‘गाछे कटहर होठे तेल’ यह कहावत तो अपने सुनी होगी। इसका मतलब यह होता है कि पेड़ की डाली पर कटहल देखकर कई बार लोगों की मुंह मे पानी आ जाता है। बंगाल और अन्य राज्यों में भाजपा के हारने के बाद कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल फुले नही समा रहे थे। उन्हें यह लगा कि उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षी योजना अब धड़ल्ले से पूरी होगी लेकिन हकीकत यह है कि विपक्षी दलों का आंतरिक ढांचा इतना कमजोर है कि खुद के नेता नहीं सम्भाल रहे है। अब ऐसा ही संकट छत्तीसगढ़ में आ चुका है।
दिसंबर 2018 में कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ विधासनभा चुनाव में 90 सीटों में से 68 सीटों पर कब्जा जमाया था। कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बनी तब तय हुआ था कि ढाई-ढाई साल के लिए दो मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे। ये वादा भी सपा-बसपा वाला वादा था। सत्ता का लोभ अच्छे-अच्छे के वादों पर पानी फेर देता है। भूपेश बघेल बदल गए, कुर्सी ना देने की बात कही गई। अब इस मुद्दे पर छत्तीसगढ़ सरकार की सत्ता के दो केंद्रों के बीच संकट चरम पर है। मुख्यमंत्री बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने मंगलवार को राहुल गांधी से मुलाकात की थी।
अभी दिल्ली में राज्य के आधे से ज्यादा कांग्रेस विधायक, छत्तीसगढ़ भवन में रुके हुए हैं। थोड़ी देर में सभी लोग एक साथ कांग्रेस मुख्यालय पहुंचेंगे। मुलाकात से पहले सीएम बघेल ने कहा था- सरकार सुरक्षित है। हमारे साथ 70 विधायक हैं। उधर टीएस सिंह देव ने भी कह दिया है कि हर खिलाड़ी कप्तान बनना चाहता है। कांग्रेस पार्टी के पीएल पुनिया और वेणुगोपाल पूरी कोशिश कर रहे है कि सहमति बन जाये लेकिन टीएस सिंह देव इस बार मुख्यमंत्री से नीचे मानने को तैयार नही होंगे।
भूपेश बघेल भी अपनी मंशा जाहिर कर चुके है। दोनों लोगों को एक ही कुर्सी चाहिए। अगर बघेल CM बने तो टीएस सिंह देव पार्टी तोड़ेंगे, वरना फिर टीएस सिंह देव के बनने पर बघेल पार्टी तोड़ेंगे। अभी भी 20 विधायक दूसरे पार्टी के है। 25 विधायक लेकर कोई भी दूसरी ओर जाकर सरकार बना सकता है और शायद इस शक्ति के गुणा गणित के कारण छत्तीसगढ़ में यह राजनीतिक संकट और जटिल होते जा रहा है।