पटना हाईकोर्ट के नए भवन के उत्तरी भाग के पास बन रहे 4 मंजिला ‘वक्फ भवन’ को गिराने के लिए 4:1 के फैसले के साथ हाईकोर्ट में आदेश पारित किया गया है। इससे पहले कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के निर्देश पर जनहित में मामला दायर किया गया था। मामले की सुनवाई पांच जजों की स्पेशल बेंच ने की। बेंच में जस्टिस अश्विन कुमार सिंह, विकास जैन, अहसनुद्दीन अमानुल्लाह, राजेंद्र कुमार मिश्रा और चक्रधारी शरण सिंह शामिल थे।
इस मामले की सुनवाई में चार जजों के बेंच ने हाईकोर्ट की Building के पास बने वक्फ भवन को हटाने के पक्ष में फैसला सुनाया, जबकि अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने इस मामले में अपनी असहमति व्यक्त करते हुए निर्माण को नियमों के विरुद्ध बताया लेकिन इसे अवैध मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने भवन को अनियमित माना पर अवैध नहीं माना, साथ ही उन्होंने कहा कि उल्लंघन ऐसा नहीं है कि पूर्ण विध्वंस का आदेश दिया जाए। उन्होंने प्रस्ताव दिया कि अनियमितता को ठीक करने के लिए भवन की 10 फीट की ऊंचाई को तोड़ा जा सकता है। अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए आदेश दिया कि यह पता लगाया जाए कि वक्फ भवन के अवैध निर्माण का निर्देश देने वाले कौन से अधिकारी थे और जिससे जनता को लगभग 14 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
रिपोर्टस के अनुसार, कोर्ट ने ‘बिहार बिल्डिंग बायलॉज’ 2014 के तहत वक्फ भवन को अवैध करार दिया है। राज्य भवन निर्माण निगम लिमिटेड ने वक्फ भवन का निर्माण बिहार राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड के लिए किया था, जिसका उपयोग वक्फ बोर्ड ‘मुसाफिरखाना’ के रूप में कर रहा था। कोर्ट ने पटना नगर निगम को निर्देश दिया है कि अगर वह एक महीने के भीतर निर्माण नहीं हटाता है तो वह भवन निर्माण विभाग पर कड़ी कार्रवाई करेगा| कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि कोविड संकट के दौरान निर्माण इतनी जल्दी कैसे पूरा हो गया, जबकि कोई काम ठीक से नहीं हो रहा था। मामला मार्च में कोर्ट के संज्ञान में आया था।
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अदालत ने कहा कि यह बिल्डिंग बायलॉज नंबर 21 का पूरी तरह से उल्लंघन है जो कहता है कि राज्यपाल के घर, राज्य सचिवालय, विधानसभा, उच्च न्यायालय और अन्य की सीमा से 200 मीटर के दायरे में 10 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले किसी भी भवन की अनुमति नहीं दी जाएगी। यह बायलॉज नंबर 8(1)(ए) का भी उल्लंघन कर रहा था, जो बताए गए स्थानों के आसपास बिना अनुमति के भवनों के निर्माण पर रोक लगाता है। अदालत ने कहा कि वक्फ बोर्ड ने मुसाफिरखाने के निर्माण के लिए वक्फ एस्टेट की संपत्ति को अपने हाथ में लिया था, जबकि केंद्रीय वक्फ अधिनियम, 1993 और बिहार वक्फ अधिनियम, 1947 के अनुसार ऐसा करने का उसे कोई अधिकार नहीं था। सुनवाई के दौरान, न्याय मित्र ने इस तथ्य पर आपत्ति जताई कि जिस भूखंड पर निर्माण हुआ था, लंबे समय तक कब्रिस्तान के रूप में इस्तेमाल की गई थी।
तीन न्यायाधीश, अश्वनी कुमार सिंह, न्यायमूर्ति विकास जैन और राजेंद्र कुमार मिश्रा, न्यायमूर्ति जैन द्वारा वक्फ भवन को पूरी तरह से ध्वस्त करने के मुख्य फैसले पर सहमत हुए और इसे अवैध रूप से निर्मित भवन के रूप में माना जो कि उपनियमों का उल्लंघन करता है। न्यायमूर्ति चक्रधारी सिंह ने राज्य सरकार को जांच आयोग गठित करने का निर्देश दिया, जिन्होंने अवैध निर्माण की अनुमति दी थी।।
शहरी अतिक्रमण भारत के लिए बड़ी समस्याओ में से एक रहा है| इससे यातायत और जरूरी संसाधनो के आवागमन पर प्रभाव पड़ता है| भारत सरकार निजी सम्पति के अलावा कहीं भी हो रहे अतिक्रमण पर कठोर कदम लेने के लिए प्रयासरत रही है| न्यायलय का यह फैसला सरकार के इस कदम को सशक्त करेगा|
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