शिवसेना का कांग्रेसीकरण हो चुका है!

शिवसेना का अंत नजदीक है

शिवसेना कांग्रेस

शिवसेना का कांग्रेसीकरण, ये शब्द प्रथमदृष्टया तो किसी भी साधारण व्यक्ति को आश्चर्यचकित कर सकता है, किन्तु यदि शिवसेना के पिछले दो वर्षों के क्रियाकलापों को देखें; तो ये कहा जा सकता है कि शिवसेना ने अपनी राजनीतिक कार्यशैली पूर्णतः 180 Degree  के टर्न के साथ परिवर्तित कर दी है। वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय खेल रत्न पुरस्कारों का नाम राजीव गांधी से मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार करना कांग्रेस को अत्यधिक आक्रोशित कर चुका है। वहीं टीएफआई अपनी पूर्व प्रकाशित रिपोर्ट में ये बता चुका है कि कैसे शिवसेना कांग्रेस के इस दुख में उनके शीर्ष नेताओं एवं गांधी परिवार के साथ खड़ी है, एवं इसीलिए शिवसेना नीत महाविकास अघाड़ी सरकार ने राजीव गांधी के नाम पर उनकी जन्मतिथि के दिन आईटी विभाग का पुरस्कार देने की घोषणा की है, इसे कांग्रेस के घावों पर किसी मलहम लगाने का सांकेतिक प्रयास माना जा रहा है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस दिन पूर्व पीएम राजीव गांधी का नाम हटाकर हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के नाम पर खेल रत्न पुरस्कार का नया नाम घोषित किया, तो पूरा विपक्षी धड़ा आक्रोशित हो गया। पीएम ने इस ऐतिहासिक निर्णय को जनता की मांग बताया, जो थी भी, क्योंकि राजीव गांधी कोई खिलाड़ी नहीं थे, जिनके नाम पर खेल रत्न पुरस्कार घोषित किया जाए, किन्तु कांग्रेस को तो विरोध करना ही था। इतना ही नहीं, कांग्रेस ने इसे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का अपमान बताया है।

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वहीं, इस निर्णय के बाद जब कांग्रेस दुखी थी, तो शिवसेना का आक्रोशित होना स्वाभाविक था, और कुछ हुआ भी ऐसा ही…! शिवसेना के मुखपत्र सामना में प्रकाशित एक लेख के माध्यम से मोदी सरकार के इस निर्णय की आलोचना कर इसे एक राजनीतिक पहल बताया गया; तो दूसरी ओर शिवसेना का राजीव गांधी के प्रति प्रेम देख कांग्रेस कोटे से राज्य मंत्री बने सतेज पाटिल ने ये विषय लपक लिया। उद्धव सरकार के मंत्री ने घोषणा कर दी कि प्रतिवर्ष 20 अगस्त को राजीव गांधी की जन्मतिथि के दिन राज्य में उनके नाम पर आईटी विभाग में अच्छा काम करने वाली कंपनियों या उनके कर्मचारियों को पुरस्कृत किया जाएगा। इस निर्णय के बाद ही सूचनाएं ये भी हैं कि 20 अगस्त को जब कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनियां गांधी संबोधन करेंगी, तो उस आयोजन में महाराष्ट्र के सीएम एवं शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी होंगे। अब ये बात बीजेपी समेत किसी भी साधारण नागरिक को समझ नहीं रही है।

उद्धव सरकार के इस फैसले को लेकर लोगों के मन में ये बात है कि जिस शिवसेना ने पूर्व पीएम इंदिरा गांधी से लेकर राजीव, सोनिया राहुल की मात्र आलोचना ही की हो, वो राजीव के नाम पर पुरस्कार की घोषणा कैसे कर सकती है, किन्तु कहावत है कि राजनीति अनिश्चितताओं का खेल है। ये पहला मौका नहीं है कि शिवसेना इतनी आक्रामकता के साथ कांग्रेस का समर्थन कर रही हो, राहुल गांधी को पप्पू एवं मखौल उड़ाने की हजारों संज्ञाऐं देने वाली शिवसेना राहुल को कांग्रेस और यूपीए का भविष्य मान रही है।

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शिवसेना ने अपने हिन्दुत्व के विषयों को तो संभवतः तिलांजलि दे दी है, किन्तु ये महाविकास अघाड़ी गठबंधन की दो वर्षीय सरकार के कार्यकाल के आधार पर ये तो स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि शिवसेना ने अपने सहयोगी दलों कांग्रेस और एनसीपी के विषयों को अपना चुकी है। औरंगाबाद का नाम तो संभाजी नहीं हुआ किन्तु शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे का नाम ‘जनाब बलासाहेब ठाकरे’ अवश्य हो गया है। राज्य के लिए में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए उर्दू पुस्तकालय का निर्माण हो रहा है, जिसके लिए कांग्रेस प्रसिद्ध है।

कांग्रेस-एनसीपी, शिवसेना से वो सभी निर्णय बड़ी ही सहजता के साथ पारित करवा रहे हैं जिनमें उनका राजनीतिक हित हो। शिवसेना नेता संजय राउत से आए दिन सोनिया गांधी की तारीफ करते रहते हैं। राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी से शिवसेना की शत्रुता इतनी विराट हो गई है कि पार्टी अब कांग्रेस को प्रत्येक विषय पर आंख बंद करके समर्थन दे रही है, पोगासस  हो गया राफेल, या संसद द्वारा पारित तीन कृषि कानून… सभी विषयों पर शिवसेना कांग्रेस के पीछे खड़ी दिखती है।

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की महत्वाकांक्षा मुख्यमंत्री बनने की थी, एवं इसीलिए उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़ा था। शिवसेना ने एनसीपी एवं कांग्रेस के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी गठबंधन के अंतर्गत उद्धव ठाकरे को सीएम तो बनवा लिया, किन्तु वर्तमान परिवेश पर ध्यान दें, तो ये कहा जा सकता है कि पार्टी अपनी मूल हिन्दुत्व की विचारधारा को त्याग चुकी है, एवं उसके क्रियाकलाप स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि शिवसेना का कांग्रेसीकरण हो चुका है। यही कारण है कि राजनीतिक विश्लेषक ये भी कहने लगे हैं कि यदि भविष्य में शिवसेना का विलय कांग्रेस में  हुआ, तो कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होगी। यदि ये यथार्थ रूप लेता है तो ये बाला साहेब ठाकरे की राजनीतिक विरासत को बर्बाद करने की आलोचनात्मक पहल होगी।

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