एक ओर विदेशी निवेशक भारत आ रहे हैं, तो दूसरी ओर उद्योग क्षेत्र में भय की झूठी कहानी बुनी जा रही है

भारतीय उद्योगों में डर का माहौल बनाया जा रहा है

यदि आप कोई गलत कार्य करते हो और आपको उसके लिए डांट पड़ती है, तो आप अपनी गलतियाँ सुधारोगे कि आपको आईना दिखाने वाले को बदनाम करने का प्रयास करोगे? जनता और सरकार से रियलिटी चेक मिलने के बाद लगता है कुछ कंपनियां दूसरी ही दिशा में लग चुकी है। अपनी अकर्मण्यता को सुधारने के बजाए यह अब उल्टा सरकार पर ‘डर का माहौल’ बनाने का आरोप लगा रही हैं।

इसकी शुरुआत एनडीटीवी ने की है, जिन्होंने अपने एक लेख में लिखा, “जिस प्रकार से RSS ने इन्फोसिस को ‘राष्ट्रद्रोही’ कहा है, वो उद्योगों को मोदी सरकार के विरुद्ध जाने का दुष्परिणाम भुगतने की चेतावनी दे रहा है l”

यहाँ पर एनडीटीवी का इशारा पांचजन्य के उस लेख की ओर था, जहां उन्होंने इन्फोसिस पर उनकी अकर्मण्यता को लेकर सवाल उठाया था, जिससे स्वयं आरएसएस ने दूरी बना ली थी। पर भाई, जब दिमाग में केवल एक ही उद्देश्य हो – किसी भी तरह सरकार को बदनाम करना, तो आखिर कहाँ तक आप एजेंडावाद से अपने आप को रोक पाओगे?

अब कमाल की बात तो यह है इन्फोसिस और टाटा जैसी कंपनियों को अनेकों पत्र और लेखों का सामना करना पड़ता है, जो आवश्यक नहीं है कि प्रशंसनीय ही होंगे। तो फिर एक मैगज़ीन के संपादकीय से उनका क्या बिगड़ जाएगा? या तो इन्फोसिस जानता है कि उसने गलती की है, जिसके कारण सरकार ने उसकी सार्वजनिक क्लास लगाई थी, और इसीलिए अपने आप को बचाने के लिए वह ‘पेड मीडिया’ का सहारा ले रहा है। वास्तव में ‘बिकी हुई मीडिया’ या ‘गोदी मीडिया’ तो इसे ही कहते हैं। जिस प्रकार से यह चित्रित किया जा रहा है कि RSS के लेख से भारतीय उद्योग में सिहरन होने लगी है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि भारत सरकार को एक ऐसे संस्थान के रूप में चित्रित किया जा रहा था, जो चीन की भांति अपने ही टेक कंपनियों के पीछे हाथ धोके पड़ा है, ये जानते हुए भी कि ये वही मोदी सरकार, जो तकनीक में क्रांति लाने के लिए एक क्रांतिकारी PLI स्कीम को स्वीकार कर चुकी है।

लेकिन इन्फोसिस इस गंदे खेल में अकेला नहीं है। एक महीने पहले कपड़ा मंत्री पीयूष गोयल ने इंडिया इंक को अपने संदेश में कहा था कि वे सिर्फ अपने लिए ना काम करके देश हित में भी काम करें। उनका इशारा स्पष्ट तौर पर टाटा ग्रुप की ओर था, जिन्होंने केंद्र सरकार की संशोधित ई कॉमर्स नीतियों का विरोध किया था, जो उलटे टाटा जैसी कंपनियों के लिए आगे चलकर लाभकारी ही सिद्ध होती।

ऐसे में एक तरफ जहां अनेक बाधाओं के बावजूद विदेशी निवेशक भारत में निवेश करने के लिए तैयार है, और भारत की सकारात्मक वृद्धि को देखते हुए काफी उत्साहित भी है, तो वहीं इन्फोसिस और टाटा जैसी कुछ कंपनियां भी है, जो इस नेक काम में योगदान देने के बजाए उलटे भारत के दुश्मनों के प्रोपगैंडा को ही बढ़ावा दे रही हैं। जिस प्रकार से एनडीटीवी के सहारे वे भारत सरकार को ‘दंभी’ सिद्ध करने पर तुली है, जबकि सत्य इसके ठीक विपरीत है, तो यहाँ पर इनपर एक ही मुहावरा लागू होता है – उल्टा चोर कोतवाल को डांटे।

Exit mobile version