‘परम सुंदरी’ गाने ने साबित कर दिया कि संस्कृतनिष्ठ हिंदी का इस्तेमाल करके भी सुरमय संगीत बन सकता है

परम सुंदरी गीत

इन दिनों एक गीत बड़े चर्चा में है। नेटफ्लिक्स से चर्चा में आई फिल्म ‘मिमी’ का एक गीत ‘परम सुंदरी’ पिछले कई महीनों से काफी ट्रेंड कर रहा है, जो काफी महत्व रखता है। ये इसलिए ही अहम नहीं क्योंकि इसके संगीतज्ञ ए आर रहमान है और गायिका श्रेया घोषाल हैं, परंतु इसलिए भी काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वर्षों बाद एक ऐसा गीत लोकप्रिय हुआ है, जिसमें उर्दू को अनावश्यक तौर पर नहीं ठूँसा गया है। इस गीत में संस्कृतनिष्ठ हिन्दी का उपयोग थोड़ा अधिक हुआ है। हालांकि ‘परम सुंदरी’ गीत पूर्ण रूप से हिन्दी गीत नहीं है, परंतु हिन्दी गीत के नाम पर वह उर्दू का ‘ओवरडोज़’ भी नहीं है।

परंतु उर्दू और हिन्दी के बीच इस खींचतानी का बॉलीवुड या हिन्दी फिल्म उद्योग से क्या संबंध? बॉलीवुड कहने को हिन्दी फिल्म उद्योग का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन वास्तव में वह हिन्दुस्तानी सिनेमा है। बॉलीवुड के गीतों में हिन्दी कम, और हिन्दुस्तानी भाषा का अधिक प्रयोग होता है, जिसमें संस्कृतनिष्ठ हिन्दी का प्रयोग लगभग न के बराबर हुआ है और कभी-कभी तो हिंदी के नाम पर जबरदस्त उर्दू परोसी गई है।

इस पर TFIPost के लिए एक विश्लेषणात्मक लेख में अंकुर जयवंत ने हिन्दुस्तानी फिल्म उद्योग के उर्दू प्रेम पर विस्तार से प्रकाश डाला था। कभी आप दिल, जिगर, नजर, हमसफर, सनम, कसम, खुदा, इकरार, इजहार, एतबार, दिलबर इत्यादि जैसे शब्दों के बिना किसी गीत की कल्पना कर सकते हैं? सोचिए।

इसके पीछे साहिर लुधियानवी, कैफ़ी आज़मी, जावेद अख्तर जैसे गीतकारों का ‘अतुलनीय’ योगदान रहा है, जिन्होंने शनै-शनै भारतीय फिल्म उद्योग को ‘उर्दूवुड’ में परिवर्तित कर दिया। हिंदुस्तानी में हिंदी की व्याकरणिक संरचना है, लेकिन यह अधिकांश संस्कृत आधारित शब्दावली को फ़ारसी, अरबी और चगताई (तुर्किक) से उत्पन्न होने वाले शब्दों से बदल देती है।

हालांकि, यह सच है कि उत्तर भारत में इस्लामी साम्राज्यों द्वारा उर्दू/फ़ारसी को सबसे अधिक संरक्षण प्राप्त साहित्य था, लेकिन अंडरवर्ल्ड ने बॉलीवुड के “उर्दूकरण” में एक अहम भूमिका निभाई है। बॉलीवुड के माध्यम से हिंदी का “उर्दूकरण” कोई नई घटना नहीं है। यह 1940 से 90 के दशक और उसके बाद भी ठीक से चल रहा है। कुछ गीत इतने पारंगत होते हैं कि सुनने वाले को लगता है कि कहीं कोई हिंदी विकल्प तो है ही नहीं।

विश्वास नहीं होता तो इन गीतों का उदाहरण देखिए –

खुदा जाने कि मैं फिदा हूँ, खुदा जाने मैं मिट गया।

चौदवीं का चाँद हो, या आफताब हो, जो भी हो खुदा की कसम, लाजवाब हो –

आइए महरबान, बैठिए जाने जान, शौक से लीजिए जी, इश्क के इम्तिहान

अब आप बताइए, ये हिन्दी है या उर्दू का मुशायरा?

तो क्या कोई भी गीत शुद्ध हिन्दी में रचित नहीं हो सकता? हो सकता है, यदि आप शुद्ध मन से गीत की रचना करे। यदि उर्दू के बिना एक सफल गीत नहीं बन सकता, तो यह क्या है?

वैसे बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं, परंतु ‘परम सुंदरी गीत’ की रचना करने वाले गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य ने एक ऐसा ही संस्कृत निष्ठ गीत 2019 में लिखा था, जिसे श्रेया घोषाल ने अपना मधुर स्वर दिया था। इस गीत का नाम था ‘घर मोर परदेसिया’, और इस गीत में अवधि और संस्कृतनिष्ठ हिन्दी का मधुर मिश्रण था। हालांकि, इस गीत का दुर्भाग्य देखिए, ये उस फिल्म के लिए लिखा गया, जो इस गीत के विचारों के ठीक विपरीत विभाजन के दोषियों का महिमामंडन कर रहा था। ‘घर मोर परदेसिया’ असल में उसी ‘कलंक’ फिल्म का भाग था, जो आज भी अपने घटिया प्रोपगैंडा के लिए आलोचना के घेरे में रहता है।

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इसी दिशा में TFI मीडिया के संस्थापक अतुल मिश्रा भी अपना योगदान दे रहे हैं, जो उर्दूयुक्त हिन्दुस्तानी गीतों का संस्कृत निष्ठ अनुवाद अपने यूट्यूब चैनल पर कर रहे हैं। उन गानों को सुन कर एक अलग ही अपनापन का ऐहसास होता है, शायद मूल संस्करण को भी निम्न सिद्ध है।

ऐसे में जिस प्रकार से ‘परम सुंदरी’ नामक गीत ने संस्कृतनिष्ठ हिन्दी के शब्दों का उपयोग करके लोकप्रियता प्राप्त की है, उससे एक बार पुनः सिद्ध होता है कि गीत किसी भी भाषा में लोकप्रिय हो सकते हैं, बस उसे रचने वाले का मन शुद्ध होना चाहिए, अन्यथा आप चाहे जितना प्रयास करें, यदि आपका मन शुद्ध नहीं है, तो आपका करोड़ों में बनाया गया गीत भी औंधे मुंह गिरेगा।

 

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