“मुंबई महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे सुरक्षित शहर है और इसको लेकर किसी के मन में कोई शक नहीं होना चाहिए”, महाराष्ट्र सरकार का यह बेशर्मी भरा बयान शिवसेना के मुखपत्र सामना के जरिये सामने आया है। लेकिन ऐसा क्यों कहा गया है? क्योंकि मुंबई के साकीनाका में एक बलात्कार केस सामने आया है जिसकी वजह से मुंबई सरकार के नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं और तो और, आंकड़े तो उद्धव सरकार के दावों के ठीक विपरीत है। आंकड़ो के हिसाब से मुंबई सबसे सुरक्षित नहीं बल्कि महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित शहर बनता जा रहा है। मुंबई पुलिस की वेबसाइटों पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, पुलिस ने इस साल के शुरू होने से जुलाई तक मुंबई में बलात्कार के 550 मामलें दर्ज किए है, जिनमें से 445 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है।
सामना के मुताबिक भारत में महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित स्थान मुंबई की हालत आंकड़ो से समझ लेते है। सरकारी आंकड़ो के अनुसार, 2020 में मुंबई दिल्ली के बाद देश का दूसरा बड़ा असुरक्षित शहर है। दिल्ली में छेड़खानी के 2,326 मामलें दर्ज किए गए थे और मुंबई में 2069 मामलों को रिकार्ड किया गया था। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते है कि देश में महिला अत्याचारों के मामलें पर दूसरे स्थान पर है। दिल्ली में 12902 मुकदमें दर्ज किए गए थे वहीं मुंबई में 6519 अपराध रिकार्ड किये गए हैं।
ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मामलें में तो मुंबई दिल्ली से भी आगे है। मुंबई में जहां 85 मामलें पाए गए हैं वहीं दिल्ली में 56 मामलें देखे गए थे। शहर स्थित प्रजा फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई में बलात्कार के मामलों की संख्या 2015-2016 में 728 से बढ़कर 2019-2020 में 904 (124%) हो गई है। उसी रिपोर्ट के अनुसार, 2015-2016 में कुल 2,145 छेड़छाड़ के मामलें दर्ज किए गए, जबकि 2019-2020 में 2,677 मामलें दर्ज किए गए जिससे 25% की वृद्धि दर्ज की गई है। एक अन्य आंकड़ो की मानें तो सन 2020 में, शुरुआत के छह महीनों में 377 बलात्कार के मामलें दर्ज हुए थे जो इस वर्ष बढ़कर 550 हो गए है। यानी कुल इजाफा 68% का हुआ है।
साकीनाका में हुए बलात्कार की पीड़िता की उम्र 32 वर्ष थी और वह तीन बच्चों की मां थी। पीड़िता का पति उसे छोड़कर बाहर रहता था और उस महिला का भी एक व्यक्ति के साथ मिलना जुलना चालू था। मुंबई के कमिश्नर हेमंत नरगले के अनुसार, रात में पीड़िता के माता और उसके बीच बहस हुई और वो रात के तीन बजे घर से बाहर निकल आई। रात में आरोपी मोहन चौहान और पीड़िता के बीच मुलाकात हुई जिसके बाद आरोपी ने महिला को मार दिया। अफसर ने बताया, “जब वह (पीड़िता) बेहोश हो गई, तो आरोपी उसे टेंपो के अंदर ले गया, जहां उसने कथित तौर पर उसका यौन उत्पीड़न किया और उसके गुप्तांगों के अंदर एक नुकीली चीज डालकर उसकी हत्या कर दी गई।”
इसके बाद आलोचनाओं का दौर शुरू हुआ। शिवसेना ने अपना पक्ष रखने के लिए सामना का इस्तेमाल किया। सामना में खास सम्पादकीय लिखा गया जिसका उद्देश्य यह नहीं था कि इस घटना की निंदा की जाए और इससे बचने के लिए उपाय किये जायें बल्कि यहां पर भी राजनीति करना इसका मुख्य उद्देश्य था। सामना में कहा गया कि साकीनाका इलाके में एक महिला के साथ बलात्कार और हत्या जैसी घटनाएं एक “भयानक विकृति” का परिणाम थीं, जिसे दुनिया के किसी भी हिस्से में देखा जा सकता है और मुंबई की घटना की तुलना हाथरस मामलें (उत्तरप्रदेश) से नहीं की जा सकती है।
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ऐसी तुच्छ स्तर की राजनीति करने के बाद लोगों ने अपना गुस्सा सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर जाहिर किया। निर्भया कांड की तरह ही यह भी एक जघन्य घटना है और लोग शिवसेना को घेर रहे हैं।
आंकड़ो के आधार पर तो शिवसेना के दावों पर सवालिया निशान लग गया है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बताएं कि किस आधार पर मुंबई को सबसे सुरक्षित स्थान माना जाए? शिवसेना वही पार्टी है जो एक तरफ शक्ति एक्ट लाने की बात करती है, तो दूसरी ओर वह अपने राज्य में हो रहे अपराधों पर गलती स्वीकार नहीं कर रही है। बलात्कार के मामलें एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की समस्या है, जिसपर बड़े पैमाने पर काम करने की आवश्यकता है। शिवसेना कम से कम यह स्वीकार करे कि उसके कार्यकाल में आपराधिक घटनाओं में वृद्धि हुई है।