उत्तर प्रदेश की राजनीति को लेकर ये कहा जाता है कि सरकार उसी राजनीतिक दल की बनती है, जिसका दबदबा पूर्वांचल की सीटों पर होता है। ऐसे में विधानसभा चुनावों के लेकर एक बार फिर इस क्षेत्र में राजनीतिक उष्णता बढ़ने लगी है। पूर्वांचल की राजनीति को लेकर ये भी कहा जाता है कि इलाके के वोटर प्रत्येक विधानसभा चुनाव में सत्ता के विपरीत ही वोट करते हैं। साल 2007 में बसपा, 2012 में सपा और 2017 में पूर्वांचल में बीजेपी की जीत ने इस पैटर्न स्थापित किया है। यही वजह है कि बीजेपी अब इस बार पूर्वांचल में विशेष ताकत झोंक रही है। इसी को देखते हुए राज्य में पीएम मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह और सीएम योगी आदित्यनाथ पूर्वांचल की राजनीतिक जमीन पर में सक्रिय हो गए हैं। पूर्वांचल के सत्ता विरोधी वोटिंग पैटर्न को तोड़ने के लिए बीजेपी ने विशेष रणनीति पर काम करना शुरु कर दिया है।
जिस तरह ये कहा जाता है कि दिल्ली की सत्ता के लिए लखनऊ में मजबूती आवश्यक है, ठीक उसी तरह लखनऊ की सत्ता के लिए पूर्वांचल में राजनीतिक पार्टी की स्थिति मजबूत होनी चाहिए। पूर्वांचल के 28 जिलों की 164 विधानसभा सीटें ये तय कर देती हैं, कि राज्य में अगला सीएम किस राजनीतिक दल का होगा। यही कारण है कि बीजेपी साल 2022 के विधानसभा चुनावों को लेकर अपनी चुनावी तैयारियों में जुट गई है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बनारस का दौरा किया, और इस दौरान योगी सरकार के साढ़े चार साल के कामों पर सीएम की पीठ थपथपाई।
पीएम मोदी के बाद गृहमंत्री अमित शाह भी उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में उत्तर प्रदेश फॉरेंसिक साइंस इंस्टीट्यूटका शिलान्यास करने आए थे। इतना ही नहीं, उन्होंने भी इस दौरान पूर्वांचल की राजनीतिक स्थिति को पढ़ने के प्रयास किए। उन्होंने बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं के साथ अपने जुड़ाव को याद दिलाया, जिससे कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार किया जा सके। अमित शाह से इतर, पूर्वांचल की इस राजनीति के लिए सबसे अहम मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी हैं, जो कि प्रदेश में तो लोकप्रियता के शिखर पर हैं ही, साथ ही गोरखपुर और आस-पास के जिलों को उनका गढ़ माना जाता है। हालांकि, सीएम योगी गोरखपुर समेत पूर्वांचल के दौरे पर जाते रहते हैं, एवं रणनीति के तहत आज भी वो गोरखपुर के दौरे पर ही हैं।
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इसके अलावा बीजेपी ने पूर्वांचल में अपनी राजनीतिक बिसात को मजबूत करने के लिए अपने महत्वपूर्ण चेहरे अरविंद कुमार शर्मा को जिम्मेदारी दी है, जो कि पूर्व आईएएस अधिकारी हैं और पीएम मोदी के साथ पीएमओ में भी काम कर चुके हैं। ऐसे में उन्हें इस्तीफा देने के तुरंत बाद ही उत्तर प्रदेश की राजनीति में उतार दिया गया था। लखनऊ की राजनीति से दूर ऐ.के. शर्मा पूर्वांचल में बीजेपी की राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए अमित शाह और सीएम योगी की रणनीति के अंतर्गत प्रयासरत् हैं।
बीजेपी के शीर्ष स्तर तक के नेताओं की पूर्वांचल में सक्रियता इस बात का संकेत है कि बीजेपी का आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्य टारगेट पूर्वांचल की 164 सीटें ही होंगी। पूर्वांचल के जिलों की बात करें तो इनमें वाराणसी, जौनपुर, भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र, प्रयागराज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, संतकबीरनगर, बस्ती, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, बलिया, सिद्धार्थनगर चंदौली, अयोध्या, गोंडा, बलरामपुर, श्रावस्ती, बहराइच, सुल्तानपुर, अमेठी, प्रतापगढ़, कौशांबी और अंबेडकरनगर आते हैं। इस क्षेत्र के वोटरों का पैटर्न बीजेपी ने समझ लिया है, क्योंकि पिछले तीन विधानसभा चुनावों से सत्ता विरोधी लहर के तहत वोट करते रहे हैं।
सबसे पहले बात अगर वर्ष 2007 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो बसपा ने दलित-ब्राह्मण कार्ड के दम पर पूर्वांचल से करीब 85 सीटें प्राप्त की थीं, और ये मायावती के सीएम बनने की बड़ी वजह थी। इसके विपरीत साल 2012 में सपा ने 102 सीटें जीतीं थीं, और बहुमत पाकर यूपी में सरकार बनाई थी। यही नहीं, वर्ष 2017 में यहां बीजेपी ने प्रचंड 115 सीटें प्राप्त की थी, और एक लंबे निर्वासन के बाद पार्टी की उत्तर प्रदेश में वापसी हुई थी, जिसके चलते बीजेपी के लिए ये क्षेत्र एक गढ़ साबित हुआ था।
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पूर्वांचल में भले ही बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की हो, लेकिन जौनपुर, गाजीपुर आजमगढ़, प्रतापगढ़ और अंबेडकरनगर जैसे जिलों में सपा और बसपा ने कड़ी चुनौती दी है। बसपा ने तो साल 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के मंत्री मनोज सिन्हा को भी हरा दिया था। बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को पूर्वांचल से आने वाली 4 सीटों पर भी हार मिली थी। यह इस बात का संकेत है कि पूर्वांचल में बीजेपी को अपनी पकड़ यहां पहले से अधिक मजबूत करनी होगी। यही वजह है कि भाजपा के तीनों दिग्गज नेता पूर्वांचल क्षेत्र में एक के बाद एक दौरा कर रहे हैं।
दूसरी ओर सत्ता विरोधी वोटिंग करने वाले पूर्वांचल के पैटर्न को देखते हुए ही बीजेपी राज्य में तो सक्रिय है ही, साथ ही क्षेत्र में पार्टी ने सभी बड़े नेताओं को सक्रिय कर दिया है, जिसकी मॉनिटरिंग का काम सीधे तौर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी कर रहे हैं, क्योंकि पीएम मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह और सीएम योगी सभी जानते हैं कि पूर्वांचल में दबदबा होना अतिआवश्यक है। इसी रणनीति के तहत ये भी संभावनाएं हैं कि सीएम योगी आदित्यनाथ स्वंय अयोध्या की विधानसभा सीट से चुनाव लड़ सकते है, जैसे पीएम ने वाराणसी से चुनाव लड़कर पूरे पूर्वांचल की राजनीति में पासा ही पलट दिया था। इससे हिन्दुत्व के एजेंडे के साथ ही पूर्वांचल का वोट बैंक साधने में अधिक सहजता होगी। अब ये देखना महत्वपूर्ण होगा कि विपक्षी पार्टियां क्या रणनीति अपनाती हैं।