मुगल शासन के दौरान भारत के उच्च GDP शेयर का तथ्यों के साथ खंडन

विश्व जीडीपी भारत

भारतीय इतिहास में मुगलों का महिमामंडन एक पुराना चलन है। लंबे समय तक इतिहासकारों ने मुगलों को राष्ट्रनिर्माता के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है, इस कारण पत्रकारिता से लेकर फिल्म इंडस्ट्री तक बहुत से लोगों द्वारा इसी परिपाटी का पालन करते हुए कथित महान मुगलों का गुणगान किया जाता रहा है। इसके पीछे एक तर्क यह दिया जाता है कि मुगलों के समय विश्व की जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी लगभग 25% थी। अपने आप को विद्वान साबित करने की प्रतिस्पर्धा में बहुत से लोग आधे सत्य को अंतिम सत्य मानकर इसे ही अपने सभी तर्कों का आधार बना लेते हैं।

आर्थिक इतिहासकार Angus Deaton ने पिछली दो सहस्त्राब्दियों अर्थात पिछले 2000 सालों के भीतर विश्व की जीडीपी में अलग अलग देशों की हिस्सेदारी को लेकर एक चार्ट तैयार किया था। इसी चार्ट से पहली बार यह दावा किया गया कि मुगलों के समय विश्व की जीडीपी में भारत की PPP हिस्सेदारी लगभग 25 प्रतिशत थी। हालांकि, यही चार्ट यह भी बताता है कि प्रथम सहस्त्राब्दियों में, अर्थात भारत में मुस्लिम आक्रमण के बड़े पैमाने पर शुरू होने से पहले विश्व की जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी लगभग 40% थी।

1000 ईसवी में शुरू हुए मुस्लिम आक्रमणों के कारण भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से गिरने लगी। महमूद गजनी ने आक्रमण करके भारत के संचित धन को लूटा। लेकिन जब मोहम्मद गौरी ने भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना की, उसके साथ आए तुर्कों और अफगानों ने जब सत्ता को कब्जाया तो भारत का तेजी से आर्थिक पतन शुरू हुआ। केवल 500 वर्षों में भारत की विश्व की जीडीपी में हिस्सेदारी 10% तक घट गई।

10% का पतन इसलिए बड़ा है क्योंकि यह भारत की अपनी असफलताओं से जन्मा था। उस समय विश्व स्तर जीडीपी पर देशों के बीच आर्थिक प्रतिस्पर्धा नहीं शुरू हुई थी। न ही इसी देश में बड़े पैमाने पर तकनीकी क्रांति हो रही थी। ऐसे में भारत की जीडीपी का गिरना सीधे तौर पर मुस्लिम शासकों की नीतिगत असफलता है।

वहीं, मुगलों की बात करें तो उनके शासन के 200 सालों के भीतर विश्व स्तर जीडीपी पर भारत की जीडीपी 30 से घटकर 25% रह गई। भारत ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन गुप्त काल के दौरान किया था। हिंदू शासक और मुस्लिम शासकों की नीतियों में एक विशेष अंतर विदेशी व्यापार को लेकर सजगता रहा है।

मुगलों के पतन का एक बड़ा कारण उनके द्वारा नौसैनिक विस्तार नहीं करना था। इसके कारण भारत के तीनों ओर पहले समुद्रों पर से भारतीय आधिपत्य समाप्त हो गया। वही हिंदू शासकों की बात करें तो हमें इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही भारतीयों ने विदेशी व्यापार और सामुद्रिक अधिपत्य पर अपना ध्यान केंद्रित रखा था।

मुग़लों तथा अन्य मुस्लिम शासकों के समय व्यापार के न फलने फूलने का कारण उनकी धार्मिक असहिष्णुता भी थी। इन शासकों ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था से प्राप्त हो रहे कृषि उत्पादन के अतिरेक के बल पर बड़ी बड़ी सेनाओं का निर्माण किया, लेकिन ग्रामीण उत्पादन अतिरेक का प्रयोग करके शहरी अर्थव्यवस्था को फलने फूलने का मौका नहीं दिया।

इसका एक स्पष्ट उदाहरण विजयनगर साम्राज्य की बहमनी साम्राज्य से तुलना करने पर देखने को मिलता है। जहां एक और विजयनगर साम्राज्य ने प्रत्येक व्यक्ति का स्वागत किया, फिर वो चाहे हिन्दू हो, मुस्लिम हो, या अन्य कोई, वहीं बहमनी साम्राज्य ने कट्टरपंथी नीतियां अपनाई। नतीजा बहमनी साम्राज्य का पतन विजयनगर से बहुत पहले हो गया। आप हिन्दू शासन और मुस्लिम शासन की तुलना करें तो सातवाहनों, चोल, गुप्ता आदि ने सैकड़ों सालों तक शासन किया। वहीं, खिलजी, तुगलक, लोदी आदि बड़े साम्राज्य 50 से अधिकतम 100 वर्ष तक ही शासन चला सके। इसलिए यह दावा करना कि मुगल राष्ट्र निर्माता थे केवल कोरी कल्पना है। मुग़ल हो, खिलजी हो, तुगलक हो या अन्य कोई भी वंश हो, मुस्लिम शासकों में शासन चलाने के लिए न तो वर्तमान की समझ थी, न भविष्य का अनुमान लगाने की दूरदृष्टि थी।

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