इन दिनों सम्पूर्ण एशिया की राजनीति ने एक रोमांचक मोड़ ले लिया है। एक ओर तालिबान ने पाकिस्तान की सहायता और अमेरिकी प्रशासन की अकर्मण्यता की कृपा से पुनः सत्ता पर आधिपत्य प्राप्त किया है। इस अवसर को ताजिकिस्तान ने दोनों हाथों से पकड़ा है और वह न केवल तालिबान विरोधी शक्तियों की खुलकर सहायता कर रहा है, अपितु तालिबान के सबसे प्रखर समर्थकों में से एक पाकिस्तान की बड़े प्रेम से सार्वजनिक बेइज्जती भी कर रहा है।
असल में ताजिकिस्तान को तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा करने से काफी समस्याएँ हैं। एक तो बड़ी संख्या में ताजिक मूल के अफ़गान अफगानिस्तान में वास करते हैं, जो तालिबान के शासन के कारण खतरे में हैं। इसके अलावा उसे डर हैं कि कहीं अफगानिस्तान का विष उनके देश में न प्रवेश कर जाए, और कहीं शरणार्थियों के बहाने तालिबान उनके देश में भी उत्पात न मचाने लगे। इसीलिए वह अभी से सतर्क हो चुका है।
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ताजिकिस्तान इतने पर नहीं रुका। उसने हाल ही में एक ऐसा कार्य किया, जिससे स्पष्ट हो गया कि वास्तव में वह किसके पक्ष में है। हाल ही में पंजशीर घाटी में हथियारों की एक बड़ी खेप एयर ड्रॉप की गई। बता दें कि पंजशीर घाटी अफगानिस्तान का वो क्षेत्र है, जो अभी भी तालिबानियों के नियंत्रण में नहीं आ पाया है और अहमद मसूद एवं कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह के संयुक्त नेतृत्व में अफ़गान क्रांतिकारी, तालिबानी आतंकियों का सफलतापूर्वक मुकाबला कर रहे हैं।
अब सोचिए कि पंजशीर घाटी में अफ़गान क्रांतिकारियों को यह हथियार किसने दिए? यह सहायता किसी और ने नहीं बल्कि ताजिकिस्तान ने ही दी है, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वह वास्तव में किसके पक्ष में है। चूंकि ताजिकिस्तान रूस समर्थक है, इसलिए इससे पाकिस्तान को भी स्पष्ट संदेश जाता है– यदि तुम तालिबान को खुलेआम समर्थन दोगे तो पूरी दुनिया मौन व्रत नहीं धारण करेगी।
एक समय रूस के नेतृत्व वाले सोवियत संघ का भाग होने के नाते आज भी ताजिकिस्तान इस्लामिक बहुल देश होने के बाद भी रूस का प्रखर समर्थक है। ऐसे में एक तरह से कहें तो अप्रत्यक्ष तौर पर पंजशीर के क्रांतिकारियों तक पहुंच रही मदद में रुस का भी समर्थन है।
अब सवाल ये है कि इसका पाकिस्तान से क्या संबंध है और तालिबान विरोधी ताकतों को समर्थन देकर ताजिकिस्तान पाकिस्तान की खिंचाई कैसे कर रहा है? असल में ताजिकिस्तान अफगानिस्तान का पड़ोसी देश है। इसी नाते से पाकिस्तान के पार्ट टाइम विदेश मंत्री और फुल टाइम आतंकी प्रतिनिधि शाह महमूद कुरैशी अफगानिस्तान के ‘तालिबानी शासन’ को मान्यता दिलाने के लिए ताजिकिस्तान के दौरे पर गए थे।
शाह महमूद कुरैशी को आशा थी कि इस्लाम के नाते तालिबानी शासन को ताजिकिस्तान अवश्य मान्यता देगा। कुरैशी शायद भूल गए थे कि जब इस्लाम के पुरोधा माने जाने वाले सऊदी अरब और यूएई तक वर्तमान तालिबानी शासन को खुलेआम समर्थन देने से हिचकिचा रहे हैं तो फिर ताजिकिस्तान ने पाकिस्तान का नमक तो खाया नहीं, जो वह पाकिस्तान के इशारों पर काम करने के लिए बाध्य हो।
अंतत: ताजिकिस्तान से शाह महमूद कुरैशी को खाली हाथ लौटना पड़ा। इतना ही नहीं, ताजिकिस्तान ने ये भी स्पष्ट किया कि वह किसी भी ऐसे शासन को मान्यता नहीं देगा, जो समूचे अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व नहीं करता हो।
ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति ने यह भी स्पष्ट किया कि ताजिक मूल के अफ़गान अफगानिस्तान की आबादी का 46 प्रतिशत हैं, ऐसे में उन्हे भी सरकार में उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। जब तक उन्हे उनके अधिकार नहीं मिलते, तालिबान के इस अत्याचारी शासन को ताजिकिस्तान कोई मान्यता नहीं देगा।
Shah Mahmood Qureshi, part-time foreign minister of Pakistan & full-time representative of Taliban went to Tajikistan to get support for Talibs. Was humiliated instead. Russian ally Tajikistan is tacitly giving logistical support to Amrullah Saleh’s resistance forces in Panjshir. pic.twitter.com/BlLWBeY0lI
— Shubhangi Sharma (@ItsShubhangi) August 25, 2021
ऐसे में ताजिकिस्तान न केवल तालिबान विरोधी योद्धाओं को अपना पूरा समर्थन दे रहा है, अपितु पाकिस्तान की सार्वजनिक बेइज्जती करते हुए उसे समझा दिया कि अब उसकी कोई भी गीदड़ भभकी नहीं चलेगी।