भारतीयता क्या होती है, भारत को पूर्वोत्तर के राज्यों से सीखना चाहिए। चाहें खेल का मैदान को या जंग का, राष्ट्र प्रेम से लबरेज ये लोग मिट्टी के रक्षण और शान के लिए हमेशा पहली पंक्ति में खड़े होते है। तात्कालिक घटना मिट्टी के रक्षण से जुड़ी हुई है। हम सभी अरुणाचल पर चीन के झूठे दवाओं से भली-भांति परिचित है। चीन अपनी विस्तारवादी नीति के आगे मैकमोहन रेखा को भी नहीं मानता। भारत के विकासवादी नीति और चीन के विस्तारवादी नीति के कारण अरुणाचल प्रदेश की भारत-तिब्बत सीमा पर एक नयी प्रकार की समस्या का उदय हुआ है। भारत के विकासवादी नीति के कारण पिछले कुछ वर्षों में ईटानगर और अन्य शहरी क्षेत्रों में अच्छी नौकरी खोजने के लिए ग्रामीणों का लगातार पलायन हुआ है। और यह स्थिति चीन के विस्तारवादी नीति के बिलकुल अनुकूल और अनुरूप है।
अरुणाचल प्रदेश के ग्यारह विधानसभा क्षेत्र चीन सीमा पर स्थित हैं। इन निर्वाचन क्षेत्रों के निवासियों ने चीनी सैनिकों द्वारा उल्लंघन की सूचना देकर सुरक्षा बलों की मदद की है। लेकिन, अब इनके पलायन से इस क्षेत्र में एक ऐसा निर्वात उत्पन्न हो गया है जो चीन के विस्तारवादी नीति के लिए अनुकूल परिस्थिति निर्मित करता है। भौगोलिक रूप से दुर्गम इस भारत-तिब्बत सीमाई क्षेत्र के लोग चीन के प्रतिरोध में एक अदृश्य और अभेद्य रक्षा कवच का कार्य करते थे। ये भारतीय सेना की आँख थे। लेकिन, अब ये पेट और आजीविका के वशीभूत हो ना चाहते हुए भी इटानगर और अन्य शहरी कशेट्रोन में पलायन कर रहें है। भारत के प्रति यहाँ के लोगो और जनप्रतिनिधियों ने दूरदृष्टि, सत्यनिष्ठा और कर्तव्यपरायणता का अतुलनीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।
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अरुणाचल प्रदेश के विधायक, जो सीमा पर स्थित निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं, विकास की पहल के माध्यम से राज्य की राजधानी ईटानगर में अपने मतदाताओं के पलायन को रोकने और हतोत्साहित करने के लिए एक साथ आए हैं। शनिवार को ईटानगर में मिले सीमावर्ती जिलों का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायकों ने “अरुणाचल प्रदेश के भारत-चीन सीमा विकास विधायक मंच” का गठन किया।
विधानसभा अध्यक्ष पासंग दोरजी सोना को इसके अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। पासंग शि योमी जिले के सुरम्य मेचुका निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। सोना ने कहा कि विधायक ग्रामीणों के पलायन को लेकर चिंतित हैं और इस मुद्दे पर चर्चा करने और इससे निपटने के तरीके खोजने के लिए बैठक जरूरी है। सोना ने कहा- “सीमावर्ती निवासियों के पास बुनियादी सुविधाओं की कमी है और वे बेहतर जीवन के लिए शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं। उनके प्रवास को रोकने का एकमात्र तरीका विकास की पहल के माध्यम से उन्हें अवसर देना है।‘’
इस मुद्दे पर अन्य विधायक भी राजी हो गए। उन्होंने सीमावर्ती निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायकों के एक मंच के गठन का सुझाव देते हुए कहा कि इससे उन्हें मुद्दों को उठाने में मदद मिलेगी। विधायकों ने भी महसूस किया कि सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम के मौजूदा दिशानिर्देशों में संशोधन समय की जरूरत है। उन्होंने आर्थिक मदद को सामूहिक रूप से जमा करने की प्रथा को समाप्त करके बेहतर धन आवंटन और ब्लॉक-वार उपयोग प्रमाणन का आह्वान किया। विधायक अपने सुझाव मुख्यमंत्री पेमा खांडू को सौंप सकते हैं, जो चीन की सीमा पर स्थित पश्चिमी अरुणाचल जिले के तवांग के रहने वाले हैं।
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यह एक खबर है उन जनप्रतिनिधियों के पहल की। लेकिन, खबर से ज्यादा हमें और हमारे नेताओं को इसे एक मानक उदाहरण की तरह लेना होगा जो चंद वोटों के खातिर विदेशी घुसपैठियों को मनमाने तरीके से बसाते है। जिससे भारत के आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर समस्या उत्पन्न होती है। सभी जानते है किस प्रकार से अपने निजी स्वार्थ और वोट बैंक की राजनीति के लिए ममता बनर्जी ने न सिर्फ रोहिङ्ग्यओन को भारत की धरती पर बसाया बल्कि उन्हे जमीन भी आवंटित किए। ये मसला करीब-करीब सभी सीमावर्ती राज्यों में व्याप्त है परंतु ममता और मुफ़्ती जैसे कुछ नेता इसपर अपने निजी राजनीतिक स्वार्थ के लिए आँख मूँदे बैठे है।
उन्हे अरुणाचल के उन विधायकों से सीखना चाहिए जो संसाधन के कमी के बावजूद भी अपनी मिट्टी के रक्षण के लिए बड़े शान से दुनिया के तथाकथित महाशक्ति को रोकने का प्रयास कर रहें है। धन्य है वो मिट्टी जहां के लोग मिट्टी को सिर्फ मिट्टी नहीं समझते। सीख देने के लिए शुक्रिया अरुणाचल। धन्यवाद अरुणाचल ये विश्वास दिलाने के लिए की राष्ट्रभक्ति का ये सूर्य किसी शक्ति के आगे अस्त नहीं होगा।