सोनिया को ममता भाये, राहुल को है नफरत, अब माँ और बेटे एक-दूसरे के खिलाफ नजर आ रहे

ममता बनी माँ-बेटे में दरार का कारण!

राहुल ममता

बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था,

हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा..

यहाँ उल्लू का अलंकार दो पार्टियों के लिए दी गयी है, पहली है कांग्रेस और दूसरी है TMC। आज के परिप्रेक्ष्य में कांग्रेस के चश्मोचिराग राहुल गांधी अपने वर्चस्व में आ रही गिरावट से क्षुब्ध हैं। उनके इस तनाव का कारण हैं ममता बनर्जी। ममता बनर्जी भारतीय राजनीति में जब से विपक्ष का नया शस्त्र बनकर उभरीं हैं उसी पल से राहुल को अपने विलुप्त होने की आहट होने लगी है। ऐसा लगता है कि अबतक ममता से नाराज़ चल रहे राहुल, कांग्रेस द्वारा लगातार ममता को बढ़ावा दिये जाने पर अपनी माँ सोनिया गांधी से भी रुष्ट हो चले हैं।

दरअसल, राहुल ने PEGASUS के नाम पर, मंगलवार सुबह सभी विपक्षी पार्टियों को चाय पर चर्चा के लिए आमंत्रित किया, जिसमें बसपा और आम आदमी पार्टी को छोड़ सभी विपक्षी दल शामिल हुए। जिस तरह से सोनिया गांधी ममता बनर्जी को अहमियत दे रही हैं, उसकी वजह से उन्हें अपना पलड़ा भारी दिखाने की ज़रूरत आन पड़ी है। हालांकि माँ और बेटे के बीच तकरार असंभव है परंतु राजनीति अनिश्चितताओं का खेल है। इतने वर्षों से बेटे को जीताने का प्रयास कर रही सोनिया गांधी अब ममता बनर्जी पर कुछ अधिक ही मेहरबान दिखाई दे रहीं हैं।

प्रधानमंत्री बनने के सपने को लिए राहुल गांधी 2014 से प्रयासरत हैं। परंतु मोदी लहर ने 2014 ही नहीं वर्ष 2019 के चुनाव में भी राहुल के इस सपने को चकनाचूर कर दिया। अब उनके और पीएम पद के सपने के बीच ममता का साया आ चुका है। हाल ही में सोनिया के 10 जनपथ आवास पर हुई ममता के साथ बैठक के बाद ममता ने केवल सोनिया का नाम लेते हुए कहा था कि, ‘सोनिया के साथ बैठक अच्छी रही, बीजेपी और पीएम मोदी को हराने के लिए विपक्ष को एक साथ आना होगा, क्योंकि वो अकेले बीजेपी को नहीं हरा सकतीं।’

इस बैठक के बाद, बाहर आईं तस्वीरों में ममता के साथ, सोनिया और राहुल दोनों साथ खड़े दिखाई दिये थे। इसके बावजूद ममता ने सिर्फ सोनिया से बैठक होने की बात कही, इसका मतलब यह निकलता है कि या तो उस मुलाक़ात में केवल ममता और सोनिया मौजूद थे और राहुल औपचारिकता पूरी करने के लिए उनको दरवाजे तक छोड़ने पहुंचे थे। वहीं अटकलें यह भी लगाई जा रही हैं कि ममता को भी राहुल का साथ पसंद नहीं है क्योंकि वो दोनों ही स्वयं को PM MATERIAL वाली श्रेणी वाला राजनेता मानते हैं।

एक ओर जहां ममता को सोनिया का साथ भाने लगा है, तो वहीं राहुल को ममता और सोनिया की बढ़ती राजनीतिक नज़दीकियों से Insecurity होने लगी है।

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जहां ममता विपक्षी दलों को एकजुट कर अपने स्वार्थ को साधने में लगी हैं, वहीं राहुल भी शक्ति प्रदर्शन के साथ अपने वजूद को साबित कर रहे हैं। हालांकि सामने भी कुछ दल ऐसे हैं जो कांग्रेस से सदा नफरत करते आए हैं, जैसे तेलंगाना के मुख्यमंत्री, टीआरएस के चन्द्रशेखर राव (केसीआर) और आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री वाय.एस.आर. कांग्रेस के जगनमोहन रेड्डी।

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कुछ दल ऐसे भी हैं, जो बनर्जी और गाँधी दोनों के नेतृत्व को स्वीकार करने में पीछे नहीं हटेंगे, उनमें प्रमुख हैं ‘समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल’। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की ममता से हाल ही में हुई कई चर्चाओं में उनका ममता की तरफ झुकाव साफ-साफ दिखाई दिया है। वही हाल RJD का भी है, लालू के बाद पार्टी को देख रहे उनके दोनों तेजस्वी और तेजप्रताप राहुल ओर ममता दोनों के पक्ष में होते नज़र आते हैं, बस उन्हें उनके मन की इच्छाओं के अनुरूप सत्ता में साथी बनाया जाए।

राहुल और ममता दोनों में जो-जो समानताएँ पीएम पद के दावेदार होने के अलावा हैं, उनमें से सबसे बड़ी समानता इन दोनों का कथित राजनीतिक रणनीतिकर प्रशांत किशोर (पीके) से संबंध हैं। ‘पीके’ ने इन दोनों को ही पीएम बनाने का दावा किया है जिससे आगे ममता और राहुल के रिश्तों में तो फूट होनी ही है। अब जिस तरह से सोनिया ममता का साथ दे रही हैं उसे देखते हुए उनके और राहुल के बीच भी खटास आनी स्वाभाविक हो जाती है। सोनिया ममता को कुछ अधिक ही अहमियत दे रही हैं, जिसे राहुल गांधी अपने पीएम पद के सपने के खात्मे की वजह मानने लगे हैं।

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ममता और सोनिया की मुलाक़ात में राहुल के उपेक्षित होने से यह तो तय है कि बनर्जी और गाँधी दोनों को एक दूसरे का साथ पसंद नहीं है, पर वहीं हवा और अफवाहों की बयार में बहते हुए सोनिया ममता को अपने साथ लाने में जुट गयी हैं। इससे कांग्रेस और टीएमसी दोनों के भविष्य को क्या आयाम मिलते है वो आने वाला समय ज़रूर बता देगा। अगर ममता बनर्जी के वजह से सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बीच अनबन होती है तो यह कांग्रेस की राजनीति में एक दिलचस्प मोड़ होगा।

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