टोक्यो ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन अब तक का सबसे बेहतरीन है और यहीं से भारत का भाग्योदय होगा

अभी तो और आगे जाना है....

7 अगस्त 2021, भारतीय खेलों के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित होगा। टोक्यो ओलंपिक के सक्रिय स्पर्धाओं के अंतिम दिन इतिहास रचते हुए सूबेदार नीरज चोपड़ा ने पुरुष भाला फेंक में 87.58 मीटर तक भाला फेंकते हुए न केवल स्वर्ण पदक जीता, बल्कि टोक्यो ओलंपिक को भारत के लिए अब तक का सबसे यादगार ओलंपिक बना दिया। नीरज के अलावा चैंपियन पहलवान बजरंग पूनिया ने भी भारत का मान रखते हुए अपने स्पर्धा में कांस्य पदक प्राप्त किया। टोक्यो ओलंपिक न केवल भारत का खेलों में सबसे उत्कृष्ट प्रदर्शन हैं, अपितु यहाँ से भारत का ओलंपिक में भाग्योदय भी हो सकता है।

नीरज के ऐतिहासिक स्वर्ण पदक के साथ भारत ने टोक्यो ओलंपिक से 1 स्वर्ण, 2 रजत और 4 कांस्य पदकों के साथ 47 वें स्थान पर है। पदकों की संख्या के अनुसार, ये भारत का सबसे उत्कृष्ट प्रदर्शन है, और रैंक के अनुसार मॉस्को ओलंपिक के बाद यह सबसे बेहतरीन प्रदर्शन है। वर्षों बाद ओलंपिक पदक तालिका के टॉप 50 में भारत शामिल हुआ है –

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परंतु बात यहीं पर खत्म नहीं होती। अगर आप पदकधारियों की आयु पर एक दृष्टि डालें, तो इनमें से अधिकतर तो 30 वर्ष से कम के ही हैं। नीरज चोपड़ा, जो अभिनव बिन्द्रा के बाद भारत के दूसरे व्यक्तिगत स्वर्ण पदकधारी हैं, अभी केवल 23 वर्ष के हैं। लवलीना भी इतने ही आयु की हैं, जबकि पीवी सिंधू और बजरंग पूनिया तो अभी 27 के भी नहीं हुए हैं। पेरिस ओलंपिक में यही युवावस्था भारत के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध होगी, क्योंकि जितने अधिक युवा होंगे, उतने अधिक पदक की संभावना भी बढ़ेगी।

इसके अलावा यदि अगर पदकों पर आप एक दृष्टि डालें, तो इनमें से सभी में किसी न किसी प्रकार का ऐतिहासिक प्रदर्शन जुड़ा है। जब साईखोम मीराबाई चानू ने भारोत्तोलन में रजत पदक दिलाया, तो ये दो मामलों में ऐतिहासिक था। 21 वर्ष बाद भारत को इस स्पर्धा में पदक मिला था, और ऐसा पहली बार हुआ था जब ओलंपिक खेलों के पहले ही दिन  भारत को किसी भी खेल में पदक मिला हो।

इसके अलावा जब लवलीना बोरगोहैन ने मुक्केबाज़ी में कांस्य पदक प्राप्त किया, तो वो भी कम ऐतिहासिक नहीं था। लंदन ओलंपिक 2012 के बाद पहली बार भारत को मुक्केबाज़ी के किसी श्रेणी में पदक मिल था, और लवलीना भारत को मुक्केबाज़ी में ओलंपिक में पदक जिताने वाली केवल दूसरी भारतीय महिला है। जब पीवी सिंधू ने बैडमिंटन में कांस्य पदक जीता, तो वह लगातार दो ओलंपिक में भारत को पदक जिताने वाली प्रथम भारतीय महिला बनी।

लेकिन हॉकी टीम ने इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज कराया। मॉस्को ओलंपिक के बाद पहली बार पुरुष और महिला हॉकी टीम ने सेमीफाइनल में प्रवेश किया। दोनों फाइनल में प्रवेश करने से चूक गए। लेकिन पुरुष हॉकी टीम ने एक रोमांचक मुकाबले में जर्मनी को 5-4 से हराते हुए न केवल कांस्य पदक प्राप्त किया, अपितु 41 वर्ष बाद ओलंपिक हॉकी में अपना सूखा खत्म किया। महिला हॉकी टीम ने भी जुझारू खेल दिखाया, परंतु वह मामूली अंतर से इतिहास दर्ज करने से चूक गई, और उन्हे चौथे स्थान से ही संतोष करना पड़ा।

कुश्ती ने एक बार फिर देश का मान रखते हुए भारत को एक रजत और एक कांस्य पदक दिलाया। विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य जीतने वाले रवि दहिया ने 57 किलो वर्ग में अपेक्षा के विपरीत सेमीफाइनल में प्रवेश किया, और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद कजाखिस्तान के पहलवान नूरइस्लाम सनाएव को चित करते हुए फाइनल में प्रवेश किया। वहीं बजरंग पूनिया सेमीफाइनल में भले ही हार गए, परंतु देश का मान रखते हुए उन्होंने कांस्य पदक पर कब्जा जमाया।

लेकिन भाला फेंक में जो सूबेदार नीरज चोपड़ा ने किया, उसके लिए कोई भी शब्द कम पड़ेगा। स्वतंत्र भारत को पहली बार ओलंपिक एथलेटिक्स में पदक मिला, और वो भी स्वर्ण पदक। 87.58 मीटर तक भाला फेंक कर नीरज चोपड़ा ने न केवल भारत का मान बढ़ाया, बल्कि भाला फेंक में यूरोप का वर्चस्व भी फिर से तोड़ा। उनसे पहले भी यूरोप का वर्चस्व तोड़ा गया है, परंतु ऐसा पहली बार हुआ, जब किसी एशियाई भाला फेंक एथलीट ने इस स्पर्धा में ओलंपिक पदक / स्वर्ण पदक जीता हो।

यही नहीं, कई एथलीट ऐसे हैं, जिन्होंने पदक तो नहीं जीता, लेकिन उनका प्रदर्शन नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए अदिति अशोक को देख लीजिए। महिला गोल्फ में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही अदिति विश्व रैंकिंग में शीर्ष 100 में भी नहीं थी, पर एक समय तक वह गोल्फ स्पर्धा में रजत पदक की प्रबल दावेदार थी। वह मात्र एक अंक से कांस्य जीतने से चूक गई। ठीक इसी प्रकार से कमलप्रीत कौर चक्का फेंक यानि डिस्कस थ्रो के फाइनल में छठे स्थान पर आई।

इसके अलावा सरकारी स्तर पर भी खिलाड़ियों को जबरदस्त प्रोत्साहन मिला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जीत या हार पर खिलाड़ियों से बातचीत हो, उन्हें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के सम्बोधन में आने का निमंत्रण देना हो, ऐसे छोटे-छोटे निर्णय भी बहुत मायने रखते हैं। इसके अलावा क्षेत्रीय स्तर पर नवीन पटनायक जैसे लोगों को भी अनदेखा नहीं कर सकते, जिन्होंने हॉकी का कायाकल्प ही कर दिया।

ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि टोक्यो ओलंपिक न केवल भारत के लिए सबसे उत्कृष्ट ओलंपिक है, बल्कि ये भारत का भाग्योदय का संकेत है, जो पेरिस ओलंपिक 2024 में बहुत ही उत्कृष्ट परिणाम देने वाला है।

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