कल्पना कीजिए की कोई व्यक्ति आपकी ही जमीन हथिया कर आपको दोबारा बेच दे और मोटा मुनाफा कमा ले, सुनने में ये बात अजीब लगती है न? परंतु तमिलनाडु में राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण को लेकर अधिकारियों ने कुछ ऐसा ही भ्रष्टाचार 20 वर्ष पहले तमिलनाडु में राष्ट्रीय राजमार्ग की जमीन को 46 गांव के लोगों को पट्टे पर देकर किया था और भारत सरकार को ही 46 गांवों के पट्टे की वो जमीन दोबारा को बेची गई। इस भ्रष्टाचार का जब भूमि आयुक्त रामेश्वर मिश्रा को 2007 में ही पता चला, तो उन्होंने इस मामले में सीबीआई से जांच की मांग तक की, लेकिन किसी भी सरकार ने इस मुद्दे पर कोई खास ध्यान नहीं दिया।।
देश के राजस्व विभाग को बड़ी चपत लगाने वाला ये घोटाला तमिलनाडु के चेन्नई, कांचीपुरम, तिरुवल्लूर, पुदुक्कोट्टई के 46 गांवों की 100 करोड़ की सरकारी भूमि के अवैध पट्टों से जुड़ा है। दरअसल, ये मामला सन् 2000 का है, जब तिरुवन्नुमलई के असिस्टेंट सेटलमेंट अधिकारी ने फर्जी पट्टे देने की याचिकाएं लीं और मिलीभगत से NHAI की जमीन के लिए लोगों को पट्टे जारी कर दिए। इतना ही नहीं दस्तावेज बताते हैं कि कुछ अधिकारियों ने तो इन्हें प्रमाणित करने के लिए अपने हस्ताक्षर तक किए जो कि पूर्णतः फर्जी थे। वहीं कुछ जारी दस्तावेजों पर तो अधिकारियों के दफ्तरों की मुहर तक नहीं थी, लेकिन सभी को पट्टे जारी कर दिए गए और इसका खुलासा भूमि आयुक्त रामेश्वर मिश्रा ने 2007 में कर दिया था।
रामेश्वर मिश्रा ने इस मामले से जुड़े सभी दस्तावेज पेश किए और ये मांग तक की कि इस मामले की जांच सीबीआई या सीआईडी से कराई जाए, लेकिन उस दौरान उनकी मांगों को किसी ने तवज्जो नहीं दी। उन्होंने भ्रष्टाचार के लिए सर्वेक्षण एवं सेटलमेंट विभाग के निदेशक को भी सूचना दी थी, लेकिन उसका भी कोई नतीजा नहीं निकला। रामेश्वर मिश्रा ने निदेशक को लिखे अपने पत्र में मांग की कि कलेक्टरों को उक्त फर्जी आदेशों को ग्राम खातों में लागू नहीं करने का निर्देश दिया जाए और यदि भूमि को पहले ही पुनर्वर्गीकृत किया जा चुका है, तो उन्हें उनकी मूल स्थिति में बहाल किया जाना चाहिए।
यदि सर्वे एंड सेटलमेंट के निदेशक ने मिश्रा के पत्र के बाद तुरंत कार्रवाई की गई होती, तो घोटाले का खुलासा एक दशक पहले ही हो जाता और सरकारी खजाने को होने वाला नुकसान बच जाता, किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। ये मामला साल 2018 में खुला, जब चेन्नई-बेंगलुरु (NH-4) राजमार्ग विस्तार के लिए नौ एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया और इसके “मालिकों” को मुआवजा दिया गया था, लेकिन असल में ये जमीन NHAI की थी, और इसे 2000 में अवैध तरीके से अधिकारियों ने साठ-गांठ करके 46 गांवों के लोगों को जमीन दे दी थी।
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राजमार्ग विभाग के ही अधिकारियों ने ही माना कि इस जमीन के लिए सरकार को कोई खर्च करने की आवश्यकता नहीं थी, लेकिन एएसओ स्तर के अधिकारियों के कारण वो जमीन पट्टों के नाम पर दी गई, जो कि सीधे तौर पर निजी हो गई। अधिकारी ने बताया, “एनएचएआई ने सिर्फ एक गांव (बीमंथंगल ने श्रीपेरंबुदूर) में पट्टा धारकों से नौ एकड़ का अधिग्रहण करने के लिए 126 करोड़ खर्च किए, तो कल्पना कीजिए 45 गांवों में भूमि अधिग्रहण के दौरान हुआ नुकसान कितना अधिक होगा।”
इस मुद्दे का खुलासा तो पहली बार 2007 में ही हो गया था, लेकिन उस दौरान इस मुद्दे पर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। यूपीए सरकार और उसका कार्यकाल खत्म होने के बाद एनडीए सरकार का भी ध्यान इस मुद्दे पर नहीं गया। यद्यपि पिछले 15 सालों से राज्य में एआईएडीएमके की सरकार है, लेकिन फिर भी इस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर किसी ने भी कोई एक्शन नहीं लिया। इसके विपरीत अब मोदी सरकार इस मुद्दे को हल करने को लेकर दृढ़ है जिसके चलते अब ताबड़तोड़ कार्रवाई भी हो रही हैं, लेकिन सवाल वहीं है कि अब तक इस दिशा में कोई बड़ा कदम क्यों नहीं उठाया गया।