टाइम्स वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग आ गई है। सन 2022 के लिए दुनिया भर के विश्वविद्यालयों की रैंकिंग की गई है। भारत से रिकार्ड संख्या में विश्वविद्यालय चयनित हुए है। कुल मिलाकर 1622 विश्विद्यालयों में 71 भारतीय विश्वविद्यालय शामिल है।
टाइम्स वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग के अनुसार भारत का सर्वश्रेष्ठ रैंक वाला संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) बैंगलोर है। IISC ने लगातार तीसरे वर्ष 301-350 रैंक वर्ग में अपनी स्थिति बनाए रखी है। अब भारत दुनिया के शीर्ष 1000 विश्वविद्यालयों में से 35 का घर है। यह कीर्तिमान अब तक का दूसरा सबसे बड़ा है इससे पहले 2020 में 36 विश्वविद्यालय इस लिस्ट में शामिल हुए थे। IIT रोपड़ को शीर्ष 351-400 ब्रैकेट में स्थान दिया गया है, जबकि IIT इंदौर को 401-450 ब्रैकेट में रखा गया है।
इससे पहले 63 भारतीय विश्वविद्यालय टाइम्स वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग सूची में जगह बना पाए थे लेकिन भारतीय शिक्षा में हो रहे गुणवत्ता वाले शोध और बढ़िया शिक्षा के चलते इस बार 71 विश्वविद्यालय जगह बना पाए है। हालांकि, अभी और सुधार करने की आवश्यकता है क्योंकि शीर्ष 300 विश्वविद्यालय में भारत के एक भी विश्वविद्यालय नहीं है।
हालांकि, यह आवश्यक नहींं है कि अगर आपका विश्वविद्यालय इस सूची में नहीं है तो आप बेकार और बुरे विश्वविद्यालय में पढ़ रहे है। अगर आपने ध्यान दिया होगा तो आपने पाया होगा कि इस बार आईआईटी दिल्ली, IIT मुंबई इस सूची में नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि दिल्ली, कानपुर, खड़गपुर, मुंबई, गुवाहाटी और मद्रास सहित पुराने IIT ने पिछले साल रैंकिंग की पारदर्शिता पर संदेह के चलते टाइम्स वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग प्रक्रिया का बहिष्कार किया था। पिछले साल संस्थानों ने एक संयुक्त बयान में कहा था कि “अगर टाइम्स हायर एजुकेशन उन्हें मानकों और उनकी रैंकिंग प्रक्रिया में पारदर्शिता के बारे में समझाने में सक्षम है तो आईआईटी अगले साल अपने फैसले पर पुनर्विचार करेंगे।”
THE और QS जैसी अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग की आलोचना भारतीय सरकार कर चुकी है। मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल भी टाइम्स वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग की पारदर्शिता पर सवाल उठा चुके है। भारतीय संस्थानागत NIRF रैंकिंग जारी करते हुए निशंक ने कहा, “टाइम्स और क्यूएस रैंकिंग अपने आधार पर हमारे संस्थानों को डाउनग्रेड करती है, मैं इससे सहमत नहींं हूं। हमारे संस्थान बहुत अच्छे शोध कर रहे हैं, हमें केवल खास धारणा के आधार पर नहींं आंका जा सकता है।”
ऐसे रैंकिंग पर यह सवाल भी उठाया जाता है कि वह बाहरी छात्रों और उनके पैसों को आकर्षित करने का तरीका मात्र है। बढ़िया शोध के आधार पर भारतीय विश्विद्यालयों को कम आंकना सरासर गलत है। टाइम्स वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग और QS के रैंकिंग में अंतर से इसको समझा जा सकता है, QS रैंकिंग में दुनिया के 200 विश्वविद्यालयों में 3 विश्वविद्यालय भारत के है। पिछले साल आपदा के दौरान विभिन्न संस्थाओं ने रैपिड एक्शन टेस्ट बनाया, संस्कृत भाषा को समझने के लिए AI को विकसित किया लेकिन शायद यह जरूरी शोध नहीं माना जाएगा।
भारतीय संस्थाओ को ब्राह्मणवाद और वामपंथी एजेंडे के तहत भी कम आंका जाता है। आईआईटी पर हमेशा से यह आरोप लगता है कि वहां ब्राह्मण ज्यादा है। वहां पर हिन्दू धर्म ताकतवर है। आपको हंसी आ रही होगी लेकिन आप सुनिए, भारतीय वामपंथी विचारधारा के मीडिया समूह आईआईटी को ब्राह्मणों का घर बताती है। यह बताया जाता है कि जानबूझकर गैर सवर्णों को फेल किया जाता है जबकि हकीकत यह है कि जब आप ऐसे जगह पर होते है जहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मायने रखती है तब कोटे पर एडमिशन पा लेना एक चीज है, वहां के सेमस्टर एग्जाम को पास करना अलग चीज है। यह तो मेहनत पर निर्भर करता है।
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एक प्रोफेसर ने इस्तीफा क्या दे दिया, पूरे मीडिया ने ऐसे बताया कि आईआईटी में सिर्फ भेदभाव होता है और कुछ नहीं होता है। भाजपा के सरकार बनाते ही एक साल बाद यह कहा गया कि आईआईटी में हिंदुत्व पहले से ही था बस और मजबूत हो गया है। इनके तर्क के हिसाब से दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालय ईसाई धर्म के विश्वविद्यालय है। वहाँ पर कौशल के दम पर अगर प्रोटेस्टेंट पहुंच जा रहे है तो वह कैथलिक की नहीं बल्कि प्रोटेस्टेंट की गलती है। ऐसे दावों के वजह से छवि खराब होती है। ध्यान रहे कि टाइम्स ग्रुप रैंकिंग में रेपुटेशन यानी छवि और पीर रिव्यु (यानी माहौल कैसा है विश्वविद्यालय का) भी पैमाना माना जाता है।
भारत को अपने जरूरतों के हिसाब से बदलाव करने की आवश्यकता है। ऐसे रैंकिंग में भले ही भारतीय संस्थानों का दबदबा बढ़ रहा है लेकिन जरूरी है कि इससे विरत होकर जरूरतों के हिसाब से शोध हो, उनकी गुणवत्ता दुनिया में बताई जाए। आज अगर NIRF रैंकिंग के हिसाब से विश्व भर के विश्वविद्यालयों को आंका जाए तो सम्भवतः वह हमारे रैंकिंग को कौड़ी का भाव नहीं देंगे। इसी के साथ यह जरूरी है कि सरकार हिंदुत्ववादी और ब्राह्मणवाद के मौजूदगी वाले दावों के खंडन करे।