मुस्लिम अध्यापिका ने तिलक लगाने के कारण 14 वर्षीय बच्चे को सबके सामने पिटवाया

निशात बेगम के ‘आदेश’ पर कुछ लड़कों ने पवन को पीट-पीटकर घायल कर दिया!

हमारे संविधान के अनुसार भारत एक लोकतांत्रिक संप्रभु पंथनिरपेक्ष गणराज्य है लेकिन कई संगीन मामलों को देखने के बाद यह प्रतीत होता है कि यहां पर पंथनिरपेक्षता केवल नाम की है। असल में हमारे यहां पंथनिरपेक्षता का वास्तविक अर्थ इस्लाम और ईसाई धर्म को असीमित सुविधाएँ प्रदान करना और सनातन धर्म को अपमानित करने और उसे नीचा दिखाने का कोई भी अवसर अपने हाथ से ना जाने देना है! इसके कई उदाहरण आजकल हमारे देश में देखने को मिल रहे हैं, जिसमें सबसे ताजा उदाहरण मध्यप्रदेश में देखने को मिला है, जहां पर एक 14 वर्षीय बालक को एक मुस्लिम अध्यापिका के निर्देश पर इसलिए पीट-पीटकर घायल कर दिया गया क्योंकि वह तिलक लगाकर स्कूल आया करता था।

अध्यापिका को थी तिलक लगाने से आपत्ति

असल में मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में एक 14 वर्षीय छात्र के बुरी तरह पीटे जाने की खबर सामने आई है। उसके अभिभावकों का आरोप है कि उक्त छात्र को कुछ लड़कों ने उसके स्कूल की अध्यापिका निशात बेगम के ‘आदेश’ पर पीटा और इतनी बुरी तरह पीटा कि लड़के को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा।

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परंतु, उस लड़के को किस कारण से पीटा गया? आखिर निशात बेगम की उस बच्चे से ऐसी क्या शत्रुता थी, जिसके कारण उस लड़के पर इतना अत्याचार किया गया? रायसेन जिले के गैरतगंज स्थित माध्यमिक पाठशाला में पढ़ रहे छात्र पवन सेन के अनुसार वह स्कूल से पहले नित्य मंदिर जाया करता था, जहां से वह तिलक लगाकर आता था। इस बात से उसकी अध्यापिका निशात बेगम को काफी आपत्ति थी और उसने कई बार उस बच्चे को टोका भी था लेकिन पवन ने तिलक लगाकर स्कूल आना बंद नहीं किया। ऐसे में परिजनों का आरोप है कि इसी के पीछे निशात बेगम ने अराजक तत्वों के सहारे उनके लड़के को पिटवाया है। वहीं, स्कूली स्टाफ का मानना है कि यह लड़कों के बीच आपसी लड़ाई का मामला है। परंतु जिस प्रकार से लड़के को पीटा गया है, उसपर संज्ञान लेते हुए पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया है

भारत में पहले भी आ चुके हैं ऐसे कई मामले

आपको क्या लगता है, ये ऐसा प्रथम मामला है? ऐसे अनेक मामले सामने आए हैं, जहां सनातनी होने के लिए भारत में ही नहीं, अपितु भारत के बाहर भी बच्चों को अपमानित किया जाता है, उन्हे सताया जाता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देने वाले मौसमी ऐक्टिविस्ट ऐसे मामलों पर चुप्पी साध लेते हैं। उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलिया में एक 12 वर्षीय बच्चे को फ़ुटबॉल की फील्ड से इसलिए भगा दिया गया था क्योंकि वह कंठी माला पहनकर आया था, जो तुलसी के पत्तों से युक्त होती है।

विदेश तो विदेश, भारत में भी सनातन बच्चे सुरक्षित नहीं है। 2017 में मेवात में एक आवासीय विद्यालय से दो मुस्लिम शिक्षकों को निलंबित किया गया था क्योंकि वे हिन्दू छात्रों से जबरदस्ती नमाज़ पढ़वा रहे थे। ऐसे ही तमिलनाडु में कुछ बच्चों को एक ईसाई स्कूल में इसलिए दंडित किया गया क्योंकि उन्होंने दीपावली पर अपने घर में पटाखे फोड़े थे। तमिलनाडु के उसी स्कूल में मेहंदी लगाने के लिए एक बच्ची को हाथ पर स्केल से बुरी तरह मारा गया था। ऐसे न जाने कितने उदाहरण हैं, जहां बच्चों को यह महसूस कराने का प्रयास किया गया है कि सनातनी होना कितना बड़ा ‘पाप’ है। यही अति इन चरमपंथी संस्थाओं को भी डूबो सकती है और यदि मध्यप्रदेश की घटना से हिंदुओं ने सबक नहीं लिया तो आगे चलकर ये बीमारी और भी हानिकारक साबित हो सकती है।

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