जब एक अनार हो और सौ बीमार तो किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए मुसीबतें बढ़ जाती हैं। इस तरह के हालात में सबसे ज्यादा समस्याएं कांग्रेस पार्टी को झेलनी पड़ती है क्योंकि इस पार्टी के पास एक सीट के लिए अनेकों प्रत्याशी रहते हैं। इस बुरी परिस्थिति में ही कांग्रेस का असल टेस्ट होता है और पार्टी की किरकिरी भी होती है।
मौजूदा समय में राज्यसभा की एक सीट कांग्रेस के लिए मुसीबत की घड़ी लेकर आई है। ऐसा प्रतीत होता दिखाई दे रहा है कि कांग्रेस इस मौके पर सामंजस्य बनाने में एक बार फिर से चूक गई है। कांग्रेस ने महाराष्ट्र की राज्यसभा की एक सीट के लिए जम्मू कश्मीर की प्रभारी रजनी पाटिल को उम्मीदवार बनाया है। इस उम्मीदवारी के ऐलान के साथ ही पार्टी ने अपने वरिष्ठ और युवा नेताओं को एकसाथ नाराज कर दिया है, जो आने वाले समय में पार्टी की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं।
राज्यसभा सीट की उम्मीद
कांग्रेस पार्टी की स्थिति आज ऐसी है कि पार्टी अपने युवा नेताओं को भाव नहीं दे रही और अपने काबिल बुजुर्ग नेताओं की सुन नहीं रही। ये कहा जा सकता है कि पार्टी दो धड़ों के बीच फंसकर रह गई है। कांग्रेस के पास अभी सुनहरा मौका था कि वरिष्ठ नेताओं को साधते हुए पार्टी गुलाम नबी आजाद को राज्य सभा का टिकट दे सकती थी लेकिन कांग्रेस ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। खबरों के मुताबिक पार्टी ने महाराष्ट्र से राज्य सभा की एक सीट के लिए रजनी पाटिल को उम्मीदवार बनाया है, जो मौजूदा समय में जम्मू-कश्मीर का प्रभार संभाली हुई हैं।
कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर को लेकर अपनी महत्वता दिखाते हुए रजनी पाटिल को तो उम्मीदवार बना दिया है, लेकिन अपने बुजुर्ग नेता गुलाम नबी आजाद को नाराज किया है। राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा थी कि आजाद ही राज्यसभा सीट उम्मीदवार होंगे क्योंकि वो सबसे वरिष्ठ नेता हैं। इसके विपरीत पार्टी ने पंजाब में जैसे कैप्टन अमरिंदर सिंह को नाराज किया, कुछ उसी तरह से अब वो अपने अन्य नेताओं को भी नाराज करती दिख रही हैं।
इस राज्यसभा सीट के लिए कांग्रेस के पास कई उम्मीदवार थे, जिनमें गुलाम नबी आजाद के साथ मिलिंद देवड़ा, मुकुल वासनिक, संजय निरुपम भी थे। ये सभी ऐसे नेता हैं जो कि रजनी पाटिल से कहीं अधिक अनुभवी हैं, लेकिन उन्हें पार्टी ने कोई महत्व नहीं दिया। ऐसे में संभावनाएं हैं कि कांग्रेस में युवा और बुजुर्ग दोनों खेमों से टकराव की स्थिति बनने लगी है।
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मिलिंद देवड़ा को झटका
कांग्रेस के लिए परीक्षा की घड़ी है क्योंकि मुख्यमंत्रियों के साथ हो रहे बर्ताव के कारण पार्टी के वरिष्ठ नेता बगावत कर रहे हैं। एक तरफ जहां वरिष्ठ नेता नेतृत्व परिवर्तन को लेकर आक्रामक हैं, तो वहीं दूसरी ओर युवा कांग्रेस नेताओं को पार्टी में अपना कोई खास भविष्य नहीं दिख रहा है। यही कारण है कि कांग्रेस के कई युवा चेहरों ने पार्टी छोड़ दी और कुछ नेता अब पार्टी छोड़ने की प्लानिंग कर रहे हैं। इन सबके चलते ही उन्हें अब कांग्रेस की युवा टीम को मजबूत करने के लिए कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी जैसे नेताओं को पार्टी में लाना पड़ रहा है।
कांग्रेस के युवा नेता मिलिंद देवड़ा काफी लंबे समय से सक्रिय राजनीति से बाहर चल रहे हैं। मौजूदा समय में पार्टी में राहुल गांधी की सक्रियता को देखते हुए इस बात के कयास लगने शुरु हो गए थे कि कांग्रेस राज्यसभा के लिए मिलिंद देवड़ा के नाम पर मुहर लगा सकती है लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
जबकि पहले से ही इस बात की चर्चा है कि यदि जल्द ही देवड़ा को बड़ा पद न दिया गया तो सिंधिया की तरह वह भी कांग्रेस को टाटा कर सकते हैं। इसके विपरीत कांग्रेस ने अब एक अलग ही चेहरा उतारकर अपने युवा नेता को भी नाराज किया है और ये मिलिंद देवड़ा के राजनीतिक भविष्य के लिए झटका भी है। ऐसे में अब यदि मिलिंद देवड़ा पार्टी के विरुद्ध कोई बड़ा विद्रोह कर दें तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।