क्षेत्रवाद के नाम पर अराजकता फैलाकर राजनीतिक लाभ लेना कुछ राजनीतिक दलों की आदत बन गई है। तमिलनाडु-कर्नाटक के बीच कावेरी विवाद और शिवसेना का मराठी अस्मिता को लेकर आक्रामक रवैया सभी ने देखा है। ऐसे में दक्षिण के दो तेलगूभाषी राज्यों के बीच क्षेत्रवाद का नया मुद्दा छिड़ सकता है, जिसका कारण बना है, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच कृष्णा नदी के जल की हिस्सेदारी। अभी तक सब कुछ सामान्य था एवं तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच जल बंटवारा भी सहज था।
अब तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की सरकार ने कृष्णा नदी के जल को लेकर दावा किया है कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच जल बंटवारा बराबरी का होना चाहिए। केसीआर के इस बदले हुए रवैए की वजह उनकी कमजोर होती राजनीतिक पकड़ को माना जा रहा है, इसीलिए अब वो क्षेत्रवाद के नाम अपनी राजनीतिक साख मजबूत करने में जुट गए हैं।
जब भी किसी राजनीतिक दल का रसूख कम होता है तो वो क्षेत्रवाद की भावना के लिए क़ोई फिजूल का मुद्दा उठाकर विवाद खड़ा कर देता है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर के नेतृत्व में राज्य सरकार कुछ ऐसा ही कर रही है। राज्य में कृष्णा नदी के जल के इस्तेमाल को लेकर अब तेलंगाना की मांग है कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना, दोनों को ही जल का समान बंटवारा दिया जाए।
इतना ही नहीं केसीआर की सरकार इस मुद्दे पर कानूनी लड़ाई लड़ने की बात भी कह चुकी है। वहीं केसीआर के इस रवैए के बाद आंध्र प्रदेश की जगन मोहन रेड्डी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई और मुद्दे को सुलझाने के लिए आपसी सहमति बनाने के लिए कहा है, जबकि केसीआर तो जलाशयों पर पुलिस की तैनाती तक करवा चुके हैं।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना ने कहा है कि वो अब इस केस की सुनवाई नहीं करेंगे क्योंकि उनका दोनों ही राज्यों से नाता है। ऐसे में ये मुद्दा अधिक पेचीदा हो गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि जो तेलंगाना सरकार राज्य के गठन के बाद कृष्णा नदी का जल आंध्र प्रदेश के साथ 66:34 फॉर्मूले में जल बंटवारा करने को तैयार थी, वो अचानक बिफर क्यों गई ? दरअसल, इसके पीछे स्पष्ट तौर पर क्षेत्रवाद की राजनीति और केसीआर का कम होता राजनीतिक रसूख ही है।
तेलंगाना का गठन यूपीए सरकार के अंतिम वर्ष के कार्यकाल के दौरान हुआ, और ये भी कहा जाता है कि कांग्रेस ने इसको लेकर नियमों का उल्लघंन भी किया। यही कारण है कि आए दिन तेलंगाना और आंध्र के बीच टकराव की स्थिति आ जाती है।
इसके विपरीत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपयी के शासनकाल के दौरान भी छत्तीसगढ़, झारखंड, और उत्तराखंड का गठन हुआ पर कोई विवाद देखने को नहीं मिला। तेलंगाना का आंध्र के साथ राज्यों के राजधानी तक के मुद्दे पर भयंकर विवाद हो चुका है, जिसके चलते राज्य राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल से घिरा रहता है। ऐसे में कृष्णा जल विवाद को केसीआर ने जानबूझकर कर खड़ा किया है।
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केसीआर सरकार के कृष्णा नदी के जल को लेकर खड़े किए गए विवाद पर तेलंगाना बीजेपी अध्यक्ष बांदी सजय ने कहा है कि अंतरराज्यीय सीमाओं के जलाशयों पर पुलिस तैनात करके मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव हुजुराबाद उपचुनाव में क्षेत्रीय भावनाओं को भड़काने की कोशिश कर रहे थे, जहां से टीआरएस के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री इटेला राजेंदर अब भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं।
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की ये बात अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इटाला राजेंदर टीआरएस के एक कद्दावर नेता थे, और उनका टीआरएस से बीजेपी में आना केसीआर को झटका दे गया है। इतना ही नहीं हाल में हुए ग्रेटर हैदराबाद महानगरपालिका चुनावों में बीजेपी के प्रदर्शन ने केसीआर और ओवैसी जैसे नेताओं की हवाइयां उड़ा दीं हैं।
लोकसभा चुनाव से लेकर ब्लॉक लेवल तक के चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन सुधर रहा है, जिससे राज्य में बीजेपी की स्थिति मजबूत हो रही है। तेलंगाना को विशेष प्रतिनिधित्व देने लिए ही मोदी सरकार ने राज्य से आने वाले बीजेपी नेता जी किशन रेड्डी की कैबिनेट में पदोन्नति की गई है।
ये पूरा घटनाक्रम केसीआर के लिए मुसीबत का सबब बना है। ऐसे में ये माना जा रहा है कि केसीआर बीजेपी को टक्कर देने के लिए ही क्षेत्रवाद का मुद्दा उठा रहे हैं, जिससे वो राज्य में बीजेपी पर बढ़त बना सकें।
यही कारण है कि 66:34 के अनुपात में जल संधि पर सहमति बनाने वाली तेलंगाना की ही राज्य सरकार अचानक कृष्णा नदी के बराबर जल बंटवारा की मांग कर रही है, क्योंकि केसीआर की राजनीतिक जमीन तेजी से खिसक रही है।