– 1200-1300 ईस्वी में कूपे नामक एक पोलिनेशियन नाविक द्वारा आओटेरोआ नाम रखा गया था।
– 1640 में डच खोजकर्ता अबेल तस्मान ने डच प्रान्त ज़ीलैंड से प्रेरित होकर नाम न्यूज़ीलैंड रखा।
– 1740 के करीब में अंग्रेजी नाविक जेम्स कुक ने नक्शे में इसे न्यूजीलैंड बताया था।
अगर आप रग्बी खेल पसंद करते हैं तो आपने ध्यान दिया होगा कि न्यूजीलैंड की टीम मैच शुरू होने से पहले मैदान में अलग प्रथा का पालन करती है जिसमें वो जांघ, छाती और बांहों पर कसकर मारते हैं और चिल्लाते हैं। ऐसे लगता है कि वह युद्ध की घोषणा कर रहे हैं और सच में ये युद्ध का आह्वान करने का तरीका है। उस आह्वान को माओरी हाका (Maori Haka) कहते हैं। माओरी न्यूजीलैंड के मूल लोग हैं जो उपनिवेशवाद के बाद लगभग खत्म हो गए हैं, लेकिन अभी भी जो बचे हुए हैं वह अपनी विशिष्ट पहचान और संस्कृति के लिए लड़ रहे हैं। अब उन्हीं माओरी लोगों के चलते न्यूजीलैंड का नाम बदला जा सकता है।
न्यूजीलैंड की माओरी पार्टी ने मंगलवार को देश के नाम को आधिकारिक तौर पर “आओटेरोआ” में बदलने की मांग शुरू कर दी है। “आओटेरोआ” का स्वदेशी ते रे माओरी भाषा में मतलब “लंबे सफेद बादल की भूमि” है। इस अभियान की शुरुआत करते हुए माओरी पार्टी ने जैसिंडा अर्डर्न (Jacinda Ardern) के नेतृत्व वाली न्यूजीलैंड सरकार से सभी कस्बों, शहरों और स्थानों के नामों को माओरी इतिहास के हिसाब से बहाल करने का भी आग्रह किया है।
स्वदेशी अधिकारों के लिए अभियान चलाने वाली पार्टी ने अपने अभियान में कहा, “यह बहुत सही समय है कि ते रे माओरी को इस देश की पहली और आधिकारिक भाषा के रूप में बहाल किया जाये और खोया हुआ सम्मान वापस दिलाया जाये। हम एक पोलिनेशियन देश हैं- हम आओटेरोआ हैं। तांगता वेनुआ (स्वदेशी लोग) लोग हमारे पुश्तैनी लोग है जो नामों को कुचले जाने, नीचा दिखाने और नज़रअंदाज किए जाने से मारे गए हैं। यह 21वीं सदी है इसे अब बदलना चाहिए।”
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पार्टी ने यह भी कहा कि मूल भाषा में प्रवाह 1910 में 90 प्रतिशत से गिरकर 1950 में 26 प्रतिशत हो गई है। “केवल 40 वर्षों में क्राउन ने हमारी भाषा को सफलतापूर्वक छीन लिया है और हम आज भी इसके प्रभावों को महसूस कर रहे हैं।” माओरी पार्टी ने यह भी बताया कि वर्तमान में देश के केवल 3 प्रतिशत लोग ही मूल भाषा बोलते हैं।
अभी तक प्रधानमंत्री अर्डर्न ने इस नवीनतम याचिका पर सार्वजनिक रूप से टिप्पणी नहीं की है, लेकिन उन्होंने 2020 में कहा था कि यह एक “सकारात्मक बात” है कि देश के भीतर आओटेरोआ शब्द का परस्पर उपयोग किया जाता है।
आओटेरोआ नाम के पीछे का कारण क्या है?
न्यूजीलैंड में आदिवासी आबादी का मानना है कि आओटेरोआ नाम सबसे पहले कूपे नामक एक पूर्वी पोलिनेशियन खोजकर्ता द्वारा दिया था जो जातक कथाओं के अनुसार लगभग 1200-1300 ईस्वी सन् के आस-पास आज के न्यूजीलैंड आया था।
किंवदंतियों के अनुसार जब कूपे उनकी पत्नी कुरामारोटिनी और चालक दल यह पता लगाने के लिए नौकायन कर रहे थे कि क्षितिज से परे क्या है तो उन्होंने दूरी में सफेद बादल में एक बड़ा भूभाग देखा। तभी कुरमारोटिनी चिल्लाई, ”अरे! वह एओ! वह आओटी! वह Aotearoa! (एक बादल, एक बादल! एक सफेद बादल! एक लंबा सफेद बादल!)”। जातक कथाओं के अनुसार लोग यह भी बताते हैं कि कूपे की बेटी ने आओटेरोआ नाम रखा है।
न्यूजीलैंड नाम कब और क्यों रखा गया है?
देश के वर्तमान नाम के पीछे का इतिहास 1640 के दशक का है जब डच ईस्ट इंडिया कंपनी के एक डच खोजकर्ता अबेल तस्मान ने इस दक्षिण द्वीप को देखा था। यह देश बाद में डच मानचित्रों पर “नीउव ज़ीलैंड” के रूप में दिखाई देता है, जिसका नाम डच प्रांत “ज़ीलैंड” के नाम पर रखा गया है।
एक सदी बाद अंग्रेजी नाविक कैप्टन जेम्स कुक ने द्वीप पर पैर रखा और पहली बार देश के विस्तृत और सटीक नक्शे तैयार किए। कुक के नक्शे में उन्होंने देश का उल्लेख “न्यू ज़ीलैंड” के रूप में किया है।
राजनेताओं और इतिहासकार का क्या मानना है?
ओटागो विश्वविद्यालय के प्रख्यात व्याख्याता मोर्गन गॉडफेरी ने द गार्जियन में लिखा है कि माओरी मेसेंजर और गवर्नर ग्रे की पांडुलिपियों में, जो कि माओरी भाषा के पुराने अखबार हैं उसमें 1855 की शुरुआत के दस्तावेजों में आओटेरोआ नाम दिखाई देता है, लेकिन इतिहासकारों को अभी तक आधिकारिक संदर्भ नहीं मिल सका हैं।
न्यूजीलैंड के पूर्व उप प्रधानमंत्री विंस्टन पीटर्स ने “नाम परिवर्तन याचिका” की आलोचना की और कहा कि देश का नाम और शहर का नाम बदलना सिर्फ चरमपंथी उग्रवाद है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि न्यूजीलैंड द्वारा नाम बदले जाने को राजनीति विज्ञान के सिद्धांतों में डिकॉलोनाइजिंग कहते है। माओरी समुदाय की ही विश्व विख्यात प्रोफेसर लिंडा तुहीवाई स्मिथ Decolonization के सिद्धांत को जन्म देने वाली महिला मानी जाती हैं। उन्होंने हमेशा से “बाहरी” अतिवादियों द्वारा बदले गए संस्कृति और इतिहास की निंदा की है।
भारत में अभी भी ‘इंडिया’ नाम को बदलने के लिए आपको सोचना पड़ेगा। न्यूजीलैंड में इस तरह की ग़ुलामी वाली मानसिकता से आजादी काफी पहले पा ली गई। भारत में तमाम यातनाओं के बाद भी इतिहास के क्रूर पात्रों के नामपर शहर चल रहे हैं, लेकिन छद्म धर्मनिरपेक्ष और टॉलरेंट बनने के चक्कर में उस रक्तरंजित इतिहास को सहज इतिहास के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है।