अक्सर हमने देखा है कि कई विषयों पर केंद्र और राज्यों में टकराव होता है, जिसका दुष्परिणाम पूरे देश को भुगतना पड़ता है। उदाहरण के लिए पेट्रोल के दामों पर दोनों की हठधर्मिता का ही परिणाम है कि आज तक यह जीएसटी के दायरे में नहीं आया, जिसके कारण पूरे देश में पेट्रोल के एक जैसे दाम नहीं है। लेकिन अब केंद्र सरकार एक नए संविधान (127 वां )संशोधन पर जोर दे रही है, जो इस खींचतान पर न सिर्फ लगाम लगाएगी, बल्कि राज्यों को उनके लोकलुभावन नीतियों के लिए जिम्मेदार भी बनाएगी। हाल ही में कैबिनेट ने एक विधेयक पारित करने का निर्णय किया है, जो राज्यों को अपने ओबीसी लिस्ट चुनने का अधिकार पुनः देगी।
दरअसल, ईकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार की कैबिनेट ने हाल ही में संविधान के अनुरूप 127 वां संशोधन विधेयक को क्लियर किया है, जिसके अंतर्गत वे संविधान के अनुच्छेद 342 A और अनुच्छेद 366 [26] C को संशोधित करेगी। इससे राज्यों को पुनः अपने अनुसार जातियों को ओबीसी में शामिल करने या उन्हें सूची से बाहर करने का अधिकार मिल जाएगा। यह अधिकार प्रारंभ में उन्हीं के पास था, परंतु वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिकार को निरस्त कर दिया था।
अब यहाँ सवाल यह है इससे केंद्र को क्या लाभ होगा? यह राज्यों को कैसे नियंत्रण में रखेगा? इसे समझने के लिए हमें मराठा आरक्षण मुद्दे पर ध्यान देने की आवश्यकता है। मराठा समुदाय चाहता था कि उसे आरक्षण मिले, लेकिन उसकी मांगों को कई वर्षों तक अनदेखा किया जाता रहा। इसे लेकर कई आंदोलन हुए और अंत में 2018 में मराठा समुदाय को आरक्षण मिला। इसी के बल पर शिवसेना और भाजपा का गठबंधन 2019 में पुनः सत्ता प्राप्त करने में सफल रहा था। हालांकि, इस आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया, क्योंकि राज्य सरकार के इस कदम से राज्य में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से भी ऊपर जा रही थी। इसी तरह राजस्थान में जाट आरक्षण के मुद्दे को लेकर भी बवाल हो चुका है।
ऐसे में यदि केंद्र सरकार 127 वें संविधान संशोधन विधेयक को पारित करा लेती है, तो ये जिम्मेदारी राज्यों की हो जाएगी कि वे किस प्रकार से जातियों को ओबीसी लिस्ट में समाहित करते हैं। इस प्रकार से यदि राज्य में किसी भी समुदाय की आरक्षण की मांग पूरी नहीं होती है तो राज्य सरकारें इसके लिए केंद्र को दोषी नहीं ठहरा पाएँगी। इससे राज्य सरकारें अपने ही वादों के बोझ तले दबने को मजबूर हो जाएंगी। ऐसा इसलिए क्योंकि जब राज्यों को ओबीसी सूची को फेरबदल की ताकत अधिक होगी, तो उनपर जिम्मेदारी भी अधिक होगी। ऐसे में राज्य सरकारें पहले की भांति अपनी ज़िम्मेदारियों से नहीं बच पायेंगी।
ऐसे में केंद्र सरकार का वर्तमान विधेयक एक ही तीर से दो निशाना साधने जा रही है। एक तरफ वह आरक्षण को लेकर अपने ऊपर लगाए जा रहे आरोपों से काफी हद तक मुक्त हो जाएगी है। वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार राज्यों से विभिन्न विषयों को लेकर अपनी खींचतान को लेकर न सिर्फ लगाम लगा सकती है, बल्कि उन्हें उनकी ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़ने से भी रोक सकती है।