंडिंग से बढ़ेगा 20 फीसदी तक
अपने इस निर्णय एवं सरकार के रोडमैप के संबंध में बात करते हुए पीयूष गोयल ने कहा, “चीनी का एफआरपी 290 प्रति क्विंटल– जो 10 फीसदी रिकवरी पर आधारित होगा। शुगर का 70 लाख टन एक्सपोर्ट होगा, जिसमें से 55 लाख टन हो चुका है। अभी 7.5 फीसदी से 8 फीसदी एथोनॉल की ब्लेंडिंग हो रही है। अगले कुछ साल में ब्लेंडिंग 20 फीसदी हो जाएगा। आज के फैसले के बाद भारत एक मात्र देश होगा, जहां शुगर प्राइस का लगभग 90 – 91% गन्ना किसानों को मिलेगा। विश्व के देशों में शुगर प्राइस का 70 से 75% गन्ना किसानों को मिलता है।”
पीयूष गोयल ने ये भी बताया है कि मोदी सरकार किस तरह से गन्ना किसानों के हितों के लिए प्रतिबद्ध है, एवं उन्हें उचित समय पर भुगतान करने की प्लानिंग कर रहे है। उन्होंने कहा, “शुगर ईयर 2020 – 21 में गन्ना किसानों को 91,000 करोड़ का भुगतान करना था, जिसमें से 86,000 करोड़ का भुगतान हो चुका है। यह दर्शाता है कि केंद्र सरकार की योजनाओं के कारण गन्ना किसानों को अपने भुगतान के लिये इंतजार नही करना पड़ता है।”
गन्ना बेल्ट के किसानों को साधने की है रणनीति
गन्ना किसानों के संबंध में लिया गया ये निर्णय उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश को तो गन्ना बेल्ट ही कहा जाता है। इसके बावजूद यहां मोदी सरकार के विरुद्ध सर्वाधिक विरोध हो रहा है। ऐसे में ये माना जा रहा है कि गन्ने की एफआरपी के संबंध में मोदी सरकार द्वारा लिया गया फैसला गन्ना किसानों एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को साधने की रणनीति है। यही कारण है कि मोदी सरकार के इस फैसले को चुनावी परिपेक्ष्य में दिल्ली में बैठे बैठे खेला गया मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है।
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OBC पर भी है नजर
कुछ इसी तरह मोदी कैबिनेट के विस्तार में ओबीसी समाज के प्रतिनिधित्व में जो विस्तार किया गया है, वो भी अभूतपूर्व ही है। सभी जातिगत रणनीतियों के आधार पर आज 14 मंत्री मोदी कैबिनेट में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। स्पष्ट है कि यूपी चुनाव में ओबीसी वोट बैंक की भूमिका बेहद ही अहम होगी।
इससे पहले, केंद्र सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए कि उत्तर प्रदेश सरकार अपनी ओबीसी सूची बना सकती है, संविधान (एक सौ बीसवीं संशोधन) विधेयक, 2021 पारित किया। यह विधेयक राज्य सरकारों को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की अपनी सूची बनाने की अनुमति देता है, जिन्हें आमतौर पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के रूप में जाना जाता है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, योगी सरकार राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश पर 39 जातियों को ओबीसी सूची में शामिल करने की तैयारी कर रही है।
ये 39 जातियां हैं वैश्य, जायस्वर राजपूत, रूहेला, भूटिया, अग्रहरी, दोसर, मुस्लिम शाह, मुस्लिम कायस्थ, हिंदू कायस्थ, क्षत्रिय राजपूत, दोहर, अयोध्यावासी वैश्य, बरनवाल, कमलापुरी वैश्य, केसरवानी वैश्य, बगवां, भट्ट, उमर बनिया, महौर वैश्य, हिंदू भाट, गोरिया, पंवरिया, उमरिया, नोवाना और मुस्लिम भट।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा गठित मोस्ट बैकवर्ड सोशल जस्टिस कमेटी (एमबीएसजेसी) ने ओबीसी उपजातियों को तीन श्रेणियों में विभाजित करने की सिफारिश की – पिछड़ा, अति पिछड़ा और सर्वधिक पिछड़ा। 12 उपजातियों को पिछड़ी श्रेणी में, 59 को अति पिछड़ी श्रेणी में तथा 79 को अति पिछड़ी श्रेणी में रखा गया है। प्रत्येक समूह को ओबीसी के लिए आवंटित कुल 27 प्रतिशत में से 9 प्रतिशत आरक्षण मिलने की उम्मीद है।
पिछड़े समुदाय में यादव और जाट जैसी जातियां शामिल होंगी, जो वर्तमान में 27 प्रतिशत कोटे में से अधिकांश को छीन लेती हैं जबकि ओबीसी श्रेणी की अन्य जातियां हाशिए पर हैं। इन जातियों का कोटा 9 प्रतिशत तक सीमित रहेगा। विधानसभा चुनाव से पहले नया कोटा सिस्टम लागू हो सकता है। कैबिनेट विस्तार के साथ-साथ ओबीसी कोटे के संशोधन से यह बहुत स्पष्ट है कि भाजपा चुनाव जीतने के लिए उच्च जाति, गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव एससी के संयोजन पर भरोसा कर रही है क्योंकि इस फॉर्मूले ने हर पार्टी के लिए काम किया है।
इतना ही नहीं, विकास के मुद्दे पर डिफेंस कॉरिडोर से लेकर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पीएम मोदी के नेतृत्व में ताबड़तोड़ तरीके से काम हो रहा है। ऐसे में ये कहा जा सकता है कि पीएम मोदी यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर अभी सक्रिय नहीं है, इसके बावजूद दिल्ली में बैठे-बैठे ही वो बीजेपी के लिए यूपी विधानसभा चुनाव के लिए एक सकारात्मक माहौल तैयार कर रहे हैं, जो कि पहले से टूटे पड़े विपक्ष को बिखेर सकता है।