प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना : महिला, बाल, किसान समेत किसी भी वर्ग के विकास हेतु सबसे आवश्यक चीज होती है एक बेहतर नीति। विकास के सिद्धांतो में यह बताया जाता है कि किसी भी देश के विकास हेतु वेलफेयर पॉलिसी सबसे महत्वपूर्ण होता है। पिछले सात वर्षो में प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों के आर्थिक विकास और उनके उत्थान हेतु तमाम कदम उठाये हैं। नीम कोटिंग यूरिया से लेकर पीएम किसान कोलेट्रल मुक्त लोन तक, बाजार में स्थान से लेकर वहां तक जाने की स्वतंत्रता के लिए कृषि कानून लाये गये।
मोदी सरकार ने यह सारे कदम इस बात को सुनिश्चित करने के लिए उठाए हैं कि 2021 से 2030 का दशक किसानों के लिये सुनहरा दशक हो और निर्यात में हो रही बढ़ोतरी के परिणामों से यह दिख भी रहा है कि यह सारे कदम उस वर्ग को एक बढ़िया स्थति में ला रहे हैं जो लम्बे समय के लिए सिर्फ वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किए गए थे।अब किसानों के खाते में पैसा सीधे जा रहा है। बिजली आपूर्ति मजबूत होने से खेतों में पानी की समस्या भी दूर हुई है जो परोक्ष रूप से मदद करता है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
हालाँकि बहुत सी ऐसी स्कीम भी है जो अपने तय लक्ष्य और तय लाभार्थियों को पाने में असफल हुई है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना उस तमाम योजनाओ में से एक है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना यानि PMFBY का उद्देश्य किसानों की फसल को बाढ़, आंधी, ओले और तेज बारिश से होने वाले नुकसान की भरपाई करना है। राज्यसभा में सरकार द्वारा दिए गये आंकड़ो के आधार पर द हिन्दू बिजनेस लाइन ने एक रिपोर्ट में बताया कि लाभार्थियों तक इस योजना का लाभ नहीं जा पा रहा है और जैसा कि कुछ राज्य सरकार और कॉर्पोरेट बैंक अपने आप को इस योजना से पीछे हट रहे हैं, उसके चलते एक बड़ी आबादी तक इस स्कीम का लाभ नही पहुँच पा रहा है और लाभार्थियों की संख्या घट रही है।
द हिंदू बिजनेस की रिपोर्ट के अनुसार, ‘2018 और 2020 के बीच खरीफ सीजन में बीमा योजना के तहत कवर दिए गये सीमांत किसानों में 18.08 प्रतिशत से 16.55 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है। योजना में छोटे किसानों की भागीदारी 63-68 प्रतिशत के बीच है।’
2-3 साल बाद भी क्लेम सेटलमेंट नहीं मिल पाया है
बहुत से राज्यों में किसान बीमा कवर में बड़ी देरी झेल चुके है। उन्हें 2-3 साल बाद भी क्लेम सेटलमेंट नहीं मिल पाया है जबकि योजना के प्रावधानों के अनुसार 2 से 3 महीनों में क्लेम सेटलमेंट कर देना चाहिए था। इस लेटलतीफी के चलते महाराष्ट्र में किसानों ने विरोध प्रदर्शन भी शुरू कर दिया है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत, किसानों को बीमा के लिए विभिन्न फसलों पर केवल 1 से 5 प्रतिशत भुगतान करना था बाकि शेष राशि का भुगतान राज्य सरकार और केंद्र सरकार द्वारा समान रूप से किया जाना तय किया गया था। अब तक, गुजरात और बिहार सहित सात राज्य पहले ही इस योजना से बाहर हो चुके हैं। बिहार और पश्चिम बंगाल क्रमशः 2018 और 2019 में योजना से खुद को बाहर हुए, जबकि आंध्र प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना और झारखंड ने 2020 में भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लागू करने से मना कर दिया है।
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एलआईसी के कर्मचारी जब प्रीमियम करने के लिए फोन करते है तो हमें बुरा लगता है। हमें लगता है कि क्या जरूरत है इतना फोन करने की। बाद में जब एलआईसी के एजेंट दरवाजे पर आते है तो बताते है कि आपके प्रीमियम के बिना हम ब्याज नही पाएंगे। आप जब प्रीमियम देंगे नहीं, जब वो पैसा किसी ज्यादा लाभ वाले चीज में लगेगा नहीं तो लाभ कैसे मिलेगा?
यही चीज इस वक़्त तमाम इंश्योरेंस कम्पनियां कह रही है। इंश्योरेंस कम्पनियों के मुताबिक राज्य अपने हिस्से का प्रीमियम या प्राइम नहीं भर रहा है और इसके चलते क्लेम सेटलमेंट में समस्या आ रही है। इस वक्त केंद्र सरकार, राज्य सरकार और निजी कम्पनियों में आरोप प्रत्यारोप चालू है। हमारे देश में स्पष्ट आंकड़ा नहीं है कि कितने किसान हमारे देश में है, और कई इंश्योरेंस कम्पनियों को यह बिना लाभ का व्यापार लग रहा है जिसमें सिर्फ कम्पनियों के संसाधनो की बर्बादी हो रही है।
केंद्र सरकर ने संसद भवन में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के बचाव में यह दलील दिया है, “खरीफ 2019 और खरीफ 2020 के दौरान योजना को लागू करने वाले 17 आम राज्यों की तुलना करने पर यह पाया गया कि खरीफ 2019 के दौरान किसान आवेदन 3.58 करोड़ थे जो बढ़कर खरीफ 2020 के दौरान 4.27 करोड़ हो गए हैं।”
हालांकि, संख्या स्पष्ट रूप से बता रही है लाभार्थी और प्रतिभागी संख्या अपेक्षित दर से नहीं बढ़ रहे हैं। हालांकि इस योजना से खुद को पीछे करने वाले अधिकांश राज्य अपनी स्वयं की योजना को लागू कर रहे हैं। इस मामले पर संसदीय समिति का विचार है कि आने वाले वर्षों में अधिक राज्यों द्वारा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से पीछे होने से या खुद की योजना लाने से वह उद्देश्य विफल हो जाएगा जिसके लिए योजना शुरू की गई थी।
केंद्र सरकार को किसान सम्बन्धी कार्यो में वित्तीय प्रावधान अपने पास रखना चाहिए या राज्यों को ऐसी राष्ट्रिय योजना लागु करने के लिए प्रतिबद्ध करना चाहिए। ऐसे कानूनों के लिए अगर जरूरत पड़े तो फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया के भंडार में सड़ रहे फसलों को बाजार में बेचकर किसानों को भुगतान करना चाहिए। ऐसे स्कीम उन किसानों के लिए रीढ़ की हड्डी साबित होगी जो मौसम की मार के चलते किसानी छोड़ते है या पूरी सीजन जिनकी जमीन बंजर पड़ी रहती है।