आजकल हर मामले में पीएम मोदी को निशाने पर लेने के लिए वामपंथी कुछ अधिक ही लालायित होते हैं। तालिबान ने दो दशक बाद अफगानिस्तान में सत्ता प्राप्त की। लेकिन हमारे वामपंथियों को इस बात की अधिक प्रसन्नता थी कि उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। इसके बाद लेफ्ट ब्रिगेड यह कह कर प्रधानमंत्री मोदी को ताने मारने लगा कि तालिबान भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहा है। हालांकि पिछले 7 वर्षों में मोदी विरोधी यह समझ ही नहीं पाये हैं कि मुख्यमंत्री के तौर पर अनेकों बार राजदीप जैसे प्रोपेगेंडावादी पत्रकार की धज्जियां उड़ाने वाले नरेंद्र मोदी ने देश में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की शैली ही बदल दी है। वामपंथी जितनी जल्दी समझ लें, उतना ही बेहतर है।
एक दुर्दांत, खूंखार आतंकी संगठन फिर से निरीह जनता पर अत्याचार ढाने के लिए तैयार है, इससे देश के वामपंथियों को कोई मतलब नहीं है। हमारे भारत के वामपंथियों को बस इस बात से मतलब है कि कैसे भी करके देश के प्रधानमंत्री को नीचा दिखाया जाए, चाहे इसके लिए आतंकवादियों के ही तलवे क्यों न चाटने पड़े।
तालिबान द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस किए जाने के बाद भारत में वामपंथियों ने “Even Taliban has done a press conference now” फॉर्मेट में ट्वीट करना शुरू किया। यह स्पष्ट तौर पर प्रधानमंत्री मोदी के ऊपर तंज़ था। यानि वे 12 वर्ष की लड़कियों को सेक्स स्लेव बनाने वाले तालिबान की न सिर्फ वाह-वाही कर रहे थे बल्कि इस आतंकी संगठन की तुलना प्रधानमंत्री मोदी से भी कर रहे थे।
इन ट्वीट्स से आप स्पष्ट समझ सकते हैं कि इन वामपंथियों की वफादारी आखिर किसके प्रति अधिक हैं। इनका बस चले, तो ये मोदी को नीचा दिखाने के लिए जोसेफ स्टालिन और ओसामा बिन लादेन को भी अपना आराध्य बना सकते हैं, और कुछ लोग ऐसा काम वास्तव में करते भी हैं। जिस प्रकार से यह लोग ‘कम से कम तालिबान प्रेस कॉन्फ्रेंस भी आयोजित कर रहा है’ को इतनी निर्लज्जता से लिख रहे हैं, इन्हें अंदाजा भी है कि यह किसकी तुलना किससे कर रहे हैं? क्या यह उचित है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े लोकप्रिय प्रधानमंत्रियों में से एक की तुलना एक ऐसे संगठन से की जा रही है, जो 12 साल की बच्चियों को यौन शोषण के लिए अपने से तिगुने उम्र के लोगों को सौंप देते हैं?
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ट्यूबलाइट को भी खुलने में कुछ मिनट लगते हैं, अभ्यास करने पर जड़मति भी बुद्धिमान हो जाती है, लेकिन इतने वर्षों में भी हमारे वामपंथी इस बात को नहीं पचा पा रहे हैं कि नरेंद्र मोदी के शासन में प्रेस कॉन्फ्रेंस अब पहले जैसे नहीं रहे हैं। ‘जिसका काम उसी को साझे’ की नीति का पालन करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने हर विभाग के लिए उचित विशेषज्ञों को तैयार किया है, जो इसके लिए मीडिया से स्वयं बात करते हैं, उनके विचार जानते हैं, और अपने विचार प्रस्तुत करते हैं।
इसका सबसे प्रत्यक्ष उदाहरण तो तभी दिख गया, जब 2015 में पूर्वोत्तर में भारतीय सेना में हुए हमलों के जवाब में की कार्रवाई के बारे में घोषणा के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री के जरिए नहीं, बल्कि स्पष्ट तौर पर रक्षा मंत्रालय और भारतीय सेना के उच्चाधिकारियों के जरिए ये घोषणा कराई। ठीक ऐसे ही वर्ष 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक्स की घोषणा भी भारतीय सेना के DGMO और विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की संयुक्त घोषणा के साथ हुई।
तो क्या पीएम मोदी प्रेस कॉन्फ्रेंस से भागते हैं? जो व्यक्ति बतौर मुख्यमंत्री राजदीप सरदेसाई जैसे एजेंडावादी को एक बार नहीं, बल्कि अनेक माध्यम, और अनेक चैनलों पर पटक पटक के धोए, जो व्यक्ति इंडिया टुडे कान्क्लैव में दिग्विजय सिंह जैसे प्रोपगैंडावादियों को दिन में तारे दिखा दे, वो प्रेस कॉन्फ्रेंस से तो नहीं भागेगा। असल में पीएम मोदी का एजेंडावादी पत्रकारिता से छत्तीस का आंकड़ा रहा। ऐसे में जो लोग करण थापर के कथित इंटरव्यू पर पीएम मोदी को ‘कायर’ सिद्ध करने पर तुले रहते हैं, यदि वह बाद में एडिटेड और प्रोपगैंडा से बाहर निकल आए, जिसमें से आपत्तिजनक कॉन्टेन्ट हटा दिया गया था, तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी।
वर्तमान में कोरोना काल के दौरान, विशेषकर दूसरी लहर के समय जिस प्रकार से स्वास्थ्य मंत्रालय ने वैक्सीन और महामारी को लेकर जनता से सीधे संवाद कर जानकारी देने की व्यवस्था की, या फिर सोशल मीडिया कम्पनीज़ को आईटी अधिनियम न मानने पर स्पष्ट संदेश देना हो, मोदी सरकार की बदली हुई रणनीति ने स्पष्ट किया कि जो मंत्री जिस मंत्रालय को संभाल रहा वो किसी भी बिंदु की बारीकियों को बेहतरीन तरीके से समझता है वही प्रेस कॉन्फ्रेंस करे तथा जनता को जवाब भी सही तरीके से देगा। स्वास्थ्य मंत्रालय से लेकर परिवहन मंत्रालय तक के मंत्रियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरीय अपनी बात जनता तक पहुंचाई है।
पहले ये धारणा / प्रथा रहती थी, कि काम कुछ भी हो, जिम्मेदारी सिर्फ प्रधानमंत्री की ही होगी। वही हर मामले पर जनता से संवाद करेगा और वही हर मामले की जिम्मेदारी भी लेगा। लेकिन पीएम मोदी के शासन में अब ऐसा नहीं रहा उदाहरण के लिए कुछ समय पहले हुए कैबिनेट reshuffle को ही देख लीजिए। जब मोदी सरकार, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आभास हुआ कि उनके मंत्री अपने पद की गरिमा को क्षीण कर रहे हैं, तो उन्होंने काम के प्रति जवाबदेही तय करने की दिशा में अहम कदम उठाते हुए रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर जैसे मंत्रियों को त्यागपत्र सौंपने पर विवश किया, और स्मृति ईरानी जैसे मंत्रियों को अपेक्षा अनुरूप परिणाम न देने पर पद से अवनत भी किया।
सत्य तो यह है कि पीएम मोदी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करने का लहजा परिवर्तित कर दिया है। वे हर वस्तु का बोझ अपने ऊपर नहीं लेते, और न ही अनावश्यक लोगों का एजेंडा किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में हावी होने देते हैं। वे विशेषज्ञों यानि मंत्रियों को उनका काम करने देते हैं और जनता से स्पष्ट संवाद स्थापित करते हैं, और यही वामपंथी आज तक पचा नहीं पाए हैं।