हिंदुओं के मंदिरों समेत पुजारियों से टैक्स लो और फिर टैक्स का वही पैसा चर्च के पादरियों और नन को विकास के नाम पर दे दो। केरल की सरकारें ये खेल ईसाईयों के तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति के अंतर्गत हमेशा ही खेलती थीं। मुख्यमंत्री पिनरई विजयन के नेतृत्व में चल रही सरकार इस पूरे पैटर्न के लिए अनुच्छेद 25 का उदाहरण देती थी, किन्तु अब ईसाई तुष्टीकरण करने वाली केरल सरकार को केरल हाईकोर्ट की ओर से दिए गए एक निर्णय से बड़ा झटका लगा है। केरल हाईकोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि किसी भी पादरी या नन का टैक्स माफ नहीं किया जाएगा।
कोर्ट ने आगे कहा कि अनुच्छेद-25 टैक्स संबंधी कोई छूट नहीं देता है, इसलिए सभी को टैक्स देना अनिवार्य होगा, एवं टैक्स देने से बचने के लिए धर्म या अनुच्छेद-25 का सहारा नहीं लिया जा सकता है।
हमने अकसर देखा है कि केरल की पिनरई विजयन सरकार ईसाईयों के तुष्टीकरण की नीति से तनिक भी परहेज नहीं करती है। कुछ ऐसी कुरीतियां हैं जिन्हें मोदी सरकार ने खत्म करने का काम किया है, किंतु केरल में मोदी सरकार के इन फैसलों को चुनौती दी जा रही है, जिसको लेकर केरल हाईकोर्ट का निर्णय याचिकाकर्ताओं के लिए झटका साबित हुआ है।
धार्मिक संस्थानों और सरकार से धन प्राप्त करने वाले धार्मिक व्यक्तियों के संबंध में 2014 के संशोधित कानून में स्पष्ट तौर कहा गया है कि सरकारी संस्थानों से वेतन प्राप्त करने वाले धार्मिक कर्मचारी भी टीडीएस जमा करने के दायरे में आएंगे। इसके विपरीत केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इस कानून को खत्म करने की बात कही गई थी, जिस पर कोर्ट ने सख्त प्रतिक्रिया दी है।
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याचिकाकर्ताओं की मांगों को लेकर केरल हाईकोर्ट ने अत्यधिक कड़ा रुख दिखाया है। केरल हाईकोर्ट की जस्टिस एसवी भट्टी और जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस की बेंच ने कहा कि अनुच्छेद-25 के अंतर्गत किसी भी धार्मिक व्यक्ति को टैक्स देने में छूट नहीं मिलती है। कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट तौर पर कहा कि सभी पादरियों और ननों को टीडीएस समेत सभी तरह के टैक्स देने अनिवार्य होंगे।
कोर्ट ने कहा, “सरकारी और सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में काम करने के दौरान मिलने वाले वेतन पर टैक्स कटौती की अनुमति है। अनुच्छेद-25 धर्म के आधार पर टैक्स में कोई छूट प्रदान नहीं करता है।”
इस पूरे प्रकरण की आधारशिला कोई आज की नहीं बल्कि देश की स्वतंत्रता के पहले की ही है। देश की स्वतंत्रता से पहले वर्ष 1944 से ही सरकारी व सहायता प्राप्त संस्थानों द्वारा नन और पादरी को दिया जाने वाला वेतन टीडीएस टैक्स कटौती के अन्तर्गत नहीं आता था, जिससे इन पादरियों को सरकरी अनुदान का पूरा पैसा मिलता था, लेकिन नियम बदलने के बाद बैकफुट पर गए ईसाई धर्म के लोगों की मांग थी कि 1944 केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के परिपत्रों का ही पालन हो।
महत्वपूर्ण बात ये भी है ईसाईयों का पक्ष लेने वालों का कहना था कि पादरी और नन अपना वेतन धार्मिक संस्थानों और चर्चों में ही दे देते हैं। वहीं, कैनन कानून का हवाला देने वाले याचिकाकर्ताओं को लताड़ते हुए कोर्ट ने कहा कि कोई भी कानून इनकम टैक्स के नियमों और कानूनों से बड़ा नहीं हो सकता है।
गौरतलब है कि केरल में ईसाईयों और मुस्लिमों का वोट बैंक के नाम पर तुष्टीकरण होता था। यहां मंदिरों के पुजारियों से सरकार टैक्स लेती थी, किन्तु पादरियों और मौलानाओं को इस टैक्स में अनुच्छेद-25 के आधार पर छूट दी जाती थी। इतना ही नहीं हिंदुओं द्वारा दिया गया पैसा भी सरकार इन कर्मचारियों के नाते पादरियों और मौलानाओं क़ो ही दे देती थी। अब केरल हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद ये पूरी स्थिति पलट गई है।
केरला हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब न केवल पादरियों और ननों को अपितु मुस्लिमों मौलानाओं को भी सरकारी अनुदान के ऊपर उचित टैक्स और टीडीएस देना पड़ेगा, जोकि केरल हाईकोर्ट के एतिहासिक फैसले के कारण संभव हुआ है।