त्रिपुरा के CM बिप्लब देब घातक हमले में बाल-बाल बचे, मुख्यधारा की मीडिया ने इस खबर को दबा दिया

त्रिपुरा के CM की हत्या की साजिश!

त्रिपुरा मुख्यमंत्री हमला

हमारे देश की मीडिया भी हमारे देश की पार्टियों की भांति दोहरा मापदंड अपनाती है। यदि किसी विपक्षी नेता को एक खरोंच भी आ जाए तो मीडिया से लेकर वामपंथी बुद्धिजीवी आसमान सिर पर उठा लेंगे और पीएम मोदी तक को अपशब्द सुनाने को तैयार हो जाएंगे। परंतु यदि किसी भाजपा शासित राज्य त्रिपुरा के मुख्यमंत्री पर जानलेवा हमला हो जाए तो कोई चर्चा तक करने को तैयार नहीं होगा।

ऐसा हाल ही में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब के साथ हुआ, जिन पर हाल ही में घातक हमला हुआ, जिसमें वे बाल बाल बचे। इस खबर को मुख्यधारा की मीडिया द्वारा दबा दिया गया, लेकिन ये सब हुआ कैसे?

त्रिपुरा पुलिस के अनुसार, “मुख्यमंत्री अपने आधिकारिक आवास श्यामा प्रसाद मुखर्जी लेन के निकट गुरुवार (5 अगस्त) शाम को सैर पर निकले थे, तभी तेज रफ्तार कार उनके सुरक्षा घेरे में घुस गई। उस कार में तीन लोग सवार थे। उस हादसे में मुख्यमंत्री बाल-बाल बच गए थे, लेकिन उनका एक सुरक्षाकर्मी घायल हो गया”।

जागरण की इसी रिपोर्ट में आगे बताया कि सीएम के सुरक्षा दस्ते ने उस कार को रोकने को कोशिश थी, लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके। पुलिस ने बताया कि बाद में केरचाऊमुहानी से तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया और उनकी कार को भी जब्त कर लिया है। आरोपितों को 6 अगस्त को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट पीपी पॉल की अदालत में पेश किया गया था। प्रारम्भिक जांच में सामने आया है कि तीनों नशे में धुत थे, और उन्होंने न केवल कर्फ्यू नियमों का उल्लंघन किया, बल्कि अवैध रूप से 6 पुलिस बैरिकेड्स को भी तोड़ा। जब शराब के नशे में धुत तीन लोगों को रोकने का प्रयास किया गया तो उन्होंने त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के अलावा एक पुलिसकर्मी पर भी हमला कर दिया। फिलहाल के लिए तीनों आरोपी न्यायालय के आदेश अनुसार 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजे गये हैं। इस घटना के पीछे कोई राजनीतिक लिंक है या नहीं इसकी जांच पुलिस कर रही है।

गौर करने वाली बात ये है कि जागरण और स्थानीय अखबारों को छोड़कर कहीं भी इस खबर को महत्व नहीं दिया गया है। वहीं, दूसरी ओर त्रिपुरा में तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी को भाजपा नेताओं के विरोध का सामना क्या करना पड़ा, मीडिया से लेकर तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने ‘लोकतंत्र खतरे में’ है का राग अलापने लगे। इसी दोहरे मापदंड के कारण मीडिया धीरे धीरे अपनी विश्वसनीयता खोती जा रही है, और यदि ऐसे ही चलता रहा, तो लोग एक दिन न्यूज के लिए शायद टीवी देखना ही बंद कर दे।

Exit mobile version