‘योनियों वाले शरीर– मेडिकल जर्नल Lancet कुछ ऐसे संबोधित कर रहा है महिलाओं को

अपने उट-पटांग कंटेट को लेकर हाशिये पर रहने वाली मैगजीन The Lancet एक बार फिर से चर्चा में है। इस बार यह मैगजीन भारत पर गलत आरोप या कोविड पर नकारात्मक चित्रण को लेकर नहीं, बल्कि महिलाओं पर आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर काफी चर्चा में है। इस Medical जर्नल ने इस बार महिलाओं को लेकर इतनी आपत्तिजनक टिप्पणी की है, जिसकी जितनी निंदा की जाए कम है।

Lancet मैगजीन ने हाल ही में अपने वर्तमान संकलन के कवर पेज पर महिलाओं को जिस प्रकार से संबोधित किया गया है, उसे पढ़कर तो आपको बड़े से बड़ा नारी विरोधी, जिन्हें आमतौर पर “वामपंथी Misogynist” कहते फिरते हैं, नन्हें-मुन्हें बालक प्रतीत होंगे। विश्वास नहीं होता तो इस मैगजीन के कवर फोटो को देख लीजिए।

लोगों ने लगाई Lancet की क्लास

कहने को Lancet एक चिकित्सीय जर्नल है लेकिन ये एक जर्नल कम और एक कम्युनिस्ट मुखपत्र अधिक प्रतीत होता है। इस मैगजीन ने महिलाओं को जिस प्रकार से ‘योनियों वाला शरीर’ के रूप में संबोधित किया गया, उसे देख किसी का भी खून खौल उठेगा। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से महिलाओं के तनिक भी अपमान पर तलवारें निकालेन वाली नारीवादी संगठन इस विषय पर चुप्पी साधे बैठी हुई हैं।

परंतु कुछ लोग ऐसे भी है जो विज्ञान और व्यवहारिकता पर इस असहनीय लांछन को स्वीकार नहीं कर पाए और उन्होंने Lancet को जमकर धोया। कैल्विन रॉबिंसन नामक पत्रकार ने ट्वीट किया, “यह कैसे हो सकता कि अपने आप को विश्व के अग्रणी मेडिकल जरनल्स में गिनने वाला यही नहीं जानता कि महिला होती क्या है? इन्होंने जो सम्बोधन प्रयोग में लिया है, वह गैर-वैज्ञानिक भी है और आपत्तिजनक भी”।

स्मिता बरुआ नामक यूजर ने कहा, “योनियों वाले शरीर? कदापि नहीं! हम महिलायें हैं! वैज्ञानिक रूप से हम महिलायें हैं और हम शरीर और योनियों से कहीं बढ़कर हैं। हमारी पहचान को अपने कुत्सित वोक विचारधारा के नाम पर हमें जबरदस्ती परोसना अशोभनीय और असहनीय है”।

इसी पर एक अन्य व्यक्ति ने ट्वीट किया, “मानवता को अब वोकनेस से टीकाकरण करवाना पड़ेगा”।

भारत के खिलाफ उगल चुका है जहर

इसमें कोई दो राय नहीं है कि आजकल के कथित मानवतावादी अथवा जेंडर एक्टिविस्ट लिंग यानी जेंडर को सामाजिक प्रगति में बाधा मानते है और वे चाहते हैं कि इस ‘बाधा’ को मिटाया जाए। परंतु वोक राजनीति में अंधे हो चुके ये वामपंथी इस हद तक आगे बढ़ चुके हैं कि अब ये विज्ञान और व्यवहारिकता तक तो चुनौती देने लगे हैं। इनके लिए तो प्राकृतिक यौन संबंध तक मिथ्या मानी जाती है। साथ ही इनके मुताबिक महिलाओं के अलावा अन्य लोग भी गर्भवती हो सकते हैं। यदि किसी ने उन्हें चुनौती देने का प्रयास किया तो उसका अंजाम वही होगा जो प्रख्यात लेखिका जेके रोलिंग का हुआ था, जिन्होंने ट्रांसजेंडर्स के गर्भवती होने के हास्यास्पद लॉजिक पर प्रश्न उठाया था

लेकिन आपको क्या लगता है ये Lancet की पहली भूल है? क्या उन्होंने ऐसा पहली बार किया है? जैसा हमने पहले कहा था, Lancet कहने को एक मेडिकल जर्नल है, लेकिन जिस प्रकार से वह वामपंथियों की विचारधारा की स्तुति करता है उससे ये एक जर्नल कम और कम्युनिस्ट मुखपत्र अधिक प्रतीत होता है। विश्वास नहीं होता तो हम भारतीयों से ही पूछ लीजिए।

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Lancet 2019 से ही भारत के विरुद्ध विष उगलता फिर रहा है। एक मेडिकल जर्नल होकर यह मैगजीन अनुच्छेद 370 के विषय पर भारत को उपदेश देता फिर रहा था, इसी से आप समझ जाइए कि यह जर्नल वास्तव में कितना निष्पक्ष है। इतना ही नहीं कोविड के विषय पर तो इसने भारत के विरुद्ध एक विशेष अभियान चलाया था ताकि किसी भी स्थिति में लोग भारत पर विश्वास न जता पाए। उदाहरण के लिए जब भारत ने कोविड के भीषण असर को रोकने में सहायक HCQ के  एक्सपोर्ट को बढ़ावा दिया तो उसके विरुद्ध भी ये लोग विष उगलने लग गए थे। वहीं, जब भारत ने अपने दम पर वैक्सीन बनाई तो उसके विरुद्ध भी इन्होंने प्रोपेगेंडा चलाया। ऐसे में Lancet का वर्तमान लेख यही सिद्ध करता है कि वो अब एक मेडिकल जर्नल नहीं प्रोपगैंडा पोर्टल बनकर रह गया है।

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