तालिबान 2.0 के झूठे बखान में जुटी है NDTV समेत वामपंथी मीडिया, जबकि सच एकदम उल्टा है

सच ये है कि तालिबान 2.0 महिलाओं को लेकर पहले से भी ज्यादा क्रूर है।

एनडीटीवी तालिबान

निर्लज्जता, उद्दंडता और बेशर्मी इन सभी शब्दों से एनडीटीवी का शायद ही कोई वास्ता रह गया है। जिस बेशर्मी से वह देशद्रोही तत्वों को बढ़ावा देती है, उससे कोई भी अपरिचित नहीं है, लेकिन अब तो हद ही हो गई। अल्पसंख्यक तुष्टीकरण और अपने एजेंडे को पूरा करने के लिए अब एनडीटीवी तालिबान को हीरो बनाने पर जुटा है।

वामपंथी मीडिया में तालिबान को हीरो बनाने की दौड़ में एनडीटीवी सबसे आगे है। एनडीटीवी ने इस दौड़ में अब बीबीसी और अल जज़ीरा को भी पीछे छोड़ दिया है।

 

एनडीटीवी के ट्वीट के अनुसार, “तालिबान को सत्ता प्राप्त किए 48 घंटे से अधिक हो चुके हैं, परंतु अपने व्यवहार से वह जताना चाहता है कि वह पहले जैसा दुर्दांत और क्रूर नहीं है” इतनी निर्लज्जता से तो औड्रे ट्रूशके ने मुगल आक्रांता औरंगज़ेब का भी बचाव नहीं किया होगा, जितनी निर्लज्जता से एनडीटीवी का पत्रकार श्रीनिवासन जैन तालिबानियों का बचाव कर रहा है।

हालांकि जो व्यक्ति तालिबान के प्रमुख प्रवक्ता को अपने चैनल पर बुलाकर तालिबान के प्रोपगैंडा को खुलेआम बढ़ावा दे सकता है, जो व्यक्ति सिर्फ इस बात से 2020 के ननकाना साहिब के हमले से कुपित है कि इससे CAA विरोधी प्रोपगैंडा कमजोर हो जाएगा, उससे आप और क्या आशा कर सकते हैं।

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इसके अलावा जरा इस ट्वीट शृंखला पर भी एक दृष्टि डालिए –

तालिबान की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर वामपंथियों के ट्विट।

ये सभी वामपंथी एक्टिविस्ट या फिर पत्रकार हैं। तालिबान के एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करने पर ये लोग उसे उदारवादी, सौम्य और लोकतांत्रिक सिद्ध करने के प्रयास में जुटे हैं। इसे देखकर कहीं न कहीं अपनी कब्र में हिटलर का प्रोपगैंडा मंत्री जोसेफ गोएबल्स भी पेट पकड़कर हंस रहा होगा। आखिर कोई इतनी बेशर्मी से इतना सफेद झूठ कैसे बोल सकता है?

इनकी निर्लज्जता और इनके सफेद झूठ की पोल खुलते देर नहीं लगी। अफगानिस्तान में महिलाओं की तस्वीरों पर, उनके पोस्टर्स पर पेंटिंग की जा रही है। महिलाओं और बच्चियों के साथ हो रहे अत्याचार धीरे-धीरे ही सही लेकिन सामने आ रहे हैं। इससे इतना तो स्पष्ट है कि तालिबानी 2.0 भी महिलाओं के लिए वैसा ही साबित नहीं होगा जैसा कि इससे पहले का तालिबानी शासन था।

न्यू यॉर्क टाइम्स जैसे वामपंथी पोर्टल भले ही इस प्रकार की ख़बरें दिखाकर ये जताना चाह रहे हों कि तालिबान अब पहले जैसा नहीं रहा, परंतु तालिबान की हरकतें तो कुछ और ही कह रही हैं। जलालाबाद में तालिबानी शासन के विरुद्ध विद्रोह के रूप में अफ़गान निवासियों ने तालिबानी ध्वज हटाकर राष्ट्रीय ध्वज फहराया, जिसके उत्तर में तालिबानियों ने उनका स्वागत गोलियों से किया।

अब भी आप कहेंगे कि यह पहले वाला तालिबान नहीं है? इसके अलावा हाल ही में ये खबर सामने आई है कि तालिबानियों के विरुद्ध शस्त्र उठाने वाली महिला सलीमा मज़ारी को तालिबानियों ने अगवा कर लिया है।

सलीम अफगानिस्तान के एक प्रांत की राज्यपाल भी रह चुकी हैं, और वह अफगानिस्तान के चुनिंदा महिला राजनीतिज्ञों में से एक हैं। इसके साथ ही कल भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में तालिबान ने ऐलान किया कि महिलाओं को सभी अधिकार दिए जाएंगे लेकिन वो शरियत के अनुसार होंगे।

ये बिल्कुल उसी तरह से है जैसे किसी गरीब व्यक्ति से कहा जाए कि उसे मर्सिडीज़ दी जाएगी अगर उसके पास इसे खरीदेने के पैसे हों। शरियत में महिलाओं को कोई अधिकार हैं ही नहीं। इसका अर्थ क्या ये नहीं है कि तालिबान दुनिया को वही सुना रहा है जोकि दुनिया सुनना चाहती है, या फिर अपने एजेंडे के द्वारा वही प्रचारित कर रहा है जोकि दुनिया की ताकतें सुनना चाहती हैं जबकि हकीकत में वहां महिलाओं पर अत्याचार और पाबंदियां जारी हैं।

तालिबान के काबुल में दाखिल होने के साथ ही टीवी स्टूडियो में बैठी हुई महिला पत्रकारों ने अपने सिर पर बुर्का पहन लिए। क्या ऐसे ही अधिकार तालिबान महिलाओं को देने जा रहा है, लेकिन इससे इतर वामपंथी मीडिया पूरी दुनिया में ख़ासतौर से भारत में तालिबान का एजेंडा फैलाने में लगा है। एनडीटीवी जैसे चैनल तो तालिबान की ऐसे बढ़ाई कर रहे हैं, मानो उन्होंने अंतरिक्ष में जाने के लिए कोई नया मार्ग ढूंढ निकाला हो।

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