शाबाश नीरज!!! शेर सोना ले आया, मिट्टी के लिए। 4 राजपूताना राइफल्स रेजीमेंट के सूबेदार नीरज चोपड़ा 135 करोड़ भारतीयों के भुजाओं के पराक्रम के प्रतीक हैI 7 अगस्त 2021- भारत, ये तारीख भी याद रखेगा और ये नाम भीI जब मिट्टी के लाल ने अपनी भुजाओं मे पूरे भारत की शक्ति को समाहित करते हुए भाला फेंका तो मानों साक्षात माँ भारती और महाराणा प्रताप भी स्वर्ग से एकटक लगाए अपने ‘’नीरज’’ को देख रहे थेंI टोक्यो ओलंपिक में पुरुषों के भाला फेंक फाइनल में नीरज ने 87.5 मीटर की शानदार थ्रो के साथ स्वर्ण पदक जीता।
यह सिर्फ़ एक खबर नहीं है। भावना है, आनंद और उद्गार है। गर्व की अनुभूति है, एक ख्वाब है जो 22 साल के नीरज ने साकार कियाI इस कृतज्ञता के लिए देश उन्हे सलाम करता है और गुमान करता है कि धन्य है मिट्टी का वो रजकण जिसमें लिपटकर ‘’नी-रज’’ ने पहली बार भाला फेंका होगा।
7 अगस्त 2021, दिन- शनिवार, समय- 5 बजकर 10 मिनट जब अपने कंधे पर भाला साधकर नीरज ने जब ट्रैक पर दौड़ लगाई और भाला फेंका तो लगा मानो जल, थल, सूर्य, गगन सभी रुक गए हों भारत के बेटे की दक्षता देखने के लिएI लगा साक्षात माँ भारती ने भाल पर विजय तिलक किया हो और उसे स्वयं महारणा साध रहे होंI क्या अद्भुत दृश्य था!!! बेटे ने भाल पर सोना सज़ा के माँ के चरणो मे अर्पित किया और पूरा देश जश्न मे डूब गयाI डूबे भी क्यों ना?
दरअसल, भारत पर जब ब्रिटिश हुकूमत का शासन था, तब ब्रिटिश इंडिया की तरफ से खेलते हुए नॉर्मन प्रिटचार्ड ने साल 1900 में हुए ओलिंपिक एथलेटिक्स में दो मेडल जीते थे। तब से एथलेटिक्स में पहले मेडल को लेकर जब भी चर्चा होती थी, तो ब्रिटिश सरकार के इस खिलाड़ी का ही नाम सामने आता था।
इस जीत के साथ, नीरज ओलंपिक में व्यक्तिगत स्वर्ण जीतने वाले केवल दूसरे भारतीय बन गए और देश के लिए ट्रैक और फील्ड ओलंपिक पदक हासिल करने वाले पहले व्यक्ति बन गए। वर्चस्व ऐसा की कुल बारह राउंड में से हर राउंड मे वो पहले स्थान पर रहे। सारे कीर्तिमान ध्वस्त हो गए। यहाँ तक की पाकिस्तान के धुर प्रतिद्वंदी नदीम ने नीरज को अपना आदर्श बता दिया।
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इससे आदर्श विजय क्या हो सकती है जब आपके साथ खेलने वाले को आपका प्रतिद्वंदी होने पर गुमान हो। बताते चले की हरियाणा के रोर समुदाय से ताल्लुक रखने वाले चोपड़ा एक किसान सतीश कुमार और एक गृहिणी सरोज देवी के पुत्र हैं। नीरज की यह जीत भारत मे खेल के लिए मील का पत्थर साबित होगी और आने वाले प्रतियोगियो के लिए प्रेरणा।
नीरज की जीत इस बात का भी उद्घोष है की संभावना के इस अथाह समंदर को माथा जाए तो उसमें से नीरज जैसा अमृत अवश्य निकलेगा जो अमर कर देगा ओलिम्पिक मे भारत के वर्चस्व को। नीरज के इस विजय से भारत मे खेल को लेकर बहुत कुछ बदलेगाI
मानसिकता से लेकर मिजाज तक, निवेश से लेकर समाज तक। सब कुछ बदला जाएगा। संसाधन, आधारभूत संरचना, निवेश, दक्षता, सुविधा, कोचिंग सबकुछ बदलेगा, लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण चीज़ बदलेगी वो है हमारी सोच, उम्मीद, आत्मविश्वास, नज़रिया और खेलों के प्रति हमारी मानसिकता। अब फिर कोई लड़का खेलने मे नहीं हिचकेगा। अब फिर किसी नीरज का सपना आभाव मे दम नहीं तोड़ेगा बल्कि इस गुरूर के साथ परवान चढ़ेगा कि मानो अपने भाल से आसमान भेद दे। नीरज की जीत ने राष्ट्र को एकजुट कर दिया।
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उम्मीद की लौ को हवा दी। भारत और इंग्लैंड का मैच चल रहा है लेकिन बदलाव की हवा ऐसे कि पवेलियन मे बैठे क्रिकेटर भी नीरज को देख रहे थे और जीत की बधाई दे रहे थे। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, नेता, प्रशासनिक अधिकारी, खिलाड़ी और आम जनता सभी बेचैन थे अपने भूमिपुत्र को बधाई देने के लिए।
सवाल ये नहीं कि नीरज की जीत से क्या बदलेगा सवाल ये है की नीरज की जीत से क्या कुछ नहीं बदलेगा? नीरज की जीत खेल के मठाधीशों के समक्ष एक भीषण हुंकार है- हे भारत! मैंने अपने भाल से धरती चीरकर सोना निकाला है और ये रवायत जारी रहे। चाहे इसके लिए जो करना पड़े- लहू बहे, पसीना बहे, या फिर कोई दूसरे परिवर्तन करने पड़ें लेकिन मिट्टी को सोना मिलता रहे।