COVID 19 – केरल नर्क बनता जा रहा है तथा लोग आत्महत्या कर रहे हैं

अब तो सुप्रीम कोर्ट भी चिंतित हो गया है!

केरल कोविड

तथ्यों को इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि आप क्या है? किस विचारधारा से है? आपकी जातियता, धार्मिक जुड़ाव क्या है। तथ्य स्वतंत्र होता है। अभी का तथ्य यह है कि केरल में प्रशासनिक व्यवस्था ध्वस्त हो गया है। वहां पर कोविड केस भयावह स्थिति में बढ़ रहे है। आज देश के रोजाना आने वाले केसों में 60% से ज्यादा मामले अकेले केरल के है। ये वही केरल है जहां के मॉडल की तारीफ करते वामपंथी गैंग फुले नहीं समा रहे थे लेकिन जैसी इनकी आदत है, अब जब स्थिति बिगड़ गई है तो एक सुनियोजित तरीके से इस मुद्दे को खबरों से किनारे कर दिया जा रहा है।

अब थोड़ा केरल मॉडल के ‘सच’ की बात कर लेते है। किसी भी परिस्थिति का परिचय आंकड़ो से बढ़िया कोई नहीं दे सकता है। देश में कल 45,000 केस आये, अकेले केरल से 32,000 थे। 30,000 से आंकड़ा नीचे नही जा रहा है। केरल के एक जिले में जितना केस है, उतना पूरे उत्तर प्रदेश में नहीं है। अब तो स्थिति भयावह हो गई है कि केरल में रिकार्ड तोड़ आत्महत्याएं हो रही है।  सुप्रीम कोर्ट को 11वी कक्षा के परीक्षाओं पर लगाम लगाना पड़ा। ये सब इसलिए हुआ क्योंकि बुनियादी वादों के विरत केरल मॉडल बस वामपंथी गैंग का बनाया हुआ झुनझुना है।

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अब तो केरल के पड़ोसी राज्य भी केरल की हालत पर चिंतित है। केरल बस अपने नीतियों पर आत्ममुग्धता के चलते केंद्र के सलाहों को नहीं मान रहा है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में, जहां आबादी का घनत्व केरल से ज्यादा है, आबादी 5 गुना ज्यादा है, वहाँ पर कोविड केस खत्म हो गया लेकिन केरल में अभी भी बढ़ा जा रहा है। हालांकि अब केंद्र के दबाव, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर केरल में भी कर्फ्यू, लॉकडाउन जैसी चीजें लगाई जाएंगी।

केरल अभी तक अपनी कोविड के वजह से अपनी भद्द पिटवा रहा था, अब राज्य के खोखले तैयारियों और नीतियों पर सवाल उठाने के लिए आत्महत्याओं के आंकड़े आ गए है। जी हां, आपने सही सुना। कोविड के बढ़ते आंकड़ो के चलते बाजार खुल नहीं सकते है, रोजगार मिल नहीं रहा है और आर्थिक स्थिति बिगड़ रही है। इससे केरल भी वंचित नही है और अब केरल मॉडल की लापरवाही के वजह से अबतक 30 लोग आत्महत्या कर चुके है।

राज्य के अर्थव्यवस्था में ठहराव, बढ़ी हुई मजदूरी और लोगों की क्रय शक्ति में गिरावट, बढ़ती बेरोजगारी, ऋण और स्थानीय स्तर पर आर्थिक गतिविधियों पर निरंतर प्रतिबंध लोगों को आत्महत्या का कदम उठाने के लिए प्रेरित करने वाले कुछ कारणों के रूप में गिना जा सकता है। बढ़ते कोविड केस के कारण अन्य राज्यों ने केरल से आने वाले लोगों पर भी प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया है। कर्नाटक ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि वो अपने राज्य में केरल के लोगों को तभी आने देगा, जब कोविड नेगेटिव सर्टिफिकेट होगा। ऐसी स्थिति में लोग बाहर बाजारों में भी काम करने नहीं जा सकते है।

ऐसा नहीं है कि लोग काम नहीं करना चाहते है लेकिन केरल सरकार की बेवकूफी और लापरवाही से यह स्थिति हुई है। दिजो कप्पन, एक उपभोक्ता कार्यकर्ता है और मध्य केरल में स्थित एक सामाजिक पर्यवेक्षक है। उन्होंने बताया, ‘वे (आत्महत्या किये हुए लोग) सभी स्वाभिमानी लोग थे। यह एक विशेष स्थिति है, जो एक अभूतपूर्व स्थिति में सिस्टम द्वारा बनाई गई है। उनके पास काम करने की इच्छा सहित सब कुछ है। हालांकि, यह व्यवस्था उन्हें अवसर से वंचित करता है और वे वित्तीय सहायता के लिए किसी से संपर्क करने के मूड में नहीं थे। इसके बजाय, वे या तो अकेले या परिवार के साथ जीवन समाप्त कर देते हैं|’

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कोविड के बढ़ते मामलों से मानसिक बीमारियों में भी बढ़ोतरी हुई है। लोग सरकार से नाखुश है। उनमें से कई लोग तो दुकानें खोलने और बंद करने के तर्क से आश्चर्यचकित हैं। शराब बेचने के लिए दुकान खुल रही है पर अन्य कामों पर प्रतिबंध है। 17 लोगों में 8 आत्महत्या करने वाले लोग म्यूजिक, लाइट धंधे से जुड़े हुए हैं। मंदिर और धार्मिक स्थल खुले नहीं है, आम आदमी बड़े कार्यक्रम कर नहीं सकता है, ऐसे में उनके आय और इस तरह प्रहार हुआ कि वो आत्महत्या करने को मजबूर हो गए है।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि झूठे अभिमान से केरल सरकार को बाहर निकलना चाहिए। केंद्र और यूपी जैसे राज्यों से सलाह लेकर उसे आजमाना चाहिए। शायद कोविड केसों में सुधार हो जाये।

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