कल एक क्रांतिकारी निर्णय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया कि देश का सर्वोच्च खेल सम्मान अब से राजीव गांधी खेल रत्न के नाम से नहीं, अपितु मेजर ध्यानचंद खेल रत्न के नाम से जाना जाएगा। ये न केवल वर्षों से चली आ रही औपनिवेशिक मानसिकता को खत्म करने की दिशा में एक सार्थक पहल है, अपितु भारत को खेल के मानचित्र पर लाने वाले महानायक के प्रति पीएम मोदी और केंद्र सरकार की ओर से एक उचित श्रद्धांजलि भी मानी जा रही है।
ये निर्णय इसलिए भी और अभूतपूर्व है, क्योंकि हाल ही में भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने इतिहास रचते हुए जर्मनी को एक रोमांचक मुकाबले में 5-4 से हराया और कांस्य पदक पर कब्जा जमाया। अब जब ये स्पष्ट है कि देश का सर्वोच्च खेल सम्मान देश के सबसे उत्कृष्ट खिलाड़ियों में से एक के नाम से जाना जाएगा, तो इसके लिए एक योग्य दावेदार भी उपस्थित है, जो इसी खेल में एक जाना-माना नाम है। इनका नाम है परट्टू रवीन्द्रन श्रीजेश, जिन्हें भारतीय हॉकी की ‘आधुनिक दीवार’ भी माना जाता है।
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ये श्रीजेश ही थे, जिन्होंने अंतिम समय में बेहतरीन बचाव कर भारत का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में लिखवा दिया। जैसे वर्ष 1964 में टोक्यो ओलंपिक में गोलकीपर शंकर लक्ष्मण शेखावत टीम के ‘संकटमोचक’ सिद्ध हुए, वैसे ही 2021 के टोक्यो ओलंपिक में पी आर श्रीजेश भारतीय हॉकी टीम के ‘संकटमोचक’ सिद्ध हुए हैं। ऐसे में मेजर ध्यान चंद खेल रत्न पुरस्कार पर उनका सर्वप्रथम अधिकार तो बनता है।
केरल के अर्णकुलम [Ernakulam] जिले में जन्मे श्रीजेश प्रारंभ में एथलेटिक्स के प्रति झुकाव रखते थे। परंतु तिरुवनंतपुरम में जब वे पढ़ाई कर रहे थे, तब उनके कोच ने उन्हें सुझाव दिया कि वे गोलकीपिंग में अपना भाग्य आजमाए। श्रीजेश इसमें सफल सिद्ध हुए और उन्होंने 2004 से ही भारत के जूनियर टीम में अपनी जगह बना ली। उनका नाम चर्चा में पहली बार 2008 में आया, जब जूनियर एशिया कप जिताने में उन्होंने एक अहम भूमिका निभाई थी।
धीरे-धीरे पी आर श्रीजेश का प्रभाव बढ़ने लगा, और भरत छेत्री के साथ-साथ वे भी भारत के प्रभावशाली गोलकीपरों में शामिल होने लगे। हालांकि भरत छेत्री की लोकप्रियता के कारण वे प्रारंभ में बेंच पर ही अधिक दिखते थे, और लंदन ओलंपिक में भी उन्होंने भारत का शर्मनाक प्रदर्शन अधिकतर साइडलाइन से ही देखा। तब भारत ने ओलंपिक में क्वालिफ़ाई अवश्य किया था, परंतु वह अंतिम स्थान पर रहा था।
लेकिन यहीं से पी आर श्रीजेश का भाग्योदय हुआ। इस टूर्नामेंट के बाद से वे भारत के मुख्य गोलकीपर के रूप में सामने आए। जब 2014 में कोरिया के इनच्योन [Incheon] में एशियाई खेल हुए, तो भारत ने 16 वर्ष बाद हॉकी के फाइनल में जगह बनाई, जहां उसका सामना पाकिस्तान से हुआ। नए प्रारूप का लाभ उठाते हुए श्रीजेश ने पेनाल्टी शूटआउट में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को छकाया, बल्कि तीन अहम गोल बचाते हुए भारत को 16 वर्षों बाद एशियाई खेलों के पुरुष हॉकी स्पर्धा में स्वर्ण पदक जिताया।
लेकिन ये तो बस प्रारंभ था। 2016 में जब पी आर श्रीजेश को FIH चैंपियंस ट्रॉफी के लिए टीम इंडिया की कमान सौंपी गई, तो उन्होंने न केवल भारतीय टीम को बेहतरीन प्रदर्शन के लिए प्रोत्साहित किया, अपितु उनके नेतृत्व में भारतीय टीम ने पहली बार चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में जगह बनाई, जहां वे पेनाल्टी शूटआउट में ऑस्ट्रेलिया से 1-3 से हारे। वर्ष 2016 के रियो ओलंपिक में भारत भले ही बेल्जियम से क्वार्टरफाइनल में हार गई, परंतु पी आर श्रीजेश के नेतृत्व में इसी टीम ने मॉस्को ओलंपिक के बाद पहली बार किसी ओलंपिक हॉकी के नॉकआउट स्पर्धा में जगह बनाई।
आज जब टीम इंडिया पूरे देश के लिए हीरो बनी हुई है, तो इसमें काफी हद तक पी आर श्रीजेश के अथक परिश्रम का भी योगदान है, जिन्होंने इस खेल के लिए अपना सर्वस्व अर्पण किया है। ऐसे में यदि मेजर ध्यान चंद खेल रत्न किसी को सर्वप्रथम मिलना चाहिए, तो वे पी आर श्रीजेश ही हैं, और कोई नहीं।
पी आर श्रीजेश को उनकी योग्यता के समय-समय पर पुरस्कृत किया गया है। वर्ष 2015 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वहीं देश को उनकी सेवाओं के लिए उन्हें देश के चतुर्थ सर्वोच्च सम्मान, पद्मश्री से वर्ष 2017 में सम्मानित किया गया था। हालांकि, इस वर्ष श्रीजेश को हॉकी इंडिया की ओर से खेल रत्न के लिए नामांकित भी किया गया है। अब इस ओलंपिक में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन को देखते हुए समय आ गया है कि उन्हें नए नाम के साथ मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवार्ड से भी सम्मानित किया जाए।