तालिबान ने फेरा ममता के खेला होबे दिवस पर पानी

डायरेक्ट एक्शन डे

अपुन इच भगवान है, प्रचलित WEB SERIES सेक्रेड गेम्स का यह डायलॉग ममता बनर्जी ने गंभीरता से ले लिया और स्वयं को भारतीय राजनीति की कुशल रणनीतिकार ही मानने लग गई हैं। इस घमंड को बाहरी देशों में चल रही उठापटक ने तब तोड़ दिया जब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानी आतंक पूरे विश्व की सुर्खियों का केंद्र बन गया। इसके परिणामस्वरूप बीते महीने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जीत के मद में चूर राज्य भर में “खेला होबे दिवस” मनाने का ऐलान कर चुकी थीं, पर अब उस खबर का मोल ढाई आने का रह गया है क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के भय की वजह से तख्तापलट हो गया है। अब वहाँ के तमाम राजनीतिज्ञ देश से पलायन करने में जुट चुके हैं जिनमें अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के साथ ही वहां के राष्ट्रपति अशरफ गनी को अपने पद से इस्तीफा देने के बाद देश छोड़कर भागना पड़ा। इस खबर से देश के कुछ मुस्लिम जश्न मना रहे हैं। अब इससे ममता के फैसले को आईना दिख गया है और भारत में 1946 को हुए डायरेक्ट एक्शन डे के तहत हुए खूनी संघर्ष वाले दिन (काला दिवस) टीएमसी द्वारा प्रायोजित खेला होबे दिवस पर पानी फिर गया है।

जुलाई माह में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी विकृत और देश विरोधी मानसिकता का परिचय देते हुए 16 अगस्त को “खेला होबे दिवस” के रूप में मनाने का ऐलान किया था। इस ऐलान के बाद से ममता की किरकिरी होनी शुरू हो गयी थी जिसकी सबसे बड़ी वजह यह तारीख ही थी। दरअसल, भारत में 16 अगस्त को “काला दिवस” के रूप में जाना जाता है। मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त, 1946 को “डायरेक्ट एक्शन डे” की शुरुआत कर पूरे देश को अराजकता और सांप्रदायिक हिंसा की आग में झोंक दिया था। इसका मूल उद्देश्य राज्य के मुस्लिम समुदाय का ध्यान आकर्षित करने का था, पर सत्यता तो यह है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान राज स्थापित होना आज की तारीख में मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग जश्न मनाने में जुट गये और ममता के कार्यक्रम को कोई भाव नहीं दे रहे है। ये पूरे सोशल मीडिया पर प्रचारित और प्रसारित बधाइयों के माध्यम से साफ़-साफ झलकता है।

 

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वहीं इतने विरोधाभास के बाद ममता पहले की तरह ही अपने निर्णय से पीछे नहीं हटीं और इस निर्णय के तहत सोमवार को पश्चिम बंगाल में टीएमसी ने अपना नारा बुलंद करते हुए राज्यभार में खेला होबे दिवस का आयोजन किया है। लेकिन इस बार मामला जमा नहीं, जैसे मई में चुनावी नतीजों के बाद से सभी का ध्यान ममता और टीएमसी के कार्यक्रमों पर केन्द्रित रहा करता था, और ममता का यह पूरा ड्रामा FLOP हो गया और तालिबानी शासन ने बाजी मार ली। इसकी खुशी का जश्न मना रहे इन सभी मुस्लिम के लिए इसलिए यह बड़ा अवसर है क्योंकि अब अफ़ग़ानिस्तान  में शासन “शरियत” जिसे आम भाषा में शरिया भी कहा जाता है उसके आधार पर चलेगा। शरियत इस्लाम के धार्मिक क़ानून को कहा जाता है।

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अब ममता का मुस्लिम प्रेम और सांप्रदायिक रंग तालिबान के ताने बाने ने ध्वस्त तो कर दिया है। इससे टीएमसी सीख लेती है या आने वाले दिनों में डायरेक्ट एक्शन डे की तरह ही तालिबान का अनुसरण करने निकल पड़ती है वो बड़ा दिलचस्प होगा।

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